यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक स्टडी के अनुसार लोग औसतन रोज़ाना 52 मिनट गॉसिप करते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जटिल और मुश्किल मस्तिष्क संरचना वाले जीव ही गॉसिप या निंदा करने का मज़ा ले पाते हैं। ज्यादातर जानवर इससे अनजान ही हैं लेकिन कुछ ऐसे भी जानवर हैं जिन्हें ऐसे गॉसिप करने में बहुत मज़ा आता है। ऐसी प्रजातियों में डॉल्फिन का नाम सबसे ऊपर आता है।
कई रिसर्च ऐसा दावा भी करती हैं कि दो गॉसिप करने वाले लोग अच्छे दोस्त बन जाते हैं। क्योंकि गॉसिप सिर्फ कोई ज़रूरी बात ही नहीं होती, वो छोटी मोटी बात को मिर्च मसाला लगाकर एकदम फिल्मी अंदाज़ में बयान की जाती है।
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स्टेनफोर्ड और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स की मानें तो डॉल्फिन एक दूसरे का नाम भी रखती हैं और साथ ही किसी की अनुपस्थिति में उसके बारे में खूब गॉसिप भी करती हैं।
उनके गॉसिप पैटर्न को समझने के लिए एक खास तरह के माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया गया और फिर उसमें जो साउंड आए, उनको डीकोड करने पर यह पता चला कि ये बातचीत इंसानी बातचीत की तरह ही थी।
दो डॉल्फिन बहुत ही सज्जन तरह से बात करती हैं, कोई किसी की बात को नहीं काटता है। इनका एक वाक्य लगभग 5 शब्दों का होता है।
इस गॉसिप की एक वजह इनके दिमाग का विकसित होना भी है। वे सोशल ग्रुप्स में रहती हैं, बातचीत के ज़रिए दोस्त और दुश्मन भी बनाती हैं।