ISRO ने लॉन्च किया 100वां रॉकेट, जानें क्यों श्रीहरिकोटा है भारत का परफेक्ट लॉन्च पैड

Meghraj Chouhan
Published:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को जीएसएलवी-एफ15 रॉकेट का सफल प्रक्षेपण कर अपनी 100वीं लॉन्चिंग पूरी की। यह लॉन्च श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से सुबह 6:23 बजे किया गया। पर क्या आपने कभी सोचा है कि इसरो ने श्रीहरिकोटा को ही लॉन्चिंग के लिए क्यों चुना? आइए जानते हैं इसके पीछे की वैज्ञानिक और भूगोलिक वजहें।

भूमध्य रेखा के करीब होने का फायदा

श्रीहरिकोटा का स्थान भूमध्य रेखा के करीब है, जिससे रॉकेट को लॉन्च के समय प्राकृतिक अतिरिक्त गति मिलती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी के घूर्णन से रॉकेट को 1440 किलोमीटर प्रति घंटे की अतिरिक्त स्पीड मिलती है। इससे ईंधन की बचत होती है और प्रक्षेपण कम लागत में पूरा होता है।

समुद्र से घिरा होना सुरक्षा के लिए वरदान

रॉकेट लॉन्च के दौरान तकनीकी त्रुटियों का खतरा बना रहता है। यदि रॉकेट असफल हो जाए तो उसके टुकड़े आबादी वाले क्षेत्रों में गिर सकते हैं, जिससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकता है। श्रीहरिकोटा चारों तरफ समुद्र से घिरा है, इसलिए विफल प्रक्षेपण की स्थिति में रॉकेट के टुकड़े समुद्र में गिरते हैं, जिससे जोखिम काफी हद तक टल जाता है।

अनुकूल मौसम शर्तें

रॉकेट प्रक्षेपण के लिए मौसम की स्थिरता बेहद जरूरी होती है। श्रीहरिकोटा में वर्ष भर सामान्य मौसम रहता है। भारी बारिश केवल अक्टूबर और नवंबर में होती है, जबकि अन्य महीनों में मौसम वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए अनुकूल रहता है। यहां ज्यादा धूप और अत्यधिक नमी नहीं होती, जिससे लॉन्चिंग में बाधा नहीं आती।

मजबूत भू-आकृति

रॉकेट लॉन्च के दौरान धरती में तीव्र कंपन होता है। श्रीहरिकोटा की भूमि चट्टानों से बनी है, जो इस तरह के भारी कंपन को सहन कर सकती है। यह इसे प्रक्षेपण के लिए आदर्श बनाता है।

केरल के तुम्बा से श्रीहरिकोटा तक का सफर

शुरुआत में इसरो का प्रक्षेपण केंद्र केरल के तुम्बा में था, लेकिन बाद में वहां रॉकेट निर्माण का कार्य किया जाने लगा। श्रीहरिकोटा को लॉन्चिंग के लिए बेहतर विकल्प मानते हुए इसे प्रक्षेपण केंद्र के रूप में विकसित किया गया।

इसरो की ऐतिहासिक उपलब्धि

अपने 100वें रॉकेट प्रक्षेपण के साथ इसरो ने एक बार फिर विश्व स्तर पर अपनी तकनीकी दक्षता का लोहा मनवाया है। श्रीहरिकोटा जैसे आदर्श प्रक्षेपण स्थल के कारण भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान में कई मील के पत्थर पार किए हैं।