केंद्रीय कर्मचारियों को अब आठवें वेतन आयोग की उम्मीद है, और इसको लेकर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि सरकार जल्द ही नया वेतन आयोग गठित करे। इस बीच, मध्य प्रदेश में सातवें वेतनमान से जुड़ी कई विसंगतियाँ अब तक दूर नहीं की गई हैं, जिससे राज्य के कर्मचारियों में असंतोष बढ़ रहा है। कई कर्मचारी समय-समय पर राज्य सरकार से इन विसंगतियों को दूर करने की मांग करते रहे हैं, लेकिन अब यह मांग और भी तेज हो गई है। इन विसंगतियों को सुधारने के लिए पहले एक कमेटी का गठन किया गया था, लेकिन उसकी अनुशंसाएँ अब तक फाइलों में ही दबी पड़ी हैं।
आठवें वेतन आयोग की मांग
सातवां वेतन आयोग 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा गठित किया गया था और इसकी सिफारिशें जनवरी 2016 में लागू की गई थीं। यह आयोग 2026 में अपनी 10वीं वर्षगांठ पूरी करेगा, और इतिहास को देखें तो हर दस साल में एक नया वेतन आयोग गठित किया जाता है। इस हिसाब से, अब आठवें वेतन आयोग की मांग तेजी से उठने लगी है। कर्मचारियों का मानना है कि नया वेतन आयोग महंगाई से राहत दिलाने में मददगार होगा, जिससे उनका वेतन और पेंशन दोनों बढ़ेंगे।
मध्य प्रदेश में सातवें वेतनमान की विसंगति
मध्य प्रदेश में सातवें वेतनमान की विसंगतियाँ अब तक दूर नहीं हो पाई हैं। कर्मचारियों की प्रमुख मांग यह है कि आठवें वेतन आयोग के लागू होने से पहले इन विसंगतियों को खत्म किया जाए ताकि उन्हें नए वेतनमान के दौरान आर्थिक नुकसान न हो। इसके लिए पहले एक समिति भी गठित की गई थी, लेकिन उसकी अनुशंसाएँ अब तक लागू नहीं हो पाई हैं।
पांचवे और छठे वेतनमान में अटके कर्मचारी
राज्य के सरकारी कर्मचारियों को सातवां वेतनमान मिल रहा है, लेकिन राज्य सरकार के कुछ विभागों में ऐसे कर्मचारी भी हैं जिन्हें अब तक पांचवां या छठा वेतनमान ही मिल रहा है। ये कर्मचारी लगातार सातवां वेतनमान दिए जाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक निराशा ही हाथ लगी है। इन कर्मचारियों का कहना है कि उनकी योग्यता और कामकाजी शर्तें सातवें वेतनमान के अनुसार होनी चाहिए, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
लिपिकों और स्टेनोग्राफरों के वेतन में विसंगति
मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी वेतन विसंगति लिपिकों (क्लर्क्स) के वेतन में देखी जा रही है। राज्य में कई विभागों में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के वेतन में बहुत कम अंतर है, लेकिन सबसे बड़ी विसंगति स्टेनोग्राफरों के वेतन में है। विभागों में एक जैसे पदों पर काम करने वाले स्टेनोग्राफरों के बीच वेतन में भेदभाव पाया जा रहा है। मंत्रालय में पदस्थ स्टेनोग्राफरों को अधिक वेतन मिल रहा है, जबकि अन्य विभागों में काम करने वाले स्टेनोग्राफर चाहते हैं कि जब उनकी योग्यता और भर्ती नियम एक जैसे हैं, तो उनके वेतन में भी समानता होनी चाहिए।
कुल मिलाकर, केंद्रीय कर्मचारियों और मध्य प्रदेश के कर्मचारियों दोनों के लिए वेतन आयोग का मुद्दा महत्वपूर्ण है। जहां केंद्रीय कर्मचारी आठवें वेतन आयोग की उम्मीद कर रहे हैं, वहीं मध्य प्रदेश में सातवें वेतनमान की विसंगतियों को दूर करने की मांग जोर पकड़ रही है। कर्मचारियों का मानना है कि वेतन में समानता और न्याय की जरूरत है, ताकि वे अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकें और महंगाई से जूझने में उन्हें राहत मिल सके।