सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमता के क्षेत्र में सीमाओं को तोड़ती तकनीक की बड़ी छलांग ने मानव जीवन के अन्य पहलूँओं के साथ ही जेल के कार्यकलापों को भी बेहतर बनाने की संभावना पेश की है। सभ्य समाज में अपराधियों को न्यायोचित सज़ा दिलाने के लिए एक भरोसेमंद और मजबूत तंत्र के विकास के लिए इन उच्च तकनीकी उपलब्धियों का अधिक से अधिक सकारात्मक रूप से उपयोग होना चाहिए।
जेल का सूचनात्मक प्रबंधन जेल सुधार की शुरुआत का पहला पड़ाव है। हरिराम नाई के युग से आगे बढ़कर जेल के भीतर एक भरोसेमंद खुफिया सूचना तंत्र का विकास हमेशा से जेल प्रशासन की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक रहा है। इसी तरह नए कैदी को सही कक्ष आवंटन जेल प्रबंधन के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। जेल की कोठरी में रहने की परिस्थितियां कैदियों के सुधार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जेल के एक ही कक्ष में साथ साथ रह रहे हरेक कैदी का अपना एक अलग व्यक्तित्व होता है जिसमें उसका चरित्र, उम्र, पारिवारिक पृष्ठभूमि, गुण, मूल स्थान, अपराध की प्रकृति आदि सम्मिलित होते है। सुधार प्रणाली को अधिक प्रभावी बनाने के लिए आवंटन प्रक्रिया में इन सभी कारकों पर बुद्धिमत्ता पूर्वक विचार करना अति आवश्यक है।
प्रशासन के विवेक पर आधारित जेल कोठरी आवंटन लंबे समय से आजमाया जा रहा तरीका है। लेकिन इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक मार्गदर्शन का अभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। फिलहाल जेल प्रशासक या जेलर कैदियों के कुछ गिने चुने चारित्रिक गुणों के आधार पर जेल में उनके लिए उपयुक्त कक्ष का आवंटन करते हैं। आमतौर पर वो देखते हैं कि एक ही कोठरी में बंद सारे कैदी एक ही जगह से ना आते हों इसके अलावा, वो नहीं चाहते कि उन कैदियों का अपराध इतिहास एक समान हो। यदि कैदी के चरित्र की विशिष्ट विशेषताओं की व्यापक जांच किए बगैर उसे कोठरी आवंटित की जाती है तो यह सुधार कार्यक्रमों पर गलत असर डालता है।
किसी भी नए कैदी के जीवन पर पर जेल के अंदर उसके निवास के हालात और माहौल का बड़ा असर पड़ता है लेकिन कारागार के भीतरी कार्य की सबसे पहली और छोटी इकाई होने के नाते, आमतौर पर इसकी अनदेखी की जाती है। सुधार कार्यक्रम में जेल प्रहरी द्वारा की जाने वाली सहायता एक बाहरी शक्ति है और एक साथ रहने वाले कैदियों का आपसी प्रभाव एक आंतरिक शक्ति है। ये दोनों शक्तियां मिलकर सुधार कार्यक्रम का परिणाम निर्धारित करती है ।
क्या वो कैदी नई परिस्थितियों में रह पाएगा, किस हद तक वो अपने आप को उस माहौल में ढाल पाएगा, उसको आवंटित कक्ष के हालात उस पर कैसा प्रभाव डालेंगे, वो पुराने कैदीयों पर क्या प्रभाव डालेगा, जेल में एक नए कैदी का शामिल होना सकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकता है या नहीं कर सकता है आदि कई ऐसे प्रश्न है जिनका तार्किक उत्तर जानने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता से बेहतर और कोई सहायक नहीं हो सकता।
देखते हैं वर्तमान में सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से चलाने में जेल प्रशासन के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता कैसे मदद कर सकती हैं और यह भविष्य की जेलों को कैसे पुनः परिभाषित करेगी। जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना एक वैश्विक समस्या है जिसके कई नकारात्मक परिणाम हैं। जैसे कैदियों और प्रहरीयों के बीच बढ़ता तनाव, जिससे आपसी हिंसा का खतरा बढ़ जाता है। जर्जर हो रही भौतिक सुविधाएं, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा और बीमारीयों का प्रसार आदि। सजा संबंधी दिशानिर्देशों का गहन अध्ययन और विश्लेषण कर परिणाम आधारित परिवर्तन के सटीक सुझाव देकर कृत्रिम मेधा जेलों की आबादी को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
सुधार प्रणालियों की असफलता जेल को कैदियों का स्थायी घर बना देती है, वो अपनी आपराधिक गतिविधियों के चलते पुनः जेल चले आते हैं। कैदियों को रखने उनको खिलाने और उनको सुरक्षा प्रदान करने में सरकारों का बहुत खर्चा होता है और पुनः लौटते कैदी देश पर आर्थिक बोझ को कई गुना बढ़ा देते है। वैश्विक स्तर पुनरावृत्ति के आंकड़े बताते हैं कि जेल छोड़ने के बाद कैदियों को सफल जीवन जीने के लिए तैयार करने के लिए जेलें अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पा रही हैं, जो एक गंभीर चूक है।
आज जरूरत है जेल को उन्नत तकनीक का उपयोग करके एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम संस्थान की तरह चलाने की जिससे कैदियों के जेल में रहने के अनुभव को बेहतर बनाया जा सके, उनपर हो रहे सकल खर्च को कम किया जा सके और अधिक से अधिक लोगों को जेल से बाहर रखने में कामयाबी मिल सके। कृत्रिम मेधा प्रणालिया इन तीनों गंभीर चुनौतियों के समाधान देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
कैदियों के बारे में उपलब्ध जानकारी जुटाकर उनका विश्लेषण कर व्यावसायिक बुद्धिमत्ता प्रोग्राम अपराध को रोकने और अपराधी को ईंट पत्थर से बनी चारदीवारी के पीछे भेजने की बजाय वैकल्पिक सजा कार्यक्रम अपनाने के सुझाव दे सकते हैं जिससे जेलों में भीड़ कम की जा सकेगी। गहन डेटा विश्लेषण से पता चल सकता है कि कुछ अपराधी जो एक निश्चित छवि या प्रोफ़ाइल में फिट बैठते हैं, उनके फिर से अपराध करने की संभावना अधिक होती है। इन मामलों में, पुलिस अधिक जोखिम वाले व्यक्तियों को परामर्श दे सकती है और उन्हें चेतावनी दे सकती है कि उनके अगले अपराध के परिणामस्वरूप उन्हें कठोर कारावास मिल सकता है। इस जोखिम-प्रबंधन दृष्टिकोण के साथ, पुलिस लोगों को आपराधिक गतिविधि और संभावित जेल की सजा से दूर रखने में मदद कर सकती है।
इसी तरह, बिग डेटा एनालिसिस का परिणाम न्यायाधीशों को किसी कैदी की पृष्ठभूमि की जानकारी प्रदाय कर सकता है जो सजा निर्धारित करने में उनका मार्गदर्शन कर सकता है। उदाहरण के लिए, आंकड़ों के सटीक विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ प्रकार के अपराधियों के जेल में खराब प्रदर्शन करने या जेल छोड़ने के बाद फिर से अपराध करने की संभावना अधिक होती है। इन अपराधियों द्वारा किए गए अपराध के लिए उपयुक्त एक सामुदायिक सेवा की सजा अधिक प्रभावी हो सकती है। इस तरह एक एक कर जेल प्रांगण में कैदियों की संख्या में कमी आएगी।
ऐसे मामलों में जहां सुनवाई में महीनों या साल भी लग सकते हैं, और अभियुक्त जो वास्तव में निर्दोष हो सकता है को इलेक्ट्रॉनिक टैग पहना कर जेल से बाहर रखना भी एक प्रभावी उपाय हो सकता है । इलेक्ट्रॉनिक रूप से ट्रैक किए गए, अहिंसक अपराधी जेल की कोठरी से बच सकते हैं और समुदाय में अपनी सजा पूरी कर सकते हैं। एक उपकरण पहनकर उत्पादक काम पर लौटने की अनुमति देना जेल प्रणाली और अभियुक्त के परिवार पर बोझ को कम करता है।
इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग, अन्य उपलब्ध आंकड़ों और जानकारी के साथ मिलकर, निगरानी व्यवस्था में काफी सुधार करती है। भू-स्थानिक मानचित्रण (जियो मैपिंग) तकनीक का उपयोग करते हुए, पुलिस अधिकारी अपराधियों की गतिविधियों के बारे में वास्तविक समय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। बाहर घूम रहा अभियुक्त किस समय कहाँ विचरण कर रहा है। इस जानकारी के होने से अधिकारियों को आवश्यकता पड़ने पर हस्तक्षेप करने, अपराधियों को सही रास्ते पर रखने और संभावित रूप से आगे अपराध होने से रोकने में मदद मिल सकती है। इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग की तरह ही मोबाइल अपराधी प्रबंधन समाधान भी कारावास की लागत का एक अंश मात्र है।
प्रौद्योगिकी न केवल अधिक अपराधियों को जेल से बाहर रखने में मदद कर रही है, बल्कि यह यह भी पुनर्परिभाषित कर रही है कि कल की जेल कैसी दिखेगी। तथ्य यह है कि अधिकांश कैदी किसी न किसी समय समाज में फिर से प्रवेश करेंगे। कैदियों का पुनर्वास, सजा या कारावास का एक प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए और इसे ध्यान में रखते हुए, जेल की दीवारों के बाहर कैदियों की सफलता की संभावनाओं को अधिकतम करने के लिए जेल क्या कर सकते हैं इस बारे में व्यापक चर्चा होना चाहिए।
बेहतर संचार माध्यमों का उपयोग, वीडियो कान्फ्रेंसिंग प्रणाली तक पहुंच के साथ, कैदी व्यावसायिक कक्षाओं को पारस्परिक रूप से ले सकते हैं और परिवार के सदस्यों के साथ बात कर सकते हैं। परिवार के साथ जुड़कर, कैदी अपने परिवार की दैनिक गतिविधियों को जारी रख सकते हैं और उन संबंधों को बनाए रख सकते हैं जिन पर उन्हें जेल के बाद भरोसा करने की आवश्यकता हो सकती है।
जेलों के भीतर कियोस्क का उपयोग करके, कैदी अपना भोजन चुन सकते हैं, अपने वित्तीय खातों को देख सकते हैं, या दोस्तों या परिवार से भेजी गई स्वीकृत तस्वीरें देख सकते हैं। कियोस्क कैदियों को बाहर से आने वाली तकनीक का उपयोग सीखाकार उनका जीवन अधिक आरामदायक बनाते हैं। जेलों में कियोस्क रखना जेल के अनुभव को बेहतर बनाने का एक और तरीका है ताकि एक बार रिहा होने के बाद कैदी फिर से जेल में ना आयें। जेल प्रशासकों के लिए कैदियों को सीखने के अवसरों से जोड़ना सर्वोच्च प्राथमिकता पर होना चाहिए। प्रशिक्षण जेल के भीतर हो सकता है या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करके कैदी दूरस्थ रूप से कक्षाएं ले सकते हैं। इस नवाचार से व्यावहारिक कौशल सीखने के साथ ही कैदियों के लिए रिहा होने के बाद काम और स्थिरता खोजना आसान हो जाता है।डिजिटल तकनीक द्वारा समर्थित, कल की जेल वही काम कर सकती है जिसके लिए जेल की परिकल्पना की गई थी या जो काम जेलों को हमेशा से करना था। न केवल अपराधियों को दंडित करना, बल्कि उन्हें जेल से लौटने के बाद बेहतर जीवन जीने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और समर्थन देना।