लेखक – आनंद शर्मा आय ए एस
जीवन में सफलता और सुख दोनों अलग अलग चीजें हैं | कई बार हम ये समझ बैठते हैं की कोई शख़्स बड़े पद में है या प्रसिद्धि के शिखर पर विराजमान है तो वो सुखी भी होगा पर सन्तोष और सुख का होना और सफल होना दोनों अलग अलग स्थितियाँ हैं | पिछले दिनों मैं अपने ही केडर के एक वरिष्ठ साथी से बात कर रहा था जो भारतीय प्रशासनिक सेवा में ही हैं ..कुछ इधर उधर की बातों के बाद मैंने उनसे कहा की आपका बैच बड़ा लकी रहा है समय पर सारे प्रमोशन मिले |
उन्होंने कहा अरे नहीं भाई तुमको बड़ी गलत फहमी है | जरा सोचो हमारे बैच में सबसे कम लोग कलेक्टर बन पाये और जो बने उनमे से अधिकांश कुछ न कुछ विवाद में जरूर पड़ते रहे | मैंने कहा अच्छा ये न सही लेकिन आपका तो सब ठीक रहा , बोले ये भी गलत है ; पिछले कई बरसों से में भारी तकलीफ में हूँ , मेरे कई रिश्तेदार पिछले दिनों में एक एक कर काल कवलित हो गए | बच्चे बच्ची पढ़े लिखे इतने बढ़िया पर कोई अच्छी नौकरी नहीं पा सके | मैं उन्हें आश्चर्य से उन्हें निहारता रह गया । इसके साथ मुझे कुछ और वाक़ये याद आए जो इससे मिलते जुलते थे |
बहुत पुरानी बात है तब मैं उज्जैन में बतौर एसडीएम पदस्थ था और श्री महाकालेश्वर मंदिर का प्रशासक भी था | उन दिनों दिल्ली से नरेश नारद साहब जो तब भारत सरकार में सचिव थे , अक्सर अपने मित्रों को पूजा अनुष्ठान हेतु उज्जैन भेजते थे और तब के ए डी एम श्री ए के सिंह मेरी ड्यूटी मंदिर का काम काज देखने के कारण उनकी व्यवस्था में लगा देते थे | एक बार अरुण क्षेत्रपाल साहब जो दिल्ली में ही पदस्थ थे , कालसर्प योग का पूजन कराने उज्जैन आए थे। क्षेत्रपाल साहब राजनांदगाँव के कलेक्टर रह चुके थे जहां का मैं बहुत बाद में प्रोबेशनर था |
अपने प्रोबेशन ज़िले का अधिकारी के जीवन में अलग ही महत्व होता है , इस कारण मैं उनकी ज़्यादा ही ख़ैर ख़बर रख रहा था | शाम तक सारा पूजा पाठ समाप्त होने के बाद जब साहब कुछ रिलेक्स मूड में थे तो मैंने यूँ ही पूछ लिया की आप तो इतने बड़े पद पर हैं आपको इस पूजा पाठ की क्या जरूरत पड़ गयी .? वो जो बोले , वो मुझे आज तक याद है | कहने लगे शर्माजी आई ए एस हो जाना और जीवन की कठिनाइयाँ दोनों अलग अलग बातें हैं | फिर उन्होंने अपनी त्रासदियों की वो कहानी सुनाई की मैं हिल गया |
उज्जैन की ही बात है जब महाकाल मंदिर में हुए हादसे के बाद ज़िले में अफ़रा तफ़री का माहौल था | संभाग कमिश्नर तोमर साहब जिनके प्रातः भस्मारती में शामिल होने के बाद दुर्घटना हुई थी उन्हें सरकार ने हटा दिया था , बाक़ी के अधिकारी भी सशंकित से अपना काम कर रहे थे | उस दिन शाम का समय हुआ जा रहा था और कलेक्टर साहब समेत सभी महत्वपूर्ण अधिकारी कलेक्टर चेम्बर में बैठ कर आगे की रूपरेखा बना रहे थे , तभी विनोद शर्मा जो तब उज्जैन के एस डी एम हुआ करते थे कमरे में घुसते हुए बोले सर , शासन ने सभी को हटा दिया है |
आप , एस पी साहब मैं सी एस पी और टी आइ आदि सभी अफ़सरों का तबादला कर दिया है | मैंने देखा अचानक कलेक्टर साहब का चेहरा सफ़ेद पड़ गया | विनोद ने स्थिति को भाँपते हुए दिलासा देने के लिहाज़ से कहा , अरे चलता है सर जहाँ रहेंगे वहीं काम करेंगे | कलेक्टर साहब ने झल्ला कर कहा अरे तुम लोगों का क्या फ़ील्ड से फ़ील्ड में जाओगे मुझे तो मंत्रालय में बिठा दिया जायेगा | मुझे आश्चर्य हुआ की इतने बड़े पद पर रहने के बाद में क्या किसी को इस बात से फ़र्क़ पड़ सकता है की ट्रांसफ़र कहाँ हो रहा है ?
संयोग से तीसरी घटना भी उज्जैन की है | तब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ का विभाजन हो रहा था और प्रदेश स्तर पर दोनों राज्यों में जाने वाले अधिकारी और कर्मचारियों की बँटवारा प्रक्रिया चल रही थी | उज्जैन में कलेक्टर भूपाल सिंह साहब थे और सम्भवतः उनके ग्रह ज़िले में जिस स्थान का अंकन था वो छत्तीसगढ़ में आ रहा था | एक दिन हम अधिकारीगण प्रातः होने वाली समयावधि की बैठक जिसे आम भाषा में टी एल बैठक कहा जाता था के लिए कलेक्टर साहब के बंगले में उनके चेम्बर में बैठे हुए थे |
अचानक कहीं से फ़ोन आया और कलेक्टर साहब का चेहरा अत्यंत तनाव से लाल हो गया | हम सभी अधिकारी ये तो समझ गए की कोई गम्भीर बात है पर क्या है इसका कोई अनुमान नहीं था | ए के सिंह साहब ने पूछा क्या हो गया सर क्या कोई चिंता की बात है ? कलेक्टर साहब बोले यार मुझे छत्तीसगढ़ केडर में करने की ख़बर आ रही है | मेरी नौकरी की शुरुआत चूँकि छत्तीसगढ़ से हुई थी और आज भले अजीब लगे पर तब मेरे मन में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर कोई बड़ा अन्तर नहीं था |
मैंने कहा सर क्या फ़र्क़ पड़ता है आप तो आइ ए एस अधिकारी हैं , यहाँ कलेक्टर हैं वहाँ भी हो जाएँगे | वे बोले अरे आनन्द बड़ा फ़र्क़ होता है केडर का , मेरा तो अब वहाँ से कोई वास्ता भी नहीं रहा और वहाँ चला जाऊँगा तो लौटने के बाद मध्य प्रदेश में दूसरे केडर के अधिकारी की वो पूँछ थोड़ी होगी जो प्रदेश के अधिकारियों की होती है भले ही वो रिटायर हो | मैं इस गम्भीर गूढ़ बात के मन ही मन पेंच निकालता रहा और वे मीटिंग बर्खास्त कर इस मुसीबत से निजात पाने का जतन करने में लग गये |
इन सब बातों से मुझे एक बात तो समझ आ गयी कि आदमी कोई पद मिलने या पैसा मिलने या बड़ी जगह पहुँच जाने भर से प्रसन्न नहीं हो जाता , जैसा की हम अक्सर सोचा करते हैं , बल्कि सुख तो एक अलग ही चीज है ; पैसा , पद , रुतबा और शोहरत इन सबसे जुदा । इसलिए हमारे बुजुर्ग जो प्रार्थनाएँ हमें सिखाते हैं उनमें हम इश्वर से हमेशा सुख और शांति ही चाहते हैं और हमारे बड़े भी जब हमें आशीर्वाद देते हैं तो यही कहते हैं की सदा सुखी रहो ….न की सदा अमीर रहो या सदा इस पद पर रहो या कुछ और | मुझे एक कवित्त याद आ रहा है जो बाबूजी गुनगुनाया करते थे , उसी से बात समाप्त करते हैं ॥
बाजे दिन बाजे हाथ
बाजे नगाड़ा साथ
बाजे दिन अच्छे अच्छे पलंग बिछोना के
तो बाजे दिन कामरी की पाटी ओढ़ रहिये
हारिये न हिम्मत बिसारिये न सीताराम
जाही विधि राखे राम ताहि विधि रहिये ॥