श्राद्धपक्ष में पूर्वजों को याद कर धूप देनें, तर्पण, पिंडदान करने का विधान है। साथ ही ब्रह्म भोज एवं परिवारजनों स्नेहीजनों को स्वादिष्ट भोजन भी करवाया जाता है। भोजन में खीर अवश्य खिलाई जाती है।मंदिरों मोक्षदायनी भागवत, तर्पण अनुष्ठानों आदि में भी खीर का प्रसाद वितरित किया जाता है।ऐसी मान्यता है कि भोग पितरों को लगाया जाता है और उनका प्रसाद सब पाते हैं। वैसे तो श्राद्ध पक्ष में सोलह श्राद्ध माने गये है किन्तु की तिथि की घट बड़ के कारण परिवार की पिंढ़ि के सत्रह पूर्वजों का श्राद्ध व तर्पण सत्रह दिन किया जाता है।तिथि अनुसार श्राद्धकर्म में जो खीर रखी जाती है।
जिस पूर्वज का श्राद्ध किया जा रहा हो उस पूर्वज को भले ही खीर पसंद थी या नहीं लेकिन खीर तो बनेगी ही।बिना खीर के श्राद्ध कर्म अधूरा रहता है। उसका मुख्य कारण पितरों के निमित परिवार व स्नेही जन खीर अवश्य खाने को मिल जाते। खीर के मुख्य आवश्यक तत्व पदार्थ दूध,चावल और शक्कर से बनने वाली खीर एक प्रकार की आयुर्वेदिक औषधि है,जिससे श्राद्धपक्ष में जब पेट में मंदाग्नि व जठराग्नि बढ़ जाती तो उसको शांत करने के लिये खीर का घोल कारगर रहता है तथा वर्ष भर पेट की आग शांत रहती ,शरीर को जलन ,एसीडीटी आदि की शिकायत नहीं रहती है। श्राद्धपक्ष में खीर अवश्य खाये और स्वस्थ रहें।
लेखक: अलका गुप्ता