समीर पाठक
कांग्रेस परिवारवाद का दंश आज से नही बल्कि इसके जन्म से ही झेल रही है। गांधी परिवार की छांव तले पली-बढ़ी कांग्रेस में अब दूसरे परिवार भी पीछे नहीं हट रहे हैं। गांधी परिवारवाद की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब दूसरे परिवार भी मैदान में कूद पड़े है। आज हम बात कर रहे हैं ऐसे ही परिवारों की जो पार्टी को अपनी पुश्तैनी जायदात समझने लगे हैं। जिसमें पहले बात करते हैं नाथ परिवार की। जी हां मध्यप्रदेश के पूर्व पुश्तैनी मुख्यमंत्री और प्रारंभ से ही कांग्रेस में रहे कमलनाथ ने अपने बेटे नकुलनाथ (सांसद) को युवा नेतृत्व का जिम्मा सौंपा है। हालांकि इस नेतृत्व में और भी परिवारों के चिरागों को शामिल किया है।
नकुलनाथ प्रदेश में आगामी समय में होने वाले उप चुनावों में युवाओं का नेतृत्व करेंगे। मतलब साफ है कि उपचुनाव तो एक बहाना है। तैयारी 2023 के विधानसभा चुनाव की है। कमलनाथ सीधे तौर पर अपने बेटे को 2023 में मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रोजेक्ट करना चाहते हैं। अभी उपचुनाव में क्या होगा, कांग्रेस को इस बात का पता नही है लेकिन 2023 की तैयारी अभी से शुरू हो गई है। मजेदार बात ये है कि तैयारी जमीनी स्तर से शुरू नही हुई हैं। बल्कि बात सीधे सीएम पद को लेकर है।
बात पुन: परिवारवाद की करें तो पार्टी में गुटबाजी, विरोध और असंतोष होने के बावजूद कांग्रेस के सीनियर नेता बाज नहीं आ रहे हैं। पार्टी गर्त में जाती जा रही है और सीनियर नेता अपने बेटों को स्थापित करने पर तुले है। वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस में योग्यता-अयोग्यता कोई मायने नही रखती है। योग्य व्यक्ति को किनारे कर अयोग्यों को आगे बढ़ाने की होड़ सी लगी है। यहां बात सिर्फ कमलनाथ तक सीमित नही है। राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह का भी पुत्र मोह जगजाहिर है। राजस्थान में अशोक गहलोत है तो छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी पी.एल. पुनिया हैं, जो अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। जहां तक गांधी परिवार के परिवारवाद की बात करें तो इस परिवार में राहुल गांधी की बात छोड़ दे, तो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जैसे योग्य नेताओं ने अपनी अमिट छाप छोटी है।
इन्होंने देश के लिए बहुत कुछ किया भी है, हम यह भी कह सकते हैं कि योग्य थे। यदि व्यक्ति में योग्यता होती है तो आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसा भी नही है कि कांग्रेस में योग्य नेताओं की कमी है। परिवारवाद से हटकर नेताओं में वह काबिलियत है जो पार्टी को चला सकते हैं। लेकिन जर्बदस्ती नेताओं को थोपने से पार्टी के अंदर माहौल खराब होता है। योग्य नेताओं का मनोबल टूटता है। कांग्रेस की अंदरुनी खींचतान की प्रमुख वजह भी यही है। योग्यता पर आयोग्यता हावी है। सिंधिया और पायलट का पार्टी से मोहभंग होना इसी का नतीजा है।
पार्टी के फैसलों ने कांग्रेस के राजतंत्र की परिभाषा ही बदल दी है। ऐ नये तरह का राजतंत्र स्थापित करने की कोशिशें की जा रही है। अब ऐसा लगने लगा है कि पार्टी विशेष परिवारों की हो गई है। काबिल नेताओं को दरकिनार कर अयोग्यों को बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं। कमलनाथ ने जिस तरह से अपने बेटे को प्रोजेक्ट किया है उससे तो यही लगता है कि नकुलनाथ वर्तमान समय में सबसे योग्य हैं। निश्चित तौर पर वर्षों से प्रदेश की राजनीति में जिन्होंने मेहनत की है उनका मनोबल टूटेंगा। कुछ भी हो बीजेपी में यह परंपरा अभी तो नही है। उसमें योग्यता को वरीयता दी जाती है। कांग्रेस को बीजेपी से ये गुण जरूर सीखना होगा। देश की जनता ने कांग्रेस में वंशवाद के बढ़ते चलन के कारण सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है और अगर कमलनाथ जैसे पुत्र मोही नेताओं का मोह भंग नही हुआ तो पार्टी छिन्न-भिन्न हो जायेगी।