इंदौर। बदलते मौसम में बच्चों में निमोनिया के लक्षणों की पहचान एवं उसके उपचार एवं प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आम जनों को सलाह दी है कि निमोनिया के आकलन, निमोनिया का वर्गीकरण, खतरनाक लक्षणों के चिन्हों की पहचान, समुदाय आधारित निमोनिया का प्रबंधन, उपचार एवं रेफरल के संबंध में मैदानी कार्यकर्ताओं को जानकारी दी गई। बदलते मौसम में बच्चों को निमोनिया के लक्षणों की पहचान एवं एसके उपचार एवं प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य विभाग तैयार है। जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र की एएनएम को निमोनिया के संबंध जानकारी दी। बताया गया कि सर्दी के मौसम में बच्चों में निमोनिया के केस ज्यादा पाए जाते हैं।
इसे देखते हुए मैदानी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अवगत किया गया है। जिससे कि वह अपने क्षेत्र में निमोनिया के लक्षण वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर शीघ्र प्रबंधन कर सकें। निमोनिया फेफड़े का संक्रमण है। जिससे फेफड़ों में सूजन हो जाती है। निमोनिया होने पर बुखार खांसी और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। तेज सांस चलना या छाती का धंसना निमोनिया के दो मुख्य चिन्ह है। प्रशिक्षण में शिशु रोग विशेषज्ञों द्वारा द्वारा बच्चों में सांस की दर को गिनकर निमोनिया के लक्षणों की पहचान के संबंध में जानकारी दी गई।
बच्चों में सांस की गति का ठीक ढंग से आकलन करके निमोनिया को प्रारंभिक अवस्था में ही पहचाना जा सकता है। इसके लिए बच्चों की श्वास को एक मिनट तक निरंतर देखा जाता है। दो माह तक की उम्र के बच्चों की सांस लेने की दर एक मिनट में 60 या उससे अधिक होने पर, 2 माह से एक वर्ष तक की आयु में 50 या उससे अधिक एवं 1 वर्ष से 5 वर्ष तक के बच्चों में प्रति मिनट 40 या उससे अधिक सांस की दर होने पर निमोनिया होने की संभावना रहती है।
5 वर्ष तक के बच्चों में सर्वाधिक मृत्यु का कारण निमोनिया है। निमोनिया से बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए टीकाकरण, छह माह तक सिर्फ स्तनपान और उसके बाद उचित पूरक आहार, विटामिन ए का सेवन, साबुन से हाथ धोना, घरेलू वायु प्रदूषण को कम करना आवश्यक है।