कोई रोता बिलखता दिखे
तो उसे हिम्मत दे देना
आँसू की बूँदो को
रूमाल से पोछ देना
उसके तन के कपड़े
थोड़े ठीक कर देना
ममत्व थोड़ा दे देना
भूखे को रोटी खिला देना
उसकी गुज़र बसर हो जाए
ऐसी अलख जगा देना
अपनी ख़ुशी में से
थोड़ी उसे दे देना
कुछ लोग जरा से सहारे से
मंज़िल पा लेते है
उसके कँटीले रास्तों को
थोड़ा महका देते है
जीवन तो सबको मिलता है
मंज़िले पर जाने के लिए
सीढ़ियाँ तो चढ़नी ही होगी
धूप छाँव तो ज़िंदगी की कहानी है
प्रभु की रची बसी यह दुनिया है
अनेक रंगो में रंगी इंसानी दुनिया है
बदलते मौसम की तरह
यह बदलती दुनिया है
झूठ सच के जीवन से
गुजरती दुनिया है
ख़ूब सपनो में यह सजती है
खिलती बहार में
यह रोती मुस्कुराती
चलती ही रहती है
आओ देवेंद्र चलो चलते है
दुखी चेहरे पर मुस्कान लाते है
फिर आराम से कहीं
शकुन से आराम करते है
हर राहगीर को पल पल
अपना यह संदेश देते है ।
देवेन्द्र बंसल
इंदौर मध्यप्रदेश
स्वरचित रचना