अरविंद तिवारी
📕 बात यहां से शुरू करते हैं
🚥 योगी आदित्यनाथ ने जो तेवर दिखाए हैं उसके बाद मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कमजोर आंकना एक बड़ी भूल होगी। शिवराज सरल हैं, सहज हैं और संवेदनशील हैं लेकिन लापरवाह बिल्कुल नहीं। उनका मैनेजमेंट कमजोर हो सकता है लेकिन पकड़ बहुत मजबूत है। संघ के वे बहुत पुराने स्वयंसेवक हैं और गाहे-बगाहे जब मौका आता है अपनी कुर्सी पर निगाहें रखने वालों को भी उनकी हैसियत बता ही देते हैं। पर उनका तरीका बहुत अलग है। दिल्ली दरबार को भी पता है कि भाजपा की राजनीति में अपनी अलग पहचान बना चुके मध्य प्रदेश के दिग्गज से पंगा लेना आसान नहीं है।
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🚥 मध्यप्रदेश में फिलहाल तो नेतृत्व परिवर्तन के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं के बीच जो मूवमेंट शुरू हुआ था उस पर विराम लगने की शुरुआत उस फोटो से हुई जो प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री सुहास भगत और सह संगठन मंत्री हितानंद शर्मा की केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल से मुलाकात के बाद सोशल मीडिया पर जारी हुआ। दरअसल इस फोटो में जिस अंदाज में पटेल संगठन के तीनों दिग्गजों से बतिया रहे थे उसे संघ ने ठीक नहीं माना और वहीं से शुरू हुए सवाल जवाब के बाद मुहिम की दिशा ही बदल गई।
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🚥 ज्योतिरादित्य सिंधिया का हालिया मध्यप्रदेश दौरा सबकी नजर खींच ही गया। जिस अंदाज में राजधानी भोपाल में भाजपा के नेताओं ने उन्हें हाथों हाथ लिया और जिस अदा से सिंधिया सब से मिले वह कम चौंकाने वाला नहीं है। इस दौरे से यह तो साबित हो गया कि सिंधिया भाजपा में भले ही नए हों लेकिन उनकी ब्रांड वैल्यू बहुत ज्यादा है। भाजपा के दिग्गज नेता भी यह मानने लगे हैं कि आगे पीछे सिंधिया मध्य प्रदेश में भाजपा के तारणहार रहेंगे। भला ऐसे नेता से कौन नहीं जुड़ना चाहेगा चाहे बुजुर्ग नेता हो या युवा। यही कारण है कि उनकी अगली भोपाल यात्रा के दौरान उन्हें अपने निवास पर आमंत्रित करने के लिए कुछ मंत्री और पार्टी पदाधिकारी, अभी से सक्रिय हो गए हैं।
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🚥 कांग्रेस में यह कोई समझ नहीं पा रहा है कि आखिर 10 साल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने अपना दायरा इतना सीमित क्यों कर लिया है। कोरोना संक्रमित होने के बाद सक्रिय हुए दिग्विजय इन दिनों सिर्फ भोपाल में ही सक्रिय हैं। कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते हुए सरकार के निर्णयों में उनकी जो भागीदारी रहती थी वैसी सहभागिता अब संगठन से जुड़े फैसलों में नहीं दिख रही है। दिग्विजय का यह दायरा पार्टी के लोगों के बीच भी चर्चा का विषय है। हां इतना जरूर है कि इस सबका कमलनाथ पर कोई असर नहीं दिख रहा है और उन्होंने प्रदेश में अपनी लॉबी मजबूत करते हुए नया नेतृत्व खड़ा कर दिया है।
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🚥 पीएम केयर्स फंड को लेकर मध्य प्रदेश से जो आरटीआई लगी है उसको लेकर केंद्रीय जांच एजेंसी बहुत सक्रिय है। प्रारंभिक पड़ताल में जो जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक प्रदेश के 1 बड़े नौकरशाह के तार इससे जुड़े हुए हैं। ऐसा पता चला है कि उक्त नौकरशाह के इशारे पर ही यह आरटीआई लगाई गई है और जिन लोगों ने लगाई है वे भी इनके खासम खास लोगों से जुड़े हुए हैं। इस जानकारी ने सत्ता के शीर्ष को कुछ बेचैन कर रखा है क्योंकि दिल्ली तक यह खबर पहुंच चुकी है कि उक्त नौकरशाह खुद को सत्ता के बहुत नजदीक मानकर ही स्वच्छंद आचरण करते हैं। यह नौकरशाह मध्य प्रदेश में सत्ता के हर दौर में बहुत पावरफुल रहते हैं।
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🚥 गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के बीच संबंधों में खटास की बात किसी के गले नहीं उतर रही। पिछले 10 साल में मिश्रा ही एकमात्र ऐसे मंत्री हैं, जिन्होंने बैंस चाहे मंत्रालय में पावरफुल रहे हों या नहीं, हमेशा उनसे संबंध बनाए रखे। मंत्रालय में आपको सैकड़ों लोग ऐसे मिल जाएंगे जिन्होंने वक्त बेवक्त मिश्रा को बैंस के कक्ष में बैठकर घंटों बतियाते और ठहाके लगाते हुए देखा है। पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में दोनों के बीच जिस तरह की तल्खी देखी गई उसका कारण कोई समझ नहीं पा रहा है। कहा तो यह जा रहा है कि कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना।
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🚥 प्रदेश के डीजीपी विवेक जौहरी को लेकर एक बड़ी विचित्र स्थिति बनती नजर आ रही है। संघ और भाजपा के एक बड़े वर्ग ने यह कहना शुरू कर दिया है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जो कमिटमेंट जौहरी से किया था उसे हम क्यों पूरा करें। दरअसल कमलनाथ जब जौहरी को बीएसएफ के डीजी से मध्य प्रदेश का डीजी बना कर लाए थे तब उन्होंने एक आदेश जारी कर कहा था कि जौहरी का कार्यकाल 2 साल का रहेगा। यही कारण है कि सेवानिवृत्ति के बाद भी जौहरी डीजीपी बने हुए हैं। इसका नुकसान आधा दर्जन आईपीएस अफसरों को उठाना पड रहा है। संघ और भाजपा के दिग्गजों ने इस मामले में मध्यप्रदेश में सुनवाई न होने पर दिल्ली दरबार में दस्तक देने का निर्णय भी लिया।
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🚥 मध्य प्रदेश के चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक जिस मकसद से इंदौर आए थे वह पूरा नहीं हो पाया। दरअसल निकट भविष्य में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कुछ नए जजेस की नियुक्ति होना है। चीफ जस्टिस बार और बेंच से चर्चा कर अच्छे नाम सामने लाने की कवायद के चलते इंदौर आए थे लेकिन उनके इंदौर आने के पहले ही जिस तरह का प्रचार प्रसार संभावित नामों को लेकर हो गया वह उन्हें पसंद नहीं आया और उन्होंने फिलहाल इससे दूर रहना ही उचित समझा। देखते हैं आगे क्या होता है पर संभावित नामों को लेकर चर्चा तो शुरू हो चुकी है।
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🚶🏻♀️ चलते चलते🚶🏻♀️
यह समझना बहुत जरूरी है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खासम खास सुरेंद्र नाथ सिंह, इंदौर से चौथी बार के विधायक महेंद्र हार्डिया और तीन बार विधायक रह चुके पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे दीपक जोशी भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति में स्थान क्यों नहीं पा सके।
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🚨 पुछल्ला
भोपाल कमिश्नर कवींद्र कियावत जल्दी ही रिटायर होने वाले हैं। उनके स्थान पर किसे मौका मिलेगा यह अभी से चर्चा में है। निगाहें घूम फिर कर निशांत वरवड़े पर जा टिकती हैं जो एक जमाने में भोपाल कलेक्टर के रूप में लंबी पारी खेल चुके हैं और मुख्यमंत्री के पसंदीदा अफसरों में हैं। हां इस नाम पर मुख्य सचिव का रजामंद होना जरूरी है।
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🎴 अब बात मीडिया की
♦️ 8 महीने पहले भोपाल से दिल्ली नेशनल रिपोर्टिंग टीम में भेजे गए धर्मेंद्र सिंह भदौरिया को संभवतः दिल्ली रास नहीं आई। वे भाजपा सहित कई महत्वपूर्ण मंत्रालय देख रहे थे। उनके दैनिक भास्कर ग्वालियर का स्थानीय संपादक होने के बाद भास्कर के दिल्ली दफ्तर में अब 4 साथी ही बचे हैं। यह सब किसी इंचार्ज के ना होने के कारण भोपाल में अरुण चौहान को रिपोर्ट कर रहे हैं।
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♦️ पद्मश्री कुट्टी मेनन के निधन के 1 दिन पहले ही सोशल मीडिया पर भास्कर के स्टेट हेड अवनीश जैन के नाम से स्मृति शेष प्रसारित हो गया। जैसे ही यह जैन के ध्यान में आया उन्होंने इस तरह की किसी श्रद्धांजलि से इनकार करते हुए कहा कि यह कुछ लोगों की शरारत है। बाद में पता चला कि उनके किसी हम नाम ने मेनन साहब को जीते जी ही श्रद्धांजलि दे दी थी।
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♦️ वरिष्ठ पत्रकार आनंद पांडे का बहुप्रतीक्षित प्रोजेक्ट जुलाई में आकार लेता नजर आ रहा है। इसके लिए सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। देखना यह है कि अनुज खरे भी इस टीम से जुड़ते हैं या नहीं।
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♦️ प्रिंट मीडिया के वरिष्ठ साथी और अनेक अखबारों में क्राइम रिपोर्टिंग कर चुके संतोष शितोले अब भास्कर डिजिटल का हिस्सा हो गए हैं।
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♦️ कुछ महीने पहले ही शुरू हुए अखबार मृदुभाषी में जल्दी ही छटनी का दौर शुरू होने वाला है।
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आज बस इतना ही
अगले सप्ताह फिर मिलते हैं