महेश्वर किले की कलाकृतियां, गोंड आर्ट और आदिवासी संस्कृति की बानगी बयां करता सम्मेलन

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आबिद कामदार। अत्याधुनिक तकनीक के साथ प्रदेश की हस्तशिल्प कला, कल्चर, आर्ट और अन्य चीजों के आकर्षण का केंद्र रहा सम्मेलन।

महेश्वर के किले की कलाकृतियां साड़ी पर

महेश्वर के होलकर स्टेट द्वारा निर्मित किले के अंदर उकेरी गई कलाकृतियो को प्रवासी भारतीय सम्मेलन में अलाउद्दीन अंसारी लेकर आए है। उन्होंने बताया की रेशम और सुत की मदद से महेश्वर की प्रसिद्ध निम रेशमी सडीयों की बॉर्डर पर हमने नर्मदा लहर, चटाई बॉर्डर, वी बॉर्डर, हंसा बॉर्डर, डायमंड बॉर्डर, मुखड़ा बॉर्डर को उकेरा है, जो की काफी दुर्लभ है। वह बताते है की यह कार्य उनके पूर्वज मां अहिल्या बाई होलकर के के समय से कर रहे है। पहले पगड़ी, धोती, महाराष्ट्रीयन साड़ी नवगज का निर्माण करते थे। आज के दौर के हिसाब से इन आकर्षक सड़ियो को बना रहे है।

गोंड आर्ट से तैयार किए प्रकृति के मनमोहक दृश्य

प्रवासी भारतीय सम्मेलन में भोपाल से एक ग्रुप गोंड आर्ट को लेकर आए है, जिसमें मुख्य रूप से प्रकृति की खूबसूरती को दर्शाया गया है, जिसमें हिरण मोर हाथी पेड़ पौधे, और अन्य जीव जंतुओं को दर्शाया गया है।
यह चित्रकारी हैंडमेड पेपर और कैनवास से बनाया गया है। वहीं पहले के जमाने की पद्धति से बनाए जाने वाली मिट्टी के रंग से कुछ चित्रकारी तैयार की जा रही है।

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आदिवासियों की संस्कृति को दिखाते गुड्डे गुड़िया

आदिवासियों की संस्कृति जीवन यापन को दिखाने के मकसद से।
झाबुआ आदिवासी गुड़िया शिल्प ग्रुप आदिवासी कल्चर से सम्बंधित गुड्डे गुड़िया लेकर आए है। जिसमें 5 गुड़िया का बना यह सेट भगोरिया नृत्य, ढोलक बजाते महिला पुरुष, तीर कमान और टोकरी ले जाते हुए, आदिवासियों का शस्त्र बोर्ड और गुड्डे गुड़िया के अन्य सेट लाए गए है। इनका निर्माण रूई,कपड़ा, तार, गोटा, लेस और अन्य धातुओं से किया गया है। ग्रुप को पहले भी राज्य स्तरीय पुरुस्कार से सम्मानित किया गया है।