
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बनते रणनीतिक गठजोड़ को भारत के लिए एक गंभीर सुरक्षा खतरा बताया है। उन्होंने कहा कि इन तीनों देशों के हितों में संभावित अभिसरण (alignment) भारत की स्थिरता और सुरक्षा गतिशीलता पर सीधा असर डाल सकता है।
जनरल चौहान ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि हिंद महासागर क्षेत्र में आर्थिक अस्थिरता के कारण बाहरी शक्तियां इन देशों पर अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं, जिससे भारत की सामरिक स्थिति कमजोर हो सकती है। उन्होंने बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत आगमन को भी एक चिंताजनक संकेत बताया।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ बना उदाहरण: दो परमाणु संपन्न देशों की सीधी भिड़ंत
जनरल चौहान ने हालिया सैन्य संघर्ष ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर कहा कि यह एक ऐतिहासिक घटना है क्योंकि शायद यह पहली बार है जब दो परमाणु हथियार संपन्न देश – भारत और पाकिस्तान – खुले रूप में सैन्य टकराव में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ओर से परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी को भारत ने दृढ़ता से नकारा और सीधे आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। उन्होंने जोर दिया कि भारत का “नो फर्स्ट यूज़” (NFU) वाला परमाणु सिद्धांत हमें सामरिक मजबूती देता है और पारंपरिक युद्धक्षेत्र में प्रभावी प्रतिक्रिया की स्वतंत्रता देता है।
पारंपरिक युद्ध की संभावनाएं अब भी ज़िंदा
CDS चौहान ने इस बात को रेखांकित किया कि पारंपरिक युद्ध की भूमिका आज भी प्रासंगिक है, विशेषकर जब परमाणु धमकी को नियंत्रित किया जाए। उन्होंने कहा कि भारत ने आतंकवादी हमलों के जवाब में ठोस और सीमित पारंपरिक सैन्य कार्रवाई की, जिससे बड़े युद्ध का खतरा नहीं बढ़ा लेकिन आतंकवाद को स्पष्ट संदेश जरूर गया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान ने संघर्ष को पूरी तरह पारंपरिक मोर्चे तक सीमित रखा, जिससे यह साबित हुआ कि परमाणु विकल्पों का प्रयोग करना उसकी रणनीति में फिलहाल शामिल नहीं है।
नई सैन्य चुनौतियों में साइबर, स्पेस और ड्रोन अटैक शामिल
जनरल चौहान ने कहा कि आज की जंग सिर्फ ज़मीनी या समुद्री नहीं रह गई है, बल्कि अब यह साइबर, अंतरिक्ष और विद्युत-चुंबकीय क्षेत्रों तक विस्तारित हो गई है। उन्होंने चेताया कि भारत को हाइपरसोनिक मिसाइल, क्रूज मिसाइल और ड्रोन हमलों से निपटने के लिए नई सुरक्षा रणनीति और प्रणालियों की जरूरत है, क्योंकि वर्तमान में ऐसी तकनीकों के खिलाफ कोई अचूक रक्षा प्रणाली मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में लंबी दूरी के हमलों के खतरे और तकनीकी क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए भारत को अपनी सुरक्षा नीति को व्यापक और आधुनिक बनाना होगा।