मध्य प्रदेश में विकास और वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन साधने वाली एक बड़ी परियोजना पर काम शुरू हो गया है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने राज्य में 961 किलोमीटर लंबे फोरलेन ‘टाइगर कॉरिडोर’ के निर्माण की प्रक्रिया तेज कर दी है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर करीब 5500 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
इस विशेष कॉरिडोर का ऐलान केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 23 अगस्त को जबलपुर में एक कार्यक्रम के दौरान किया था। उन्होंने इसे वन्यजीवों, विशेषकर बाघों की सुरक्षित आवाजाही के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया था। घोषणा के बाद अब NHAI ने इसका रोडमैप तैयार कर काम को गति दे दी है।
क्यों खास है यह टाइगर कॉरिडोर?
यह कॉरिडोर सिर्फ एक आम फोरलेन सड़क नहीं होगी, बल्कि इसे इस तरह से डिजाइन किया जाएगा कि बाघ और अन्य वन्यजीव बिना किसी खतरे के सड़क पार कर सकें। मध्य प्रदेश, जिसे ‘टाइगर स्टेट’ के रूप में भी जाना जाता है, में बाघों की एक बड़ी आबादी है। अक्सर हाईवे पार करते समय जानवर वाहनों की चपेट में आ जाते हैं। यह कॉरिडोर इसी गंभीर समस्या का एक स्थायी समाधान पेश करेगा।
इस कॉरिडोर के तहत संवेदनशील हिस्सों में जानवरों के लिए विशेष अंडरपास, ओवरपास और एलिवेटेड सेक्शन बनाए जाएंगे। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि जानवरों को जंगल के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने के लिए एक सुरक्षित और निर्बाध रास्ता मिल सके। यह कदम मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में भी बेहद मददगार साबित होगा।
परियोजना का विशाल नेटवर्क और लागत
इस प्रोजेक्ट की कुल लंबाई 961 किलोमीटर होगी, जो राज्य के कई महत्वपूर्ण वन्यजीव क्षेत्रों से होकर गुजरेगा और उन्हें आपस में जोड़ेगा। इसके निर्माण पर 5500 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि खर्च की जाएगी। यह निवेश न केवल बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी देश के लिए एक मिसाल कायम करेगा।
NHAI ने संभाला मोर्चा
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) इस पूरे प्रोजेक्ट की नोडल एजेंसी है। प्राधिकरण ने परियोजना का विस्तृत रोडमैप तैयार कर लिया है और विभिन्न चरणों में इसका निर्माण कार्य शुरू किया जा रहा है। गडकरी की घोषणा के बाद से ही प्राधिकरण ने इसे अपनी प्राथमिकता में शामिल कर लिया है, ताकि प्रोजेक्ट को समय पर पूरा किया जा सके। यह परियोजना भविष्य में बनने वाले अन्य राजमार्गों के लिए एक मॉडल के रूप में भी काम करेगी, जो पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों से होकर गुजरते हैं।









