Monsoon Tradition : मानसून की दस्तक से पहले हर कोई जानना चाहता है कि इस बार मौसम कैसा रहेगा? क्या मानसून में जोरदार बारिश होगी या सिर्फ हल्की फुहारें बरसने वाली है। जहां आमतौर पर लोग मौसम पूर्वानुमान के लिए आईएमडी की भविष्यवाणी पर भरोसा करते हैं। वही मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में कहानी थोड़ी अलग है।
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के ग्रामीण आज भी कौओं की हरकत और उनके घोसलों की स्थिति देखकर सटीक अनुमान लगा लेते हैं। यह न केवल एक पुरानी परंपरा है बल्कि अब भी किसानों की खेती बाड़ी की योजना इसी के अनुसार बनाई जाती है।

मौसम विभाग से ज्यादा कौए पर भरोसा ?
ग्रामीणों का कहना है कि कौआ एक बेहद बुद्धिमान और संवेदनशील पक्षी है।जिसकी गतिविधि से मौसम के बदलाव का अनुमान लगाया जा सकता है। गांव की यह मान्यता वर्षों से चली आ रही है कि यदि कौआ मोटी और मजबूत डाल पर घोंसला बनाता है तो यह इस बात का संकेत है कि आने वाले मानसून तेज बारिश और आंधी तूफान लेकर आएगा। इसका कारण है कि कौआ जानता है कि उसे अपने अंडे और बच्चों को सुरक्षित रखना है। इसलिए वह मौसम के हिसाब से मजबूत जगह का चुनाव करता है।
वहीं यदि कौआ पतली, हिलने वाली और कमजोर टहनी पर घोंसला बना रहा है तो इसका मतलब है कि इस साल हल्की बारिश होगी और मौसम शांत रहेगा।
ग्रामीणों के मुताबिक कौए के मौसम मापने की इंद्रियां काफी तेज होती है। जैसे ही हवा में नमी बढ़ती है या तापमान में गिरावट आती है, कौए के व्यवहार में बदलाव आने लगता है। वह अपने खाने-पीने की सामान जल्दी छुपाने लगते हैं। घोसलों की बार-बार मरम्मत करते हैं और कुछ समय तक बार-बार एक ही दिशा में उड़ान भरते हैं। यह सभी गतिविधि ग्रामीणों के लिए यह संकेत होती है कि मौसम बदलने वाला है।
रखते हैं कौए की हरकतों पर नजर
खरगोन जिले के भीकनगांव, झिरन्या जैसे इलाके में ग्रामीण आज भी मानसून से पहले पेड़ पेड़ जाकर कौए के घोसले का निरीक्षण करते हैं। वह देखते हैं कि आखिर किस दिशा में कौए ने अपना घोंसला बनाया है? वह कितनी ऊंचाई पर है? किस प्रकार की शाखा पर कौए का घोंसला बनाया गया है? क्या घोसला ज्यादा ढका हुआ है या फिर इसे खुला छोड़ गया है? यह सभी संकेत स्थानीय किसानों के लिए बड़े कारगर होते हैं और इसी संकेत से किसान तय करते हैं कि कब कौन सी फसल बोवनी है ताकि संभावित बारिश के असर का उन्हें अधिक लाभ मिल सके।
यह जानकारी इस तरफ भी इशारा करती है कि प्राकृतिक संकेत को समझना और उनसे तालमेल बिठाना ग्रामीण जीवन का हिस्सा रहा है। आज जब वैज्ञानिक उपकरण और सैटेलाइट आधार मौसम पूर्वानुमानों का दौर है, तब भी ग्रामीणों के लिए पुरानी परंपरा आज भी प्रासंगिक और भरोसेमंद बनी हुई है।