इंदौर लोक संस्कृति मंच द्वारा आयोजित मालवा उत्सव के चतुर्थ दिवस पर आज शिल्प बाजार में काफी संख्या में कलाप्रेमी पहुंचे शिल्प बाजार में मोहन प्रजापति टेराकोटा का विशाल संग्रह जिसमें कछुआ फ्लावर पॉट बुद्धा आदि है लेकर आए हैं कश्मीर से जुबेर अहमद जो कश्मीर की विशेषता पश्मीना शाल ,स्टोल ,साड़ी लेकर आए हैं । कश्मीर से ही ड्राय एप्पल, केशर, स्पेशल बादाम, ओरिजिनल मूंग, अंजीर, किशमिश लेकर मोहम्मद इरशाद डारा आएं हैं। यहां फतेहपुर सिकरी से यासीन भाई संगमरमर के आर्टिकल लेकर आए हैं जिसमें शेर, हाथी, शतरंज भी मौजूद है। वही पीतल शिल्प, पोचमपल्ली साड़ियां, महेश्वरी साड़ियां, गलीचा, ड्राई फ्लावर, बांस शिल्प, केन फर्नीचर सहित अनेकों आइटम यहां मौजूद है।
लोक कलाकारों की व्यवस्था देख रहे अमरलाल गिद्वानी ,संकल्प वर्मा, दिलीप शारदा ने बताया कि कलाकारों को बड़े दिनों बाद मंच मिलने पर वह काफी खुश नजर आ रहे हैं और उनकी यह खुशी उनके नृत्यों में भी झलकती हुई दिख रही है।
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लोक संस्कृति मंच के संयोजक शंकर लालवानी ने बताया कि आज सायंकाल सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में अरुणाचल प्रदेश से आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुत स्नोलायन डांस बड़ा ही खूबसूरत था जिसमें मानव एवं शेर के आपसी प्रेम स्नेह को दर्शाया गया इसमें लायन का मुखौटा पहनकर सुंदर दृश्य उत्पन्न किए गए। गुजरात का मनिहारी डांडिया रास पर दर्शकों की दाद बटोर गया। बैगा जनजाति का सुंदर नृत्य परघौनीजिसमें दुल्हन के भाई का स्वागत खटिया को हाथी बना कर किया जाता है बड़ी खूबसूरती से पेश किया गया। कोरकु जनजाति का नृत्य थापटी जिसमें लाल पगड़ी पहने पुरुष धोती कुर्ता में एवं महिलाएं लाल साड़ी में टीमकी चितकोरिया ,झाझ , लेकर नृत्य करती नजर आई यह चैत के महीने में गेहूं की कटाई के बाद किया जाने वाला नृत्य है। छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य जोकि गुरु घासीदास के अनुयायियों द्वारा किया जाता है ने प्रस्तुत किया जिसमें मृदंग ,झाझ, वाद्य यंत्र का प्रयोग किया गया और कई खूबसूरत पिरामिड बनाकर दर्शकों का मन मोहा बोल थे” सन्नाना नन्ना किन्ना ना दो ललना” इसमें उन्होंने धरती मां की आराधना प्रस्तुत की। स्थानीय कलाकार संजना जोशी ने अष्टनायिका प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने 8 नायिकाओं के मन के भाव को नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया “सजन घर आवो से” शुरू करके उन्होंने अंत “कृष्ण मिलन में पायल हुआ छनन छनन बाजे “से किया वही रजत पवार और साथियों द्वारा प्रस्तुत कथक नृत्य जिसमें गणपति के जीवन की घटनाओं के दृश्य को नृत्य के माध्यम से जीवन्त किया गया जिसमें उन्होंने सुरेश वाडकर की रचना हे गजानन का उपयोग किया ।वहीं गोंड जनजाति का प्रसिद्ध नृत्य थाट्या भी दर्शकों को काफी पसंद आया।
लोक संस्कृति मंच के सचिव दीपक लंवगड़े ने बताया कि कल 29 दिसंबर को शिल्प मेला दोपहर 12:00 बजे से व कला कार्यशाला दोपहर 2:00 से 4:00 बजे तक रहेगी। सांस्कृतिक संध्या सायंकाल 7:00 बजे से प्रारंभ होगी जिसमें बिहू ,राठवा, यक्षगान, पंडवानी गायन एवं जनजातीय नृत्य होंगे।