जिज्ञासा और वैचारिक प्रश्न?

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शशिकान्त गुप्ते का व्यंग्य

कोरोना महामारी के फैलने की संभावनाओं को लेकर कुछ व्यावहारिक प्रश्न उपस्थित होते हैं।साधारण रूप से आम नागरिक की जिज्ञासा भी है।
कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं।रोज बढ रहे हैं।यत्र-तत्र-सर्वत्र बढ़ हैं।जब बढ़ रहे हैं,तब यह मान लेना चाहिए कि,घट भी रहे होंगे?क्या घटने का कोई महत्व नहीं है?महत्व बढ़ रही संख्या का ही है?
बढ़ रहे हैं,वाक्य पर ही प्रश्न उपस्थित होता है?क्या डिटेक्ट होने का मतलब यह समझना चाहिए कि,बढ़ रहे हैं?
डिटेक्ट होना तो सकारात्मक है।बीमारी डिटेक्ट होगी तो इलाज भी होगा,या हो सकता है।
एहतियात बरतने की सलाह देना तो उचित है।व्यावहारिक सवाल तो यह है कि,लोगों को दहशत में रखना चाहिए?
सामान्य ज्ञान कहता है,किसी भी व्यक्ति को कोई भी बीमारी होते ही,व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती है।
लगभग सभी बीमारियों संक्रमित होती है।स्वच्छता रखना तो स्वाभाविक तौर पर अनिवार्य है।
कोरोना के लिए भी रखना जरूरी है।
जो लोग कोरोना पॉजिटिव हो रहे हैं,क्या सभी के शरीर में बीमारी की तीव्रता एक सी है?चिकित्सा विज्ञान के अनुसार ऐसा सम्भव है?
हर एक व्यक्ति की शारीरिक रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता में भिन्नता है,तब रोग की तीव्रता एक सी हो नहीं सकती है?
जब से कोरोना महामारी की दहशत फैली है,तब इस रोग दवाई खोजने के समाचारों की तुलना में, रोग बढ़ने के समाचारों की संख्या,दिन दूनी रात चौगुनी हो रही है।
जिन लोगों को कोरोना हो रहा है,उन लोगों को पूर्व से ही अन्य बीमारियां है या नहीं यह दर्शना जरूरी नहीं है?कोरोना पॉजिटिव लोगों में रक्तचाप, मधुमेह,हॄदय सम्बन्धी रोग या अन्य कोई रोग पहले से उनके शरीर में है या नहीं?यह भी दर्शाया जाना चाहिए?
ऐसा करने से लोगों को एहतियात बरतने में मदद मिलेगी।
कोरोना के दौरान जितने भी लोगों की मृत्यु हो रही है क्या,उन सभी की मृत्यु का कारण सिर्फ और सिर्फ कोरोना ही है?
उपर्युक्त claassification अर्थात वर्गीकरण कौन करेगा?करना चाहिए अथवा नहीं?
ऐसे अनेक प्रश्न जब उपस्थित होते हैं तब एक व्यावहारिक सवाल भी उपस्थित होता है कि, इसके पीछे कोई व्यापारिक दृष्टिकोण तो नहीं है?
कोरोना के महामारी के पूर्व भी यदि किसी व्यक्ति को कोई भी शारीरिक रोग होता या व्यक्ति को बीमारी होने का आभास होता तब वह चिकित्सक के पास जाता ही है।प्रायः देखा जाता है,चिकित्सक बीमार व्यक्ति के शरीर में विभिन्न रोगों की संभावना प्रकट करते हैं।सम्भवना प्रकट करते हुए विभिन्न प्रकार की जांचे करवातें हैं।इसे कहते हैं बहुत से रोगों को suspect करना।जितनी तरह की जांचे होती है,सभी तरह की जाँच का शुल्क मरीज़ से वसूला जाता हैं।suspect करना और सीधे सीधे ditect करने में बहुत अंतर है।शायद इसीलिए कर्मशियल एंगल होने संभावना प्रकट की जा सकती है?
मुख्यमुद्दा है, एहतियात और दहशत के अंतर को समझना।
समझाईश देना और धमकी देने में यही अंतर है।
उपर्युक्त सारे मुद्दे मनोविज्ञान के की भाषा में सकारत्मक सोच को बढ़ावा देने वाले हैं।
यह सारे लेखक के निजी विचारों के साथ,जागरूक नागरिक की जिज्ञासा भी है।
इन विचारों को कोई भी अन्यथा न ले।
किसी को आहत करने की कोई मंशा नहीं है।क्षमा चाहते हुए यहीं पर इन वैचारिक प्रश्नों को पूर्ण विराम।