Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह के बढ़ते मामलों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। कोर्ट ने कहा है कि बाल विवाह पर रोक लगाने वाला कानून व्यक्तिगत कानूनों के प्रभाव में नहीं आना चाहिए। इसके तहत कम उम्र में शादी करने से लोगों के जीवनसाथी चुनने के अधिकार का हनन होता है।
राज्य सरकारों की लापरवाही पर चिंता
सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलेंटरी एक्शन नामक एनजीओ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह की समस्या को गंभीरता से लिया। याचिका में बताया गया कि बाल विवाह के बावजूद सरकारी प्रयासों की कमी के कारण लाखों लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो रही है, जिसमें 10 साल से कम उम्र की लड़कियों की शादी की घटनाएं भी शामिल हैं।
तीन जजों की बेंच ने दिए दिशा-निर्देश
कोर्ट ने बाल विवाह रोकथाम से जुड़े विभागों के लिए कुछ आवश्यक निर्देश जारी किए:
सभी संबंधित विभागों के कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता है।
प्रत्येक समुदाय के लिए अलग-अलग उपायों का पालन किया जाए।
दंडात्मक कार्रवाई से समस्या का समाधान नहीं होता।
समाज की वास्तविकता को ध्यान में रखते हुए रणनीतियां बनाई जाएं।
लोगों में जागरूकता फैलाने का प्रयास किया जाए।
न्याय की देवी की नई प्रतिमा
सुप्रीम कोर्ट ने न्याय की देवी की नई प्रतिमा भी स्थापित की है। इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसकी आंखों पर पट्टी नहीं है। एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में भारत का संविधान लिए हुए यह प्रतिमा एक स्पष्ट संदेश देती है कि न्याय केवल अंधा नहीं होता, बल्कि संविधान के आधार पर कार्य करता है। यह पहल मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ द्वारा की गई है, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि आगे और ऐसी मूर्तियाँ स्थापित की जाएंगी या नहीं।