पराई होती बेटी और उसका घर-संसार

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राजकुमार जैन

आपसी बातचीत, समाचार पत्र, पत्रिका और सोशल मीडिया आदि पर पर अक्सर माता, पिता, अभिभावक और परिजन विवाह के पश्चात बिटिया के पराई हो जाने, उसके व्यवहार के बारे में अति भावुक बातें करते है, पोस्ट लिखते है और फॉरवर्ड भी करते रहते हैं, इनको पढ़कर मेरे मन में कुछ विचार आते है जो परिस्थितियों के अनुसार सही या गलत हो सकते हैं।

बिटिया बड़ी हो गई है, अब उसकी शादी करनी है, शादी के बाद वो अपना घर संसार एक नई दुनिया बसायेगी, हम सभी यही सबकुछ सोचकर ही अपनी रानी बिटिया या पापा की परी का विवाह करके उसे उसके संसार में जाने के लिए नम आंखों से विदा करते हैं, शादी की चर्चा शुरू होते ही हमें मालूम होता है कि अब वो अपना नया घर संसार बसायेगी, जो उसका अपना होगा।

लेकिन शादी पश्चात विदा होते ही हम भावुक होने लगते है और जब वो उस घर को अपना घर समझकर अपना व्यवहार बदलती है, जैसे अब वो अपना पैसा खर्च करती है, हमारे लिए अपने पैसों से कुछ खरीदकर लाती है, उस घर के रीती रिवाज मानने लगती है, वहां होने वाले समारोह, कार्यक्रम उसकी प्राथमिकता में आने लगते है, नई गृहस्थी जमाने से उपजी व्यस्तता के चलते कह देती है कि बाद में फ्री होकर बात करती हूं, तो हम उसको उल्हाना देते हुए कहने लगते हैं कि अब तुम हमारे साथ परायों समान व्यवहार करने लगी हो, तुम पराई हो गई है, मत भूलो कि यह घर तुम्हारा ही है।

मेरी बहन की दो बेटियां है, बहन की शादी के बाद से ही हर वर्ष भाईदूज बड़े उत्साह से मनाई जाती है, हमारा परिवार भी बच्चों सहित उस समारोह में भाग लेता आया है, पिछले वर्ष बड़ी भानजी की शादी हो गई, इस बार भाईदूज पर उसने अपने भाईयों यानी मेरे बच्चों और उसके अन्य कजिन्स के लिए एक कार्यक्रम स्वयम के खर्च पर अपनी मां के आयोजन से इतर आयोजित किया, मुझे यह बहुत अच्छा लगा लेकिन कुछ लोग कहने लगे यह तो अभी से हमको पराया समझने लगी है और अन्य भावुकता पूर्ण बाते कहकर उस बिटिया को दुःखी करने लगे।

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हम अभिभावकों और परिजनों को यह समझना चाहिए अब उसका अपना घर है और उसे उसके अपने घर को अपना घर समझने दें और उसे अपने घर में सुख से रहने दें । विवाह के तुरंत बाद भावनात्मक रूप से सबल होने में उसकी मदद करे, उसकी भावनाओं को समझे और उसे अपना घर संसार बसाने में मदद करे, इस तरह की नकारात्मक भावनात्मक बाते कर के उसके मन को कमजोर ना करें।

मेरी बात के मर्म को समझें और भावनात्मक तर्क ना करें, अब उसका अपना घर है और यह वो सच्चाई है जो उसकी मां, उसकी नानी, उसकी दादी आदि ने स्वीकारने में ना जाने कितने बरस लगा दिए थे।

वस्तुतः अपना स्वयम का घर एक ही होता है, मकान तो कई हो सकते है लेकिन घर… वो तो एक ही होता है ना।

बिटिया को अपने घर संसार में, नए वातावरण में, नई जमीन में जड़ें जमाने दें।

इन नासमझी से भरी और भारी मन से कही गयी भावनातमक बातों को सुनकर वो ना इधर की रह पाती है ना उधर की, उसको समझ नहीं आता कि उसका अपना घर कौनसा है ? वो उधर जमने का प्रयास करती है तो इधर वाले उसे खींचते है और इधर आती है तो वापस तो उधर जाना ही होता है।

तो उसके लिए, हम लोगों के लिए और सबके हित में बेहतर यही होगा कि उसे राजी खुशी अपना निजी घर संसार बसाने दें, इस काम में उसकी मदद करें और जो मदद ना कर सकें तो कम से कम उस पर अपनी दुर्बल भावनाओं का दबाव बनाकर उसे कमजोर ना बनाएं।

जरा सोचिए हमारे परिवार में जो बड़ी महिलाएं है उनका कहना घर कौनसा है, आपकी माँ का घर कौनसा है , आपकी दादी का घर कौनसा है, आपकी नानी का घर कौनसा है, आपकी बुआ का घर कौनसा है, क्या आप उनके मायके को उनका घर मानते हैं क्या? तो फिर अपनी बिटिया को उसका मायका क्यो बार बार याद दिलाते हैं।

सोचिए, विचारिये और अपनी बिटिया को समझाइश दीजिये कि शादी के बाद वो जिस घर में गई है वो ही उसका घर है और जितनी जल्दी वो इस बदलाव (जो कि आज नहीं तो कल घटित होकर रहेगा ही) को मन से स्वीकार कर लेगी उतने ही उसके भावनात्मक दुःख कम होंगे और नये परिवार में खुशी बढ़ेगी।

पक्के यकीन से नहीं कह सकता लेकिन इस तरह बिटिया को दो नावों की सवारी करवाना, समाज में बढ़ती जा रही पारिवारिक अशांति और विघटन का यह एक बड़ा कारण हो सकता है।