इंदौर। आधुनिक समय में जैव-विविधता विषय पर ध्यान देने की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते पर्यावरण में विशेष बदलाव हुआ है। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण पर बल दिया जा रहा है। एक रिपोर्ट की मानें तो आने वाले समय में पौधों,कृषि और जानवरों प्रजातियों में से 25 फीसदी विलुप्त अवस्था में है। इसके लिए आईपीबीईएस ने पर्यावरण संरक्षण की सलाह दी है। पौधों और कृषि के क्षेत्र के साथ पर्यावरण संतुलन के लिए जानवरों का संरक्षण भी जरूरी है। हर साल 22 मई को अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस मनाया जाता है। इसकी पहल सबसे पहले 90 के दशक में की गई थी। खासकर कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के चलते लोगों का ध्यान पर्यावरण संरक्षण पड़ा है। मालवांचल यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेस में विद्यार्थियों जैव विविधता के साथ शहर के पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। अंतराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य युवाओं को अपने आसपास मौजूद जैव विविधता के बारे में जानकारी देने तक ही सीमित नहीं है। आज की पीढ़ी को विलुप्त हो रही पौधों और कृषि की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण करने के लिए प्रशिक्षित भी करना है। आज के समय में इंदौर जैसे स्वच्छ शहर में पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए जैव विविधता पर बेहतर ध्यान देने की जरूरत है। इस अवसर पर इंडेक्स समूह के चेयरमैन सुरेश सिंह भदौरिया, वाइस चेयरमैन मयंक राज सिंह, डायरेक्टर आर एस राणावत, एडिशनल डायरेक्टर आर सी यादव,असिस्टेंट रजिस्ट्रार डॉ राजेन्द्र सिंह उपस्थित थे।
विदेशों की कृषि तकनीक से कम होगी कृषि की लागत
मालवांचल यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेस के प्रभारी अजय कुमार गौड़ ने बताया कि मालवांचल यूनिवर्सिटी अब मेडिकल के साथ कृषि के क्षेत्र में भी युवाओं को जैव विविधता से लेकर विभिन्न विषयों के लिए भी प्रशिक्षित कर रही है। उन्होंने बताया कि आईटी और इंजीनियरिंग के साथ अब हाई पैकेज प्राप्त करने वाले युवा भी कृषि के क्षेत्र में अपना करियर बनाना पसंद कर रहे है। आईआईटी और आईआईएम जैसे क्षेत्र के लीडर्स और मैनेजर्स भी कृषि में हाथ आजमा रहे है। कृषि के क्षेत्र में बढ़ते रूझान को देखते हुए इंदौर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेस की शुरूआत की है। अब कृषि के क्षेत्र में अभी तक केवल कॅालेजों में युवाओं को पारंपरिक खेती के गुर ही सीखाए जा रहे है। हाइटेक तरीके से जैविक खेती के गुर युवाओं को बताएं जाएंगे। इसमें कीटनाशक और दवाओं से मुक्त जैविक खेती के नए बदलावों से भी छात्र रूबरू हो सकेंगे।
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ड्रोन और हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से नए बदलाव
उन्होंने बताया कि अब मालवांचल यूनिवर्सिटी के बीएससी आनर्स एग्रीकल्चर कोर्स में कृषि क्षेत्र में ड्रोन और हाइड्रोपोनिक्स तकनीक को समझने का मौका भी युवाओं को मिल सकेगा। इसमें ड्रोन तकनीक में जहां युवाओं को खेत में पोषक तत्वों के छिड़काव से लेकर खेतों की निगरानी करने का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। कृषि की लागत को कम करने के साथ हर मौसम में कौनसी खेती की जाए इसका डाटाबेस तैयार भी होगा। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में भी इंदौर में सीखेने को मिलेगी। अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर समेत दुनिया के कई हिस्सों में यह तकनीक का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पानी, पोषक तत्वों, और दूसरे साधनों के जरिये घर के अंदर पौधों को तैयार किया जाता हैं। इसमें मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है। यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती कृषि तकनीकों में से एक है।