अर्जुन राठौर
इसे संयोग ही कहा जाना चाहिए कि कुछ दिनों पहले भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश ने कहा था कि देश में खोजी पत्रकारिता का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है और कुछ ही दिनों बाद दैनिक भास्कर जयपुर के संवाददाता आनंद शर्मा को बच्चों की तस्करी की महत्वपूर्ण रिपोर्टिंग के लिए रामनाथ गोयनका अवॉर्ड दिया गया है निश्चित रूप से हिंदी पत्रकारिता यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
रामनाथ गोयंका अवॉर्ड अपने आप में बेहद प्रतिष्ठित पुरस्कार है और ज्यादातर अंग्रेजी अखबारों को ही यह पुरस्कार मिलता रहा है लेकिन दैनिक भास्कर के योद्धा पत्रकार आनंद शर्मा ने जिस साहस के साथ राजस्थान में चल रही बच्चों की तस्करी के मामले उजागर किए वे वास्तव में सराहनीय है पिछले दिनों गजनी नामक एक फिल्म आई थी जिसमें बच्चों की तस्करी का मामला उठाने पर फिल्म की अभिनेत्री की तस्करों द्वारा हत्या कर दी जाती है यह फिल्म बेहद चर्चित हुई थी जाहिर है कि बच्चों की तस्करी करने वाले गिरोह देशभर में सक्रिय है और ऐसे में दैनिक भास्कर द्वारा इन तस्करों के खिलाफ मुहिम चलाकर इनकी साजिश को उजागर किया गया था वह वास्तव में मिसाल बन गया है आनंद शर्मा की रिपोर्ट छपने के बाद प्रशासन ने 1000 से अधिक बच्चों को तस्करों से छुड़ाया
सच पूछो तो देश के सर्वोच्च न्यायाधीश ने जिस खोजी पत्रकारिता की बात कही थी 70 और 80 के दशक में देशभर में खोजी पत्रकारिता का एक अलग ही दौर चला था जिसमें कमला नामक महिला की खरीदी बिक्री का मामला देश के वरिष्ठ पत्रकार ने उठाया था और उस पर बाद में फिल्म भी बनी रामनाथ गोयनका अवॉर्ड साहसी पत्रकारिता के लिए दिया जाता है और ऐसी रिपोर्टिंग करके आनंद शर्मा ने वास्तव में अद्भुत साहस का परिचय दिया है आज की नई पीढ़ी को जो पत्रकारिता में सक्रिय है उन्हें उनसे सीख लेना चाहिए क्योंकि आज की पीढ़ी के सामने पत्रकारिता का कोई आदर्श नहीं है दलाली वसूली पत्रकारिता की सफलता के मापदंड बन गए हैं ऐसे में यह पुरस्कार एक नई दिशा पत्रकारिता को दे सकता है ।