ध्वजा एवं ध्वज सम्मान के प्रतीक, चाहे वह परमात्मा का हो या राष्ट्र का – मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी

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मुनिराज ऋषभरत्नविजयजी ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर स्वधर्म ध्वजा एवं राष्ट्र-ध्वज के स्वरूप एवं महत्व पर प्रवचन दिए। परमात्मा का शासन वासनाओं के बंधन तोड़ने का बेजोड़ शस्त्र है और ऐसे शासन की ध्वजा का सम्मान करना हमारा धर्म है। पंच परमेष्ठि की प्रतीक पंचरंगी धर्म-ध्वजा है। सफेद रंग अरिहंत परमात्मा, लाल रंग सिद्ध परमात्मा, पीला रंग आचार्य गुरु, हरा रंग उपाध्याय एवं गहरा नीला रंग साधु-भगवंत के लिये है। राष्ट्र-ध्वज की सीमा है जबकि धर्म-ध्वजा के लिये कोई हद एवं सरहद नहीं है। मंदिर में अरिहंत व सिद्ध परमात्मा विराजमान होते हैं इसलिये वहाँ केवल दो वर्ण (सफेद एवं लाल) की ध्वजा लगती है, पंचरंगी धर्म ध्वजा मंदिर में नहीं लगती है। धर्म-ध्वजा और भारत के ध्वज में समानताएं है। उसके अशोक चक्र में 24 धारियाँ 24 तीर्थंकरों का प्रतीक है और दोनों में पाँच रंग एक समान हैं।

अरिहंत परमात्मा तीर्थ को वंदन करके समोसरण के सिंहासन पर बैठते है। भगवान बनने की पीछे तीर्थ महत्वपूर्ण है। तीर्थ का अर्थ है संघ इसलिए हमेशा संघ का सम्मान करना आवश्यक हैं क्योंकि उसका स्वरूप तीर्थंकर के समान है अन्यथा तीर्थंकर असातना का पाप लगता है। जैसे कि राष्ट्र ध्वज का सम्मान राष्ट्र का सम्मान कहलाता है। राष्ट्र-ध्वज राष्ट्र के कल्याण लिये है जबकि धर्म-ध्वजा सम्पूर्ण संसार के कल्याण के लिये है। ध्वजा हमको क्या संदेश एवं उपदेश देती है उसको चार बातों से समझा जाता है।

1. ऊपर देखने का आमंत्रण – संसार के विषय-कषाय से ग्रस्त लोग उसकी गंदगी को नीचे से देखते हैं। जबकि ध्वजा हमको आमंत्रण देती है कि ऊपर देखो जहाँ मोक्ष है। चातक पक्षी नीचे होते हुए ऊपर की ओर देखता है परंतु चील ऊपर उड़ते हुए नीचे की गंदगी पर नज़र रखती है। सवाल इस बात का नहीं है कि आप कहाँ पर हो इससे महत्वपूर्ण है आपकी दृष्टि कहाँ पर है। व्यक्ति को सिद्ध परमात्मा बनने के लिए दृष्टि ऊपर की ओर रखना है।

2. अंदर आने का निमंत्रण – ध्वजा जैन शासन के अंदर आने की प्रेरणा है। इसके अंदर ‘स्यादवाद’ दिया है जो नई जीवनशैली प्रदान करती है। ‘कर्मवाद’ है जिससे संसार में विचित्रतायेँ हैं। इसमें ‘आत्मवाद’ है जो ईश्वर को हृदय में बैठाने की प्रेरणा देता है।

3. जिन शासन का सिंहासन – परमात्मा को हृदय सिंहासन पर विराजमान करने की प्रेरणा है।

4. कर्म से मुक्ति – कर्म के साथ युद्ध करने के लिये प्रेरित करती है। धर्म रूपी तलवार से कर्म के युद्ध को जीत सकते है। जीवन में स्वतंत्रता पाने के लिये कर्म से मुक्ति धर्म-ध्वजा दिलवा सकती है। राजेश जैन युवा ने बताया कि आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय पद्मभूषणरत्नसूरीश्वरजी ने भी मनुष्य योनि प्राप्त होने की महत्ता एवं सामायिक की आवश्यकता पर संक्षिप्त प्रवचन दिए।

मुनिवर का नीति वाक्य-“परमात्मा की ध्वजा की हद व सरहद नहीं होती है” इस मौके पर संदीपजी पोरवाल, मनोजजी पोरवाल, अशोकजी कोठारी व सिद्धि तप,विहरमान तप के तपस्वी निधि पोरवाल, पीयूषा ओसवाल, ट्विनकल शाह एवं टीना रांका, आदि व कई पुरुष व महिलायें उपस्थित थीं।दिलीप भाई शाह ने संघ के आगामी कार्यक्रमों की जानकारी दी।अमितजी कोठारी ने राष्ट्र ध्वज व धर्म ध्वजा के प्रवचन संबंधी तैयारी की जानकारी दी।