Naga vs Aghori : भारत की धार्मिक विविधता में दो साधु समुदाय हैं जो अपनी विशेष जीवनशैली और साधना पद्धतियों के लिए प्रसिद्ध हैं – नागा साधु और अघोरी। दोनों ही शिव के परम भक्त हैं, लेकिन उनकी साधना और जीवन के तरीकों में कई बड़े अंतर हैं। इन दोनों के जीवन को समझने से पहले, आइए जानें कि इनके बीच क्या भिन्नताएँ हैं और क्यों अघोरी महाकुंभ में हिस्सा नहीं लेते।
नागा साधु: शाकाहारी साधना और शैव परंपरा के अनुयायी
नागा साधु सनातन धर्म की वैदिक परंपरा से जुड़े होते हैं और वे शैव या वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी होते हैं। इनकी साधना मुख्य रूप से वेदांत, ध्यान और तपस्या के मार्ग पर आधारित होती है। वे मोक्ष को अपने जीवन का उद्देश्य मानते हैं। ये साधु नग्न रहते हैं, शरीर पर भस्म लगाते हैं और शाकाहारी होते हैं। वे हिमालय, जंगलों और धार्मिक मेलों में साधना करते हैं, जहां वे समाज से दूर संयमित जीवन जीते हैं।
अघोरी: तांत्रिक साधना और मृत्यु के रहस्यों की खोज
वहीं, अघोरी साधु तांत्रिक परंपरा के अनुयायी होते हैं और वे भगवान शिव के उग्र रूप काल भैरव की पूजा करते हैं। अघोरी साधु श्मशान घाटों में रहते हैं और मृत्यु के रहस्यों का अध्ययन करते हैं। वे किसी भी प्रकार का भोजन ग्रहण कर सकते हैं, जिसमें मांस और शराब भी शामिल हैं। उनका जीवन सामाजिक रीति-रिवाजों से बहुत दूर होता है, और वे शांति और ध्यान के लिए एकांत स्थानों पर रहते हैं।
नागा साधु और अघोरी के बीच मुख्य अंतर
- परंपरा: नागा साधु वैदिक परंपरा का पालन करते हैं, जबकि अघोरी तांत्रिक साधना करते हैं।
- देवता: नागा साधु शिव और विष्णु की पूजा करते हैं, जबकि अघोरी शिव के काल भैरव रूप की पूजा करते हैं।
- जीवनशैली: नागा साधु नग्न रहते हैं और संयमित जीवन जीते हैं, वहीं अघोरी श्मशान में रहते हैं और किसी भी प्रकार के भोजन का सेवन करते हैं।
- साधना: नागा साधु वेदांत और ध्यान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि अघोरी तांत्रिक साधना और मृत्यु के अध्ययन में व्यस्त रहते हैं।
अघोरी क्यों नहीं जाते महाकुंभ?
महाकुंभ में लाखों भक्तों का हुजूम होता है, जहां मुख्य आकर्षण पवित्र नदियों में स्नान और पूजा होती है। अघोरी साधु को बाहरी भीड़ से कोई खास लेना-देना नहीं होता, क्योंकि उनकी साधना बाहरी उत्सवों से अधिक आंतरिक ध्यान और तांत्रिक प्रक्रियाओं पर केंद्रित होती है। वे अपने मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्मशान घाटों और एकांत स्थलों पर रहकर शिव का साक्षात्कार करते हैं। महाकुंभ की परंपराएँ, जैसे स्नान और पूजा, उनके साधना पथ से मेल नहीं खातीं, इसलिये अघोरी साधु महाकुंभ में भाग नहीं लेते।