खंडवा लोकसभा उपचुनाव: शिवराज दोहराएंगे 2015 की गलती या लेंगे सबक

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कोरोना के मामले कम होने के साथ ही मध्‍यप्रदेश की राजनीतिक फिजाओं में फिर से उपचुनाव की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है। खंडवा और तीन विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं जिसमें से खंडवा लोकसभा सीट शिवराज सिंह चौहान और मध्‍यप्रदेश भाजपा संगठन के लिए नाक का विषय बन गई है। खंडवा लोकसभा सीट यहां के सांसद और बीजेपी के पूर्व प्रदेशाध्‍यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के निधन से खाली हुई है।

खंडवा लोकसभा सीट में आठ विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें से खंडवा की तीन, बुरहानपुर की दो, खरगौन जिले की दो और 1 सीट देवास जिले की शामिल है। भौगोलिक रुप से खंडवा लोकसभा क्षेत्र बेहद फैला हुआ है और चार जिलों की विधानसभा सीटों के कारण यहां दोनों ही पार्टियों के लिए सर्वमान्‍य नेता ढूंढना मुश्किल भरा रहा है।

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इस लोकसभा उपचुनाव में खंडवा और आसपास के लिए सबसे बड़ा मुद्दा स्‍थानीय उम्‍मीदवार भी है। अब तक हुए कुल 17 लोकसभा चुनाव में 13 बार बुरहानपुर में रहने वाले व्‍यक्ति को ही जीत मिली है। स्‍व.नंदकुमार सिंह चौहान भी बुरहानपुर के आगे महाराष्‍ट्र की सीमा से लगे शाहपुर के रहने वाले थे। इस कारण खंडवा एवं लोकसभा क्षेत्र के बाकी हिस्‍सों के लोगों के लिए अपने ही सांसद से मिलना मुश्किल हो जाता है। खंडवा के कई भाजपा कार्यकर्ता और युवा इस बार खंडवा के किसी उम्‍मीदवार को ही सांसद बनते देखना चाहते हैं।

दोनों ही पार्टियों के उम्‍मीदवारों की बात करें तो कांग्रेस से अरुण यादव टिकट के सबसे मजबूत दावेदार हैं। वे खरगौन जिले से आते हैं और 2009 में चुनाव जीत भी चुके हैं। इस बार भी वे पूरी ताकत से जनसंपर्क में जुट चुके हैं ओर अपना टिकट पक्‍का मानकर चल रहे हैं।

वहीं भाजपा से स्‍व.नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान और पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस के नाम सामने आते हैं। खंडवा सांप्रदायिक रुप से बेहद संवेदनशील शहर है और ऐसे में राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की राय भी बेहद महत्‍व रखती है। दरअसल, राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जानता है कि खंडवा के चुनाव परिणामों का असर प्रदेश के साथ-साथ उत्‍तरप्रदेश चुनाव पर भी पड़ेगा ऐसे में संघ किसी भी कीमत पर इस सीट को हारना नहीं चाहता और माना जा रहा है कि संघ भी प्रखर हिंदूवादी चेहरे अशोक पालीवाल का नाम आगे बढ़ा सकता है।

भाजपा के लिए दमोह उपचुनाव में हार के घाव अब भी ताजे हैं ऐसे में शिवराज सिंह चौहान और वीडी शर्मा के लिए खंडवा लोकसभा उपचुनाव प्रतिष्‍ठा का विषय बन चुके हैं। कई पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पसंद नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान है वहीं संगठन में अभी इस विषय पर रायशुमारी चल रही है।

पूर्व मंत्री अर्चना चिटनीस 2018 का विधानसभा चुनाव एक निर्दलीय के हाथों हार चुकी हैं लेकिन वे भाजपा में अपने संपर्कों के सहारे टिकट की जोड़तोड़ में लगी है। डीजल की बढ़ती कीमतें, महंगाई और कोविड के मिस मैनेजमेंट के बीच हो रहे इस उपचुनाव की अहमियत क्‍या है ये भाजपा द्वारा इस सीट के लिए बनाई गई भारी-भरकम कमेटी से ही समझ में आती है। शिवराज सिंह और वीडी शर्मा की जोड़ी ने हर विधानसभा के लिए एक मंत्री, एक संगठन के व्‍यक्ति समेत कई सांसदों को भी जिम्‍मेदारी दी है।

हालांकि, 2015 के झाबुआ-रतलाम लोकसभा उपचुनाव में भी शिवराज ने ऐसी ही भारी भरकम टीम मैदान में उतारी थी लेकिन उस सीट पर कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने भाजपा की निर्मला भूरिया को हरा दिया था। 2015 में झाबुआ के तत्‍कालीन सांसद दिलीपसिंह भूरिया के निधन के बाद उनकी बेटी और विधायक निर्मला भूरिया को सहानुभूति वोट मिलने की आशा में टिकट दिया था लेकिन 15 मंत्री, 16 सांसद और करीब 100 विधायकों की ड्यूटी लगाने के बाद भी शिवराज सिंह चौहान को यहां हार मिली थी।

मुख्‍यमंत्री के तौर पर खुद शिवराज सिंह चौहान ने पूरी ताकत झोक दी थी और 2,000 करोड़ से ज्‍यादा की घोषणाएं की थी और वोटिंग के 5 दिन पहले से ही सीएम ने एक दिन में 6-6 सभाएं ली थी लेकिन कांग्रेस ने यहां पर 1 लाख से ज्‍यादा वोटों से जीत दर्ज की थी। भाजपा ने राष्‍ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खास और इंदौर की 2 नंबर सीट से विधायक रमेश मेंदोला की ड्यूटी भी झाबुआ उपचुनाव में लगाई थी जो भोजन-भंडारे और उपहार बांट कर चुनाव जीतने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। रमेश मेंदोला ने उनकी ट्रेडमार्क स्‍टाइल में सारे तामझाम किए लेकिन वोटरों का मन भांपने में नाकाम रहे।

यहां झाबुआ लोकसभा का जिक्र करना इसलिए जरुरी है क्‍योंकि खंडवा के वर्तमान राजनीतिक हालात भी काफी कुछ मिलते-जुलते हैं। खंडवा में भी सांसद के निधन के बाद ही उपचुनाव हो रहे हैं और उनके बेटे को टिकट देने की मांग हो रही है लेकिन पिता के नाम के अलावा उनकी अपनी राजनीतिक जमापूंजी कुछ नहीं है। वे ना तो युवा मोर्चे में सक्रिय रहे हैं और ना ही बुरहानपुर के बाहर उनकी कोई खास पहचान है। इतना ही नहीं, नंदकुमार सिंह चौहान के भाजपा प्रदेशाध्‍यक्ष रहते वे कई बार विवादों में भी रहे हैं और उनकी भाषा के कारण कई पत्रकार भी उनसे बात करना पसंद नहीं करते। वैसे आश्‍चर्य का विषय है कि एक तरफ भाजपा कहती है कि हमारे यहां संगठन चुनाव लड़ता है वहीं विश्‍व का सबसे बड़ा दल होने का दावा करने वाली पार्टी सहानुभूति की बैसाखी खोजती है। इसी सहानुभूति की बैसाखी के लालच में झाबुआ में शिवराज सिंह चौहान को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी।

वंशवाद के नाम पर दिन-रात राहुल गांधी का विरोध करने वाली भाजपा ने 2020 के आगर-मालवा उपचुनाव में भी मनोहर ऊंटवाल के निधन से खाली हुई सीट पर उनके बेटे को टिकट दिया था लेकिन कांग्रेस के विपिन वानखेड़े ने भाजपा को उसके घर में ही हरा दिया। जब खुद मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कुर्सी हिलने की खबरें आती रहती है तब नेता पुत्र पर दांव लगाना उनके लिए भारी पड़ सकता है। साथ ही, प्रदेशाध्‍यक्ष वीडी शर्मा भी खंडवा उपचुनाव में हार का कलंक अपने माथे पर नहीं लेना चाहेंगे।