अमेरिका ने भारत को क्यों कहा क्वाड का नेता, क्या हैं इसके पीछे कारण?

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हाल ही में, अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने भारत को क्वाड का नेता बताया है, जिससे भारतीय मीडिया में चर्चा तेज हो गई है। यह बयान वैश्विक स्तर पर विभिन्न प्रकार से व्याख्या की जा रही है। सवाल उठता है कि अमेरिका इस टिप्पणी के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में किस नए कदम की ओर इशारा कर रहा है और वह क्या संदेश देना चाहता है।

क्वाड क्या है?

क्वाड, या क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग, भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक अनौपचारिक समूह है। इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्रता, खुलापन और समृद्धि को सुनिश्चित करना है। मुख्य रूप से, इसका ध्यान चीन की गतिविधियों पर नजर रखना और क्षेत्र में शक्ति संतुलन बनाए रखना है।

अमेरिका का भारत को नेता मानने के कारण

ब्रिक्स शिखर सम्मेलन

एक प्रमुख कारण यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही रूस के कजान में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस सम्मेलन में BRICS मुद्रा (R5) को लाने समेत कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा होने वाली है, जो अमेरिकी डॉलर पर प्रभाव डाल सकती है। अमेरिका इस स्थिति को लेकर चिंतित है।

डैमेज कंट्रोल

दूसरी ओर, अमेरिका वर्तमान में डैमेज कंट्रोल की स्थिति में है। हाल ही में खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत पन्नू ने भारत सरकार पर हत्या की कोशिश का आरोप लगाया है, जिसके बाद अमेरिका ने इस मुद्दे से भारत-अमेरिका संबंधों में खटास न आने की कोशिश की है।

यूएस-चीन पावर गेम

चीन के खिलाफ रणनीति

अमेरिका का यह बयान चीन के साथ चल रहे शक्ति संघर्ष का भी एक हिस्सा है। चीन को यह पता है कि क्वाड का मुख्य उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी गतिविधियों पर नजर रखना है। रूस, जो कि ब्रिक्स का सदस्य है, भी इस स्थिति से सहज नहीं है। अमेरिका भारत के समर्थन में ऐसे बयान देकर चीन और रूस को कोई मौका नहीं देना चाहता।

बयान की वास्तविकता

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने कहा कि यह अमेरिका का बैलेंसिंग स्टेटमेंट है और इसका कोई खास महत्व नहीं है। उन्होंने बताया कि अमेरिका इस मामले में गंभीर नहीं है और क्वाड में शामिल चार देशों की वास्तविकता को देखते हुए इसे केवल दिखावे के लिए किया गया बयान माना जा सकता है।

इस प्रकार, अमेरिका का यह बयान भले ही चर्चा का विषय बना हो, लेकिन इसके जमीनी स्तर पर प्रभाव को लेकर विशेषज्ञों के बीच मतभेद हैं।