गरीबों के लिए आरक्षित मकानों के नाम पर चल रहा है बड़ा खेल

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ऐसा लगता है कि सरकार जो भी नीतियां बनाती है उन नीतियों का पालन नहीं हो पाए इसके लिए सरकारी विभाग के कर्मचारी और कॉलोनाइजर मिलजुल कर सांठगांठ करते हैं इसमें कॉलोनाइजर भी पैसा कमाता है और सरकारी कर्मचारी भी ऐसी ही कुछ धांधली इन दिनों गरीब वर्ग के लिए आरक्षित प्लाटों तथा मकानों में हो रही है होता यह है कि हर कॉलोनी में गरीब वर्ग के लिए जमीन आरक्षित करना होती है उसमें प्लाट काटे जाते हैं या फिर फ्लैट बनाकर दिए जाते हैं और इनका विक्रय कलेक्टर द्वारा घोषित गाइडलाइन के अनुसार होता है लेकिन कॉलोनाइजर यहां भी नीयत खराब कर लेते हैं

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वे इन प्लाटों तथा मकानों की बिक्री के लिए अखबारों में विज्ञापन जरूर देते हैं लेकिन यह विज्ञापन ऐसे अखबारों में छपते हैं जिनको कोई पढ़ता नहीं है इसके बाद मनमाने भाव पर लोगों से बात करके उनके आवेदन ले लिए जाते हैं तथा उन्हें कलेक्टर कार्यालय भेज दिया जाता है यहां पर लॉटरी के अनुसार चयन होता है लेकिन इसमें गरीब आदमी की कोई भागीदारी नहीं होती उसे तो पता भी नहीं चलता कि ऐसा कोई विज्ञापन किसी अखबार में छपा है और उसे आवेदन करना है ।

इस तरह से गरीब आदमी के हक कुचल दिए जाते हैं सरकार लाख दावा करे कि वह भू माफियाओं को ठीक करने के लिए मुहिम चला रही है लेकिन भूमाफिया हैं कि अपनी करनी से बाज नहीं आते हैं हाल ही में कई गृह निर्माण संस्थाओं को नोटिस दिए गए हैं जिन्होंने ऑडिट नहीं करवाया है और आडिट नहीं कराने का अर्थ यह है कि हर साल जिसे चाहे बाहर निकाल दें और जिसे चाहे सदस्य बना दें।