राजेश राठौर
जनसंघ के जमाने में मध्य भारत और उज्जैन इलाके में पार्टी की जड़ें जमाने वाले पूर्व मंत्री बाबूलाल जैन ने आज सुबह आखिरी सांस ले ली। कुशाभाऊ ठाकरे के जमाने के नेता रहे जैन के बारे में ये कहा जाता था कि उनका नाम तो बाबूलाल है, लेकिन असल में वो मिश्रीलाल हैं। कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं और जनता से इतना मीठा बोलते थे कि हर कोई उन्हें मिश्रीलाल कहने लगा था। सामान्य परिवार में जन्मे जैन की चुनाव लडऩे की कभी कोई मंशा नहीं रही। जनसंघ का काम वो करते थे। 1972 में अटल विहारी वाजपेयी उज्जैन गए थे। वहां के कार्यकर्ता हुकमचंद कछवाया के यहां भोजन कर रहे थे, तब भोजन परोसने का काम बाबूलाल जैन कर रहे थे। उस समय जैन जनसंघ के मंत्री थे।
अटल विहारी वाजपेयी ने भोजन करते-करते बाबूलाल जैन से पूछा चुनाव लड़ोगे, तो वो बोले कि जैसा आप तय करेंगे। दूसरे दिन क्षीरसागर की आम सभा में बाबूलाल जैन के उम्मीदवार बनाने की घोषणा हो गई। उस समय उज्जैन में प्रकाशचंद सेठी की तूती बोला करती थी। जैन को सेठी ने पहला चुनाव ही 15 हजार 119 वोटों से हरा दिया। जैन उज्जैन के माधव कॉलेज के पास वाली दुकान से साइकल लेकर प्रचार करने जाते थे। साइकल के किराये के पैसे कई दिनों बाद देते थे। माइक वाले को भी देने के लिए पैसा उनके पास नहीं होता था। छत्री चौक में सभा करने के लिए मुल्लाजी से लाइट कनेक्शन लेते थे।
एक बार बाबूलाल जैन ने अपनी राजनीतिक कहानी सुनाते हुए बताया था कि 1952 में जनसंघ की स्थापना के बाद, उज्जैन में पहली बार मीटिंग हुई, तो जैन को टाटपट्टी बिछाने की जिम्मेदारी मिली थी। वो उज्जैन और देवास जिले की अलग-अलग विधानसभाओं से सात चुनाव लड़े, लेकिन जीते तीन बार ही। कार्यकर्ताओं में भी वे लोकप्रिय थे कि कई बार उनको डैडी कहकर भी सब पुकारते थे। सुंदरलाल पटवा सरकार में 1992 के सिंहस्थ में वो प्रभारी मंत्री थे। इसके अलावा वाणिज्यकर मंत्री भी थे। पटवा की तरह बोलने में तो कड़क नहीं थे, लेकिन सरकारी कामकाज के मामले में वो लापरवाही बर्दाश्त नहीं करते थे। मंत्री रहते हुए दौरे के दौरान सेल टैक्स की चौकियों पर कई बार छापा मारते थे। अफसर उनके नाम से घबराते थे।
पटवा सरकार में बाबूलाल गौर और निर्भयसिंह पटेल के अलावा बाबूलाल जैन ऐसे मंत्री थे, जो अफसरों को डपटने में देर नहीं करते थे। मेरी मुलाकात उनसे सिंहस्थ के दौरान हुई थी, तब वहां कई काम हुए थे, लेकिन देर से काम शुरू होने के कारण परेशानी हुई थी, लेकिन उन्होंने अफसरों से कह दिया था कि भले ही काम न हो, लेकिन गलत मत करना। घटिया निर्माण मुझे बर्दाश्त नहीं होगा। कुशाभाऊ ठाकरे और संघ के नेताओं के साथ कदम से कदम मिलाकर काम करने वाले नेताओं में उनकी गिनती थी। चुनाव हारने के बाद 2008 में सामान्य निर्धन वर्ग आयोग का अध्यक्ष उन्हें बनाया था। 2011 में वे राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने। उ”ौन की राजनीति में वे हमेशा इस बात की चिंता करते थे कि कुछ भी हो जाए पार्टी कमजोर नहीं होना चाहिए। इसके बाद जैन पार्टी का काम करते रहे। 26 जून 1975 को आपातकाल लगते ही जैन को गिरफ्तार कर लिया।