एमपी में यहां बना देश का दूसरा साउंडप्रूफ कॉरिडोर, अब 12 किमी का सफर होगा सुरक्षित और रोमांचक

मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के रातापानी टाइगर रिजर्व में देश का दूसरा साउंडप्रूफ और लाइटप्रूफ वाइल्डलाइफ कॉरिडोर तैयार हुआ है, जिसमें 7 अंडरपास और 3-3 मीटर ऊंची बाउंड्री वॉल शामिल हैं। यह वन्यजीवों की सुरक्षित आवाजाही और तेज़, सुगम यातायात का सुंदर समन्वय प्रस्तुत करता है।

Srashti Bisen
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मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित रातापानी टाइगर रिजर्व अब देश के उन चुनिंदा संरक्षित क्षेत्रों में शामिल हो गया है, जहां साउंडप्रूफ और लाइटप्रूफ वाइल्डलाइफ कॉरिडोर बनाया गया है। यह भारत का दूसरा ऐसा कॉरिडोर है, जो पेंच टाइगर रिजर्व के बाद तैयार किया गया है।

यह विशेष कॉरिडोर करीब 12 किलोमीटर लंबे हाइवे को कवर करता है और चारों ओर घने जंगलों से घिरा है, जिससे सफर रोमांचक और सुरक्षित दोनों हो गया है।

वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए तकनीकी व्यवस्था

इस कॉरिडोर की सबसे खास बात है कि यहां 7 अंडरपास बनाए गए हैं – 5 बड़े और 2 छोटे। इनकी मदद से जंगल के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में वन्यजीव बिना किसी बाधा के सुरक्षित आ-जा सकते हैं। वाहन अब कॉरिडोर के ऊपर से गुजरते हैं, जिससे जानवरों को सीधा रास्ता मिल गया है और उनका जीवन खतरे में नहीं पड़ता।

नोइज और लाइट से पूरी तरह सुरक्षित गलियारा

कॉरिडोर के दोनों ओर 3-3 मीटर ऊंची बाउंड्री वॉल बनाई गई है, जिसमें पॉलीकार्बोनेट शीट से बने नोइज बैरियर्स लगाए गए हैं। ये साउंड को अंदर जंगल में प्रवेश करने से रोकते हैं और साथ ही वाहनों की हेडलाइट की चमक भी वन्यजीवों को प्रभावित नहीं करती। इंसुलेशन मटेरियल के उपयोग से यह पूरी संरचना वन्यजीवों के लिए सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनी हुई है।

सफर हुआ तेज और सुगम

एनएचएआई के प्रोजेक्ट डायरेक्टर देवांश के अनुसार, इस हाईटेक कॉरिडोर की सड़क 18 मीटर चौड़ी है। पहले 12 किलोमीटर का यह सफर आधे घंटे में तय होता था, लेकिन अब यह दूरी मात्र 10 मिनट में पूरी हो जाती है। इससे न सिर्फ पर्यटकों को सुविधा मिली है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी बना है।

पर्यावरण और विकास का सुंदर समन्वय

रातापानी में बना यह साउंडप्रूफ कॉरिडोर पर्यावरण संरक्षण और विकास का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह न केवल वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि यात्रियों के लिए भी एक रोमांचक और सुविधाजनक अनुभव प्रदान करता है। इस पहल से उम्मीद की जा रही है कि देश के अन्य टाइगर रिजर्व और वन्यजीव अभयारण्यों में भी ऐसी तकनीक अपनाई जाएगी।