Guru Nanak Jayanti 2024: क्यों मनाई जाती है गुरु नानक जयंती? जानें कैसे शुरू हुई लंगर परंपरा

srashti
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Guru Nanak Jayanti 2024

Guru Nanak Jayanti 2024 : पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा सच्चा सौदा साहिब वह ऐतिहासिक स्थान है, जहां से लंगर (सिखों का सामूहिक भोजन) परंपरा की शुरुआत हुई थी। यह परंपरा आज सिख समुदाय की पहचान बन चुकी है और इसका उद्देश्य समाज के हर वर्ग को समान रूप से भोजन प्रदान करना है। लंगर की परंपरा 500 साल पहले श्री गुरु नानक देव जी के समय से शुरू हुई थी, जो न केवल सिख धर्म, बल्कि पूरी दुनिया में मानवता और सेवा के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है।

जानें कैसे शुरू हुई लंगर परंपरा ?

पारिवारिक कहानियों के अनुसार, श्री गुरु नानक देव जी जब 15-16 साल के थे, तब उनके पिता मेहता कालू ने उन्हें व्यापार के लिए फारूकाबाद (चुहड) भेजा था। यह स्थान उस समय एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था और गुरु नानक के पिता ने उन्हें 20 रुपये दिए थे ताकि वे व्यापार करें और परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार लाएं।

लेकिन इस यात्रा के दौरान बाबा गुरु नानक देव जी का जीवन एक नई दिशा में मोड़ लिया। रास्ते में उन्हें कुछ साधु मिले, जो भूख से परेशान थे। साधुओं ने बाबा से खाने के लिए मदद मांगी, लेकिन बाबा ने उन्हें पैसे देने का प्रस्ताव दिया, जिसे साधुओं ने मना कर दिया। साधुओं ने कहा कि वे पैसा नहीं लेंगे, बल्कि यदि बाबा अपने हाथ से खाना तैयार करके उन्हें देंगे, तो वे खाना खाएंगे। इस पर बाबा गुरु नानक देव जी को यह विचार आया कि उन्हें न केवल पैसे, बल्कि खुद सेवा करनी चाहिए।

साधुओं को खाना खिलाने का निर्णय

बाबा गुरु नानक देव जी ने बिना देर किए अपने साथियों के साथ साधुओं के लिए भोजन तैयार करना शुरू किया। उन्होंने अपनी पूरी रकम 20 रुपये इस सेवा में खर्च कर दी। सभी साधु भोजन करने के बाद संतुष्ट हो गए। इस तरह, बाबा गुरु नानक ने एक नई परंपरा की शुरुआत की, जिसमें सामूहिक भोजन का आयोजन किया जाता है, जिससे न केवल भूख का निवारण होता है, बल्कि समाज में समानता और भाईचारे का संदेश भी फैलता है।

जब बाबा गुरु नानक देव जी भोजन के बाद घर लौटे, तो उनकी जेब खाली थी क्योंकि उन्होंने सभी पैसे साधुओं के भोजन में खर्च कर दिए थे। इस कारण वह घर नहीं लौटे और अपनी स्थिति को छिपाने के लिए गांव तलवंडी (ननकाना साहिब) के पास स्थित झाड़ियों में छिपकर बैठ गए। जब उनके परिवार को इस बारे में पता चला, तो वे बहुत चिंतित हो गए और बाबा को ढूंढ़ने निकल पड़े।

गुस्से में पिता का प्रतिक्रिया

बाबा गुरु नानक देव जी के घर न लौटने पर उनके पिता, मेहता कालू को बहुत गुस्सा आया। जब यह बताया गया कि बाबा ने सारे रुपये साधुओं को खाना खिलाने में खर्च कर दिए हैं, तो मेहता कालू का गुस्सा और बढ़ गया। वे नाराज थे कि उन्होंने अपने बेटे को व्यापार के लिए पैसे दिए थे, और वह उन पैसों को यूं ही खर्च कर आया।

लेकिन, परिवार और पड़ोसियों के समझाने के बाद, बाबा गुरु नानक का पिता शांत हुआ। उन्होंने महसूस किया कि बाबा ने जो किया, वह एक उच्च उद्देश्य के लिए था। जिस जगह बाबा गुरु नानक देव जी अपने पिता की नाराजगी से बचने के लिए छुपे थे, उस स्थान को आज गुरुद्वारा तंबू साहिब के नाम से जाना जाता है।

लंगर परंपरा का महत्व

इस घटना ने न केवल बाबा गुरु नानक देव जी की जीवन की दिशा तय की, बल्कि उनके विचारों और उपदेशों का भी प्रसार हुआ। लंगर की परंपरा आज भी पूरी दुनिया में सिख गुरुद्वारों में जारी है, जहां बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को निःशुल्क भोजन दिया जाता है। इस परंपरा का उद्देश्य है समाज में समानता और भाईचारे का संदेश फैलाना, और यह दर्शाना कि मनुष्य का असली उद्देश्य सेवा करना और दूसरों की मदद करना है।

गुरुद्वारा सच्चा सौदा साहिब और गुरुद्वारा तंबू साहिब, दोनों ही स्थान सिख धर्म की महानता और गुरु नानक देव जी के विचारों की प्रेरणा के रूप में श्रद्धा का प्रतीक बन चुके हैं। इन स्थलों पर आने वाले श्रद्धालु केवल धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि सिख समुदाय के सेवा भाव और समर्पण का वास्तविक अनुभव भी प्राप्त करते हैं।