प्रदीप शर्मा
हमारी सांसों में हमारे प्राण बसे हैं और जब तक इस शरीर में प्राण है,सांस चलती रहती है । सांस का चलना और विचारों का आना जाना एक सतत प्रक्रिया है,लेकिन वह इतनी सहज है कि अनायास हमारा उस पर ध्यान नहीं जाता ।
जब हम कुछ सोचते हैं तब हमें पता चलता है,कोई विचार आ रहा है,कोई विचार जा रहा है । उनसे ध्यान हटाकर हमें किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति के बारे में सोचना पड़ता है । आप चाहें तो इसे खयाल भी कह सकते हैं । उनको देखा तो ये खयाल आया ।।
सांस का भी कुछ ऐसा ही है ।
डॉ शिवमंगल सिंह हमसे सांसों का हिसाब मांगते हैं । तुमने कितनी सांसें खींची छोड़ी है । यह पहाड़ जैसी ज़िन्दगी हम कैसे काट रहे हैं,हम ही जानते हैं । इधर हमें सांस लेने की फुरसत नहीं, और ये शिवमंगल हमसे एक एक सांस का हिसाब मांग रहे हैं । ज़रा दम लेने की फुरसत मिल जाए,पाई पाई का हिसाब दे देंगे,ये नन्हीं सी जान में,जान डालने वाली सांस का हिसाब कोई क्या बड़ी बात नहीं ।
विचारों का आना जाना संकल्प विकल्प कहलाता है । गहरी नींद में कहते हैं मन भी सो जाता है । लेकिन स्वप्न शुरू होते ही अवचेतन मन जाग उठता है । जागते सोते,उठते बैठते,खाते पीते,लड़ते झगड़ते वक्त भी हमारी सांस चलती रहती है ।
अगर सांस चली जाए,तो हम भी परलोक सिधार जाते हैं ।।
सांसों की गति हमारे जीवन की गति है । सांसों का तेज चलना ज़िन्दगी का तेज चलना है, सांसों का ठहराव ज़िन्दगी का ठहराव है । सांसों की गति ही हमारे मन की भी गति है । जो प्राणी मुंह से सांस लेते हैं,उनकी आयु सीमित रहती है । किसी श्वान को देखिए, वे हमेशा भागते रहते हैं और मुंह से ज़ोर ज़ोर से सांस लेते हैं ।
उनकी उम्र कम होती है । एक हाथी अपनी चाल से चलता है,और सौ साल की ज़िंदगी पाता है ।
ज़मीन के अंदर के प्राणियों की उम्र अधिक होती है । कछुआ और मेंढक ठंड के मौसम में सो जाते हैं,और इन्हें सांस लेने की अधिक आवश्यकता नहीं होती । इसलिए इनकी उम्र भी अधिक ही होती है । सर्प योनि से भी आसानी से मुक्ति नहीं मिलती । सांपों की उम्र भी अधिक होती है ।।
मनुष्य सांस लेते वक्त पर्यावरण से ऑक्सीजन लेता है और सांस छोड़ने के साथ कार्बन डाय ऑक्साइड छोड़ता है । जब कि पेड़ पौधे वातावरण की कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं ।
सांसों के प्राणायाम की तरह अगर हम विचारों का अनुलोम करें,अच्छे विचार सांस के साथ अंदर प्रवेश करें,और बुरे विचार सांस के साथ बाहर निकालते चले जाएं,तो प्राणायाम के साथ साथ विचारों का भी अनुलोम विलोम होता रहेगा । हमारे विचार शुद्ध हुए तो मन भी शुद्ध और वातावरण भी शुद्ध । उत्तम स्वास्थ्य के साथ चित्त भी शुद्ध हो तो क्या बात है । विचारों का अनुलोम विलोम ही हृदय मंथन है ।।