Badrinath Dham: बद्रीनाथ मंदिर के कपाट आज होंगे शीतकाल के लिए बंद, चारधाम यात्रा का भी होगा समापन

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Badrinath Dham: उत्तराखंड के बदरीनाथ धाम के कपाट आज शीतकाल के लिए बंद हो जाएंगे। इस साल अब तक 14 लाख 20 हजार से अधिक श्रद्धालु भगवान बदरी विशाल के दर्शन कर चुके हैं। इस महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन को लेकर धाम में तैयारियां जोरों पर हैं और कपाट बंद होने की प्रक्रिया के साथ-साथ खास धार्मिक अनुष्ठान भी किए जा रहे हैं।

कपाट बंद होने से पहले होती हैं पंच पूजा

बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने से पहले पंच पूजा की जाती है, जो इस प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बुधवार से कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी।

  1. गणेश पूजा (15 नवंबर): पहले दिन गणेश जी की पूजा अर्चना की गई, और उसी दिन गणेश मंदिर के कपाट भी शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।
  2. नारायण मंदिर व अन्य मंदिरों के कपाट (14 नवंबर): 14 नवंबर को नारायण मंदिर के सामने आदिकेदारेश्वर मंदिर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट विधिपूर्वक बंद किए गए।
  3. वेद ऋचाओं का वाचन (15 नवंबर): 15 नवंबर को खड़क पुस्तक पूजन के साथ बदरीनाथ मंदिर में वेद ऋचाओं का वाचन भी बंद कर दिया गया।
  4. मां लक्ष्मी का भोग (16 नवंबर): 16 नवंबर को मां लक्ष्मी को कढ़ाई भोग चढ़ाया गया, जो इस समापन प्रक्रिया का अहम हिस्सा है।
रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया मंदिर

आज रात नौ बजकर सात मिनट पर भगवान बदरी विशाल के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इस विशेष दिन को यादगार बनाने के लिए बदरीनाथ मंदिर को रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया है। मंदिर की भव्य सजावट और धार्मिक अनुष्ठानों से पूरी धाम में एक दिव्य माहौल बना हुआ है।

रावल अमरनाथ नंबूदरी की विशेष भूमिका

बदरीनाथ के कपाट बंद होने की परंपरा के अनुसार रावल अमरनाथ नंबूदरी विशेष रूप से पूजा करते हैं। वे इस दौरान स्त्री भेष धारण करते हैं ताकि उन्हें श्री बदरीनाथ मंदिर के गर्भगृह में माता लक्ष्मी को विराजमान करने की अनुमति मिल सके। यह प्रथा बहुत पुरानी है और धार्मिक मान्यता के अनुसार, लक्ष्मी जी की सखी के रूप में रावल अमरनाथ नंबूदरी को गर्भगृह तक लाया जाता है।

शीतकाल में देवताओं के मुख्य अर्चक नारद जी

मान्यता के अनुसार, शीतकाल में बदरीनाथ धाम में मुख्य अर्चक नारद जी होते हैं। उनकी उपस्थिति में ही सभी धार्मिक अनुष्ठान और पूजा की जाती है। रावल अमरनाथ नंबूदरी, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल और वेदपाठी रविंद्र भट्ट द्वारा पंच पूजाओं का आयोजन किया गया, ताकि कपाट बंद होने की प्रक्रिया को पूरी विधिपूर्वक संपन्न किया जा सके।