छत्रीबाग स्थित वैंकटेश मंदिर से निकलने वाली चर्चित रथयात्रा की पूरी कहानी

Mohit
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वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा की कलम से

देश में निकलने वाली रथयात्रा में तीन रथयात्रा प्रमुख है। एक जगन्नाथ पुरी (उड़ीसा) की, जो सुप्रीम कोर्ट के कड़े निर्देशों का पालन करते आज निकल रही है। दूसरी रथयात्रा अहमदाबाद (गुजरात) और तीसरी इंदौर के छत्रीबाग स्थित वैंकटेश मंदिर की।यदि आज इंदौर में भी सामान्य दिन होते तो रथयात्रा का भव्य-दिव्य स्वरूप कैसा होता इसकी स्मृति ताजा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा जो बीस से अधिक साल तक इस यात्रा के साक्षी रहे हैं।  आइये प्रभु खुद दर्शन देने आए हैं

मोगरे, जूही, चम्पा, गुलाब की गंध में एकाकार हुई चंदन की महक से हवाएं मदमस्त हुई जा रही हैं।खुशबू से महकते रास्तों के दोनों किनारों पर भगवा ध्वज लहरा रहे हैं….स्वागत मंचों पर फूलों के ढेर से बच्चे अपनी मुट्ठियों में फूल लिए उधर से आ रहे हुजूम का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। बीती रात इन्हीं मार्गों पर लंबी कतार में लगे श्रद्धालु फूलबंगला में विराजित अपने आराध्य की मोहक छवि निहारने के लिए लालायित थे।फूलबंगला में केले के वृक्ष की छाल पर लिपटे मोगरे, चंपा, जूही, गुलाब के सैकड़ों किलो देशी और विदेशी फूलों के साथ समाई चंदन की खुशबू समूचे क्षेत्र को आनंदित कर रही थी….और आज साफ सुथरी सड़कों के किनारों पर झंडिया, भगवा ध्वज लहरा रहे थे। खंबों पर बड़े बड़े होर्डिंगज में रथयात्रा के स्वागत का अभिनंदन करने वाले युवा नेता मुस्कुरा रहे थे…छत्रीबाग वैंकटेश मंदिर की तरफ जाने वाले मार्ग पर वाहनों की आवाजाही बंद कर दी गई है। रथयात्रा में शामिल होने के लिए आ रहे श्रद्धालु माहेश्वरी स्कूल वाले मैदान, सांई बाबा मंदिर सहित आसपास की गलियों में वाहन रख कर तेज कदमों से मंदिर की तरफ बढ़ रहे हैं।

वैंकटेश भगवान की जयघोष करने वालों और बैंडबाजों से गूंजते भक्ति गीतों में जैसे होड़ सी लगी हुई है। ढोल-नगाड़ों पर थिरकते, झांज-मंजीरे बजाते युवाओं पर भक्ति की मस्ती चढ़ी हुई है…बूटी की तरंग से मदमस्त हुए भक्तों के ललाट पर महकते चंदन और केशर के छींटे कपड़ों पर भी असर दिखा रहे हैं। मंदिर परिसर में पुष्पों से सज्जित रजत रथ पर पुजारियों-सेवादारों ने भगवान को विराजित कर दिया है।रजत रथ को खींचने के लिए युवाओं की टोली ने मोटे रस्सों को पकड़ लिया है।तुरही-बिगुल-शंख के घोष के साथ रथ मंथर गति से मुख्यमार्ग पर बढ़ चला है।मंदिर के मुख्यद्वार के बाहर खड़े भक्तों में रथ को खींचने के लिए मोटे रस्सों पर हाथ जमाने की होड़ मच गई है।’चलो, आगे चलो, रथ आगे निकलने दो’ जैसे अनुरोध के साथ पुलिस जवान जैसे तैसे व्यवस्था संभालने में जुटे हुए हैं।मोबाइल पर वीडियो के साथ ही फेसबुक पर लाइव के साथ ही युवाओं में रथ के साथ सेल्फी के लिए एंगल तलाशा जा रहा है, ऐसे युवाओं की भी कमी नहीं है जिनकी नजर ओटलों, छज्जों, खिड़कियों से रथ को निहार रहे चेहरों पर लगी है।

रथ के आगे-आगे युवाओं की टोली के बीच जिस तरह पहले (ब्रह्मलीन) पूज्य स्वामी श्रीनिवासाचार्य चला करते थे, गोल घेरे और छत्र-चंवर के बीच युवा स्वामी विष्णुप्रपन्नाचार्य चल रहे हैं। स्वामी की व्यवस्था में लगी टोली के कई युवा बार बार स्वामी को अपना चेहरा दिखाने की जुगाड़ में लगे हुए हैं…सफेदझक-कलफ लगे कुर्ता-धोती पहने भक्तों के गलों में मोगरे की माला झूल रही है।गगनभेदी शंख ध्वनि-जयघोष से आभास हो रहा है कि भगवान वैंकटेश-गोदंबा देवी के साथ भक्तों के हाल जानने के लिए लाव लश्कर के साथ निकल चुके हैं। तेज होते जयघोष, पुलिस जवानों की सीटियां और इस महाउत्सव में शामिल होने के लिए सांसद-विधायकों, पार्षदों-समाजसेवी भी पहुंचते जा रहे हैं।रास्तों के दोनों तरफ उमड़ती भीड़ उस मोड़ पर नजरें गड़ाए हुए हैं जिधर से जगन्नाथ आ रहे हैं।

रथयात्रा से पहले एक बड़ी टोली गोल घेरे में स्वामी विष्णु प्रपन्नाचार्य को लिए हुए चल रही है। महाराजश्री की पदरावनी के लिए नजदीक आते श्रद्धालु परिवारों को देखते ही स्वामी के चेहरे पर स्मित मुस्कान के साथ ही हाथ आशीवार्द के लिए उठ जाते हैं।तेज हवा से थरथराती दीपक की लौ को दूसरे हाथ की ओट देते हुए स्वामी की आरती पश्चात गले में मोगरे की माला, भेंट अर्पित कर के श्रद्धालु उनकी चरणवंदना करते हैं। रुक रुक कर यह क्रम पूरे यात्रा मार्ग पर चलता रहता है।
छत्रीबाग से चली रथयात्रा नृसिंह बाजार चौराहे तक पहुंच गई है।आगे एक ट्र्क में द्वारका मंत्री तो दूसरे में सवार गायक भोंपू के भजनों ने समां बांध रखा है ।उनकी आवाज पर थिरकती युवामंडली अपने में ही मगन है।बीच चौराहे पर रथ कुछ पल के लिए रुका है और ऐसा आभास हो रहा है कृपानिधान चारों दिशाओं से दर्शन को आतुर अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि डाल रहे हैं।नृसिंह मंदिर से सांटाबाजार तक चमकीली पन्नियों से सजा मार्ग जगमग कर रहा है। कभी छतों-ओटलों से तो कभी मंचों से रह रह कर हो रही पुष्पवर्षा के भाव से लग रहा है जैसे आज तो नर-नारायण सब एक हो गए हैं।रथ से तो प्रसाद वितरित हो ही रहा है, स्वागत मंचों से मनुहार के साथ कहीं नुक्ति प्रसाद, लड्डू, मिश्री, शर्बत वितरण किया जा रहा है।

नृसिंह मंदिर के समीप लगे मंच से संपत्त धूत, नितिन तापड़िया मित्रमंडली के साथ स्वामी के पादपूजन-आरती से अभिभूत है तो नृसिंह मंदिर के पुजारी छोटेलाल शर्मा परिवार अपने आराध्य के इस दूसरे रूप के पूजन से खुद को धन्य मान रहे हैं।रथयात्रा के पूजन पश्चात श्रद्धालुओं का समूह इस सैलाब के साथ जुड़ता जाता है। कई बार तो रथयात्रा की अगवानी करने इंद्रदेव भी आते रहे हैं लेकिन उनके आगमन ने तो भक्तों के उल्लास-उमंग-उत्साह में हमेशा वृद्धि ही की है।

रथयात्रा के दर्शन कर लालिमा बिखेरते सूर्यदेव भले ही घर की ओर रवाना हो रहे हों लेकिन यात्रा मार्ग वाले घरों से परिवार, बच्चे-युवा-महिलाएं-वृद्धजन
दौड़ते-भागते ऐसे चले आ रहे हैं जैसे नटनागर की बांसुरी की तान सुन ग्वाल-बाल-गाएं दौड़ी चली आती थी। रथयात्रा वाले इन मार्गों पर रंगबिरंगी झालरें लुपझुप करने लगी हैं।मंचों से स्वागत करने वाले संगठनों का उत्साह यथावत है, कहीं केले का, पेड़े का, ड्रायफ्रूट का प्रसाद बांटा जा रहा है। जनसैलाब, उत्साह का जोश असर दिखाने लगा है, ललाट पर महकता चंदन पसीने के कारण बहकर चेहरे पर चंदन लेप का आभास देने लगा है।मलमल के कुर्ते शरीर से चिपक से गए हैं लेकिन भक्ति की शक्ति यथावत है।भगवान वैंकटेश पूरा शहर नहीं घूम सकते यह सत्य श्रद्धालुओं को भी पता है इसलिए वे सब भी प्रभु की शरण में आ गए हैं।

जगन्नाथ पुरी की रथयात्रा में चाहकर भी शामिल ना हो पाने का दर्द भी शहर के बाकी क्षेत्रों के परिवारों को रथयात्रा वाले मार्ग पर खींच लाया है।दीनदयाल अब लौट रहे हैं मंदिर की ओर, बैंडबाजे वालों की तरह ही ढोल-नगाड़े से लेकर शंखनाद करने वालों पर थकान असर दिखाने लगी है।जिन लोगों ने आसपास की गलियों में अपने वाहन रखे थे वे भी उस तरफ जा रहे हैं।नृसिंह बाजार चौराहे पर दोनों तरफ के मार्गों का ट्रैफिक शुरु हो गया है।मंदिर की ओर प्रस्थान करती रथयात्रा के दर्शन इस मार्ग के लोग दूसरी बार कर रहे हैं।मंदिर में रथ प्रवेश कर चुका है।जगत के पालनहार शयन के लिए जा रहे हैं।रथयात्रा से जुड़ा सामान कमरों में रखा जा चुका है, सेवादार-ट्रस्टी भी महोत्सव के खर्चों का हिसाब-किताब निपटाने के लिए कल मिलने का टाइम तय करके रवाना हो रहे हैं।

स्मृति पटल पर रिवाइंड हुआ यादों का वीडियो

वैंकटेश मंदिर में चलने वाले ब्रह्मोत्सव और रथयात्रा पर भी इस बार भले ही कोरोना का ग्रहण लग गया है लेकिन मंदिर से जुड़ने और इस महा उत्सव का वर्षों तक हिस्सा बने रहने का वीडियो आज फिर रिवाइंड हो चला है। एक साल ब्रह्मोत्सव-रथयात्रा की प्रेस कांफ्रेंस थी, तब भाईजी (स्व बंसीलाल किरण भूतड़ा) ने आदेशात्मक लहजे में कहा इस बार उत्सव और रथयात्रा की खबरों की जिम्मेदारी तुम्हें संभालना है बेटा।बस तब से मंदिर से जुड़ना ऐसा हुआ कि एक गुरुपूर्णिमा पर सामूहिक आयोजन में निवासाचार्य से गुरु दीक्षा भी ले ली।  संपत्त धूत से तो गुजराती कॉलेज वाले मित्रों की वजह से पहले से ही परिचय था लेकिन दादा(स्व कैलाशचंद धूत), प्रह्लाद दास जाखेटिया , अशोक धूत आदि से मंदिर की वजह से ही परिचय हुआ।

उस साल मंदिर के उत्सव-रथयात्रा सम्पन्न हुई, अगले दिन सारे ट्रस्टीगण-सेवादार उत्सव के खर्चों के हिसाब किताब के लिए एकत्र हुए।तब मैं भी मंदिर और तुलसी अर्चना का नियमित दर्शनार्थी था। दर्शन पश्चात जाखेटिया से मुलाकात के लिए कक्ष में पहुंचा तो वहां हिसाब किताब जोड़ा जा रहा था। मैं भी चढ़ावे में आए चिल्लर, नोटों की अलग अलग गड्डी बनाने में सहयोग करने बैठ गया, तभी दादा (कैलाश धूत) ने एक लिफाफा मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा ले बेटा ये भेंट रख ले। मैं चौंका, हिचकिचाया, मंदिर के काम में ऐसा भी होता है क्या? मैंने इंकार किया तो बंसीलाल किरण बोले रख ले, तू ने सेवा की है।मैंने वो लिफाफा उनकी तरफ बढ़ाते हुए कह दिया ये मंदिर के लिए मेरी तरफ से सेवा है।तब से क्रम सा बन गया है।हर साल एक निश्चित राशि की रसीद माताजी कमलादेवी राणा की स्मृति में कटवाता ही हूं।जब तक जाखेटिया की मंदिर में चलती रही, अकसर वे खुद ही प्रसाद लेकर बहू को आशीर्वाद देने घर आ ही जाते थे।बाद में मेरा भी मंदिर में नियमित आना-जाना भी नहीं रहा और अब मंदिर की व्यवस्था भी बदल गई है।