हिंदी सिनेमा के महान अभिनेता और निर्देशक गुरु दत्त (Guru Dutt) ने 1950-60 के दशक में ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’, ‘साहब बीवी और गुलाम’ जैसी फिल्मों से एक अमिट छाप छोड़ी। अब 2025 में एक सदी बाद भी, गुरु दत्त का नाम सम्मान और श्रद्धा के साथ लिया जा रहा है। उनकी दिवंगत पोती, करुणा और गौरी दत्त, अपने फिल्मी करियर में उस विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। आइये उनके सफ़र और गुरु दत्त के जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें जानें।
करुणा और गौरी: Guru Dutt की फिल्मी विरासत आगे बढ़ा रहीं पोतियां

गुरु दत्त के बेटे अरुण दत्त की बेटियां और गुरु दत्त की पोतियां—करुणा और गौरी—आज फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बना रही हैं।
- करुणा दत्त (Karuna Dutt) ने अनुराग कश्यप के साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया है और वर्तमान में उन्होंने विक्रमादित्य मोटवाणी को असिस्ट करते हुए सफल वेब सीरिज ‘ब्लैक वॉरंट सीजन 2’ (Black Warrant Season 2) में भी यहीं भूमिका निभाई है।
- वहीं, गौरी दत्त (Gauri Dutt) ने इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद फिल्म इंडस्ट्री से संबंध बनाया। उन्होंने असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में कई विज्ञापन फिल्मों और नितिन कक्कड़ जैसे निर्देशकों के साथ काम किया है। वर्तमान में वह एक एड फिल्म बना रही हैं और इसके बाद निर्देशक एंथनी के साथ अगले फिल्मों पर जुटने वाली हैं।
“हमारे इतिहास पर गर्व है” — पोतियों का नजरिया
दोनों पोतियों ने मीडिया से बातचीत में गुरु दत्त की विरासत पर अभिमान व्यक्त किया है:
- करुणा कहती हैं, “हमारे लिए अत्यंत गर्व की बात है कि एक सदी के बाद भी लोग मेरे दादा को याद करते हैं। एक कलाकार के तौर पर इससे बड़ी बात क्या हो सकती है? बचपन में हमें दादाजी सिर्फ ‘दादाजी’ लगते थे, पर बड़ा होकर पता चला कि उन्होंने इंडस्ट्री में कितना बड़ा योगदान दिया।”
- गौरी बताती हैं, “हमें बताया गया था कि दादाजी शूटिंग पर जाते थे और घर से चिट्ठियां लिखते थे—‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, बस काम होता है, जो काम नहीं करता वो बुद्धू होता है।’ यह लाइन आज भी मेरे जेहन में है।”
दोनों यह भी स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे गुरु दत्त की फिल्मों के रीमेक या सशक्त नब्ज पर आधारित फिल्मों का हिस्सा नहीं बनना चाहतीं—जो दर्शाता है कि वे दादा की तरह अपनी अलग कलाकार की पहचान बनाना चाहती हैं।
Guru Dutt: कला, संकोच और सादगी के पर्याय
गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को लोनावाला में हुआ था। उनके माता-पिता वसंती पादुकोण और शिवशंकर राव पादुकोण थे। गुरु दत्त को ख़ास तौर पर उनके काव्यात्मक निर्देशन और वीरानी से भरे हुए अभिनय के लिए जाना जाता है। उन्होंने ‘आरपार’, ‘सी.आई.डी.’, ‘चौदहवीं का चांद’ जैसी फिल्मों से भी दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ी।
उनके व्यक्तित्व को लेकर उनकी बहू इफत अरुण दत्त कहती हैं कि गुरु दत्त साधारण जीवन जीते थे—घर पर बच्चों के प्रति थोड़े ‘सख्त’ लेकिन कन्फ़र्म्ड अनुशासन में रहते थे। वह अंतर्मुखी थे और फार्महाउस में छुट्टियां बिताना पसंद करते थे। अरुण बचपन में ही पिता को खो बैठे, पर उन्हें गुरु दत्त की सादगी और जीवन दर्शन का उल्लेख जरूर किया जाता था।
जीवन दर्शन से सीख: “मेहनत और शिद्दत से अपना काम करो”
करुणा का मानना है कि गुरु दत्त की कृतियों और जीवनशैली से सीखने वाले हर कलाकार के अंदर एक परिपक्व दृष्टिकोण उभरता है। वह कहती हैं: “दादाजी के जीवन पर लिखी गई किताबों और आलेखों ने यह बातें स्पष्ट कीं कि वे अपने काम के प्रति कितने समर्पित थे। यह सीख मेरे लिए सबसे अहम है—काम की गुणवत्ता और समर्पण पर जोर देना।”
उनकी सीख आज भी युवा सिनेकारों और कलाकारों के लिए प्रेरणा बनकर काम करती है। यह विरासत नई पीढ़ी में जीवंत बनी हुई है।
अभिनेत्री तनुजा का गुरु दत्त के लिए अनुभव
बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री तनुजा ने एक प्रत्यक्ष अनुभव साझा करते हुए कहा:
“मैं गुरु दत्त की ‘बहारें फिर भी आएंगी’ फिल्म में काम कर चुकी हूं। पहली बार उनसे मिलने पर लगा की वे कितने अच्छे इंसान हैं। उनके पास बड़ी लाइब्रेरी थी, मैं भी पढ़ने की शौकीन हूं—उनके साथ किताबों पर चर्चा किया करती थी।”
यह अनुभव गुरु दत्त के सादगी, बुद्धिमत्ता और कलात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है, जिन्होंने न केवल फिल्में निर्देशित की, बल्कि फिल्म निर्माण के प्रति सोच को भी समृद्ध किया।
दादा की विरासत, पोतियों का भविष्य
गुरु दत्त के औ़रों कलात्मक योगदान की विरासत उनकी पोतियों करुणा और गौरी के रूप में आज जीवंत रूप ले चुकी है। वे सिर्फ गुरु दत्त का नाम नहीं बल्कि सोच, जीवन दर्शन और कलाकार के समर्पण को भी आगे बढ़ा रही हैं।
करुणा का ’ब्लैक वॉरंट सीजन 2’ में योगदान और गौरी का डिज़ाइन और निर्देशन की दिशा में कदम यह दर्शाता है कि हर नई पीढ़ी स्वतंत्र दृष्टिकोण के साथ भी अपनी जड़ों से जुड़ी हुई है।
गुरु दत्त की शताब्दी वर्ष पर, यह गर्व की बात है कि ये युवा फिल्म सेंबल उसे नई दिशा दे रही हैं—दादा की तरह महान बनने की चाहत, लेकिन अपनी विशिष्ट पहचान के साथ।