रामशरण जोशी
“अभयजी, इंदिरा जी के तीसरे पुत्र कमलनाथ से आज यहां मध्यप्रदेश भवन में झड़प हो गई है क्या किया जाए?” “कुछ चिंता करने की आवश्यकता नहीं है अगर हम डरते रहे तो अखबार नहीं निकाल सकते। आप निश्चिंत होकर अपना काम करते रहिए बाकी मुझ पर छोड़ दीजिए।” वाक्य जनवरी 1980 का है जब इंदिरा गांधी की सत्ता में धमाकेदार पुनर वापसी हुई थी इस उपलक्ष में दिल्ली स्थित मध्यप्रदेश भवन में मध्य प्रदेश के वरिष्ठ नेता व विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अर्जुन सिंह ने इंदिरा जी के स्वागत में रात्रि भोज का आयोजन किया था। प्रदेश के तकरीबन सभी नवनिर्वाचित सांसद मौजूद थे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संजय गांधी तथा उनके परिवार के लोग भी शामिल थे। नई दुनिया में प्रकाशित छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र कि किसी चुनाव खबर को लेकर कमलनाथ जी खड़े हुए थे।
उन दिनों उन्हें इंदिरा जी का तीसरा पुत्र माना जाता था जैसे ही मेरा परिचय उनसे कराया गया कि मैं दिल्ली में नई दुनिया का प्रतिनिधि हूं यह सुनते ही उनके तेवर बदल गए उनकी तैयारियां चढ गई और अनाप-शनाप बोलने लगे सभी लोग अक्का बक्का रह गए मैंने उनके इस व्यवहार का प्रतिवाद किया। पास खड़े पत्रकार व अन्य सांसदों ने मुझे शांत रहने की नसीहत दी और कहा कि अभी कमलनाथ जी “तूफान” है। इसे गुजर जाने दो किसी ने कहा है कि अब आपकी नौकरी सुरक्षित नहीं है क्योंकि नईदुनिया और कांग्रेसका करीबी संबंध है और वैसे भी आप चरम वामपंथी पृष्ठभूमि के हैं तक इस अखबार में लंबे समय तक आपको मालिकाना रहने नहीं देंगे। निसंदेह में चिंतित हुआ और घर लौट कर अभय जी को फोन पर घटना का ब्यौरा सुना दिया। तूने मेरी आशंकाओं को तुरंत ही नकार दिया।
इस अनुभव की पृष्ठभूमि में इस चरित्र को समझा जाए श्री अभय चंद्र छजलानी और अभय जी और अब्बू जी। मैंने इस त्रिआयामी शख्सियत के साथ अपने दो दशक की पत्रकारीय पारी (1980-1999) खूब खेली जमकर खेली। यह शख्सियत एक सात पूंजीपति है और नई दुनिया के मालिक नई दुनिया के संपादक और बड़े भाई वह वरिष्ठ मित्र रही है। मैं 20 वर्षों में यह कभी तय नहीं कर पाया कि हम दोनों की संबंधी यात्रा में अब्बू जी कब कौन सी भूमिका निभाते रहे कब उनकी भूमिका बदलती रही और कौन सी भूमिका का कहां आरंभ है या समाप्त होता रहा?
अभय जी से मेरी पहली मुलाकात 1979 के मध्य नई दुनिया के दफ्तर में हुई थी उन दिनों में ग्रामीण क्षेत्रों में बंधक श्रमिक प्रथा पर खेतिहर श्रमिकों के लिए “चेतना निर्माण”शिविरों के आयोजन से जुड़ा हुआ था।
रतलाम जाते समय कुछ समय के लिए इंदौर रुका था। पत्रकारिता में लौटना चाहता था दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश के सूचना निदेशक स्वर्गीय श्याम व्यास ने संकेत दिया था कि नई दुनिया दिल्ली में अपना एक पूर्णकालिक प्रतिनिधि नियुक्त करना चाहता है इसी प्रयोजन को लेकर मैंने अभय जी से चलताऊ मुलाकात की थी। इसके पश्चात दिसंबर आते-आते नई दुनिया से जुड़ गया और मुझे पहला दायित्व लोकसभा चुनाव कवरेज का दिया गया। पश्चात जनवरी 1980 में इस पत्र के साथ मेरी विधिवत औपचारिक यात्रा की शुरुआत हो गई। मुझे याद है जब इंदिरा जी की पुनर वापसी के साथ प्रथम बजट सत्र हुआ था तब अभय जी दो-तीन दिन के लिए दिल्ली आए हुए थे।
हम दोनों एक साथ संसद भवन गए संसद के गलियारे में मध्यप्रदेश के कती पर नवनिर्वाचित युवा सांसद अभय जी से टकरा गए मैं उनके साथ ही खड़ा हुआ था उन सांसदों ने अभय जी को अलग एक कोने में ले जाकर कुछ देर बातें की सांसद सदन में लोड गए और हम दोनों पुस्तकालय की ओर बढ़ गए मुझे ना जाने क्यों शंका हुई और मैंने अभय जी से पूछ ही लिया क्या वह सांसद कोई खास खबर दे रहे थे उन्होंने कहा नहीं बस कुछ बातें कर रहे थे। फिर भी मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अभय जी से पूछ ही लिया कि आखिर वह किस प्रकार की बातें कर रहे थे अभय जी बताना नहीं चाहते थे लेकिन उन्होंने मेरे बार-बार आग्रह पर केवल इतना ही कहा वह आपको यहां से हटाना चाहते हैं।
क्या उनको मुझसे कोई प्रोफेशनल शिकायत है बिल्कुल नहीं तब वह मुझसे क्या चाहते हैं वह कुछ नहीं चाहते उनकी शिकायत यह है कि आप नक्सलवादी पृष्ठभूमि कह रहे हैं आपातकाल में आप के खिलाफ वारंट था ऐसे व्यक्ति को इतनी महत्वपूर्ण जगह पर नहीं रखा जाना चाहिए।”
तब आपका क्या उत्तर था मैंने भाई मिश्रित उत्सुकता से पूछा मैंने उनसे केवल यही पूछा कि जोशी जी की रिपोर्टिंग कैसी है क्या उसको भी अपनी विचारधारा के अनुसार ट्विस्ट तो नहीं कर रहे।