इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम “उम्र मात्र एक नंबर है”

Suruchi
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सोपा के सभागार में इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम “उम्र मात्र एक नंबर है” में ट्रैकर & स्किएर 65 वर्षीय कैंसर विशेषज्ञ डॉ अरुण अग्रवाल, अल्ट्रा मैराथन रनर 61 वर्षीय सहायक आयुक्त स्टेट जी एस टी विजय सोहनी और लंबी दूरी के साइकिलिस्ट 57 वर्षीय व्यवसायी नीरज याग्निक से इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन के वाईस प्रेजिडेंट सी ए नवीन खंडेलवाल ने चर्चा की।

इस चर्चा के दौरान डॉ अरुण अग्रवाल ने बतलाया कि 1993 में जब वे 37 वर्ष के थे तब उनका वजन 92 किलो था और उसी समय उनके अंकल ने युथ होस्टल का सरहान सांगला का एक 150 km का ट्रैक आयोजित किया था। जब उन्होंने अपने अंकल से इस ट्रैक में जाने की इच्छा जाहिर की तो उन्होंने मेरा मोटापा देखकर कहा कि तुम्हारे बस का नही है। उस बात को मैने चैलेंज के रूप में लिया और मैंने उस ट्रैक को सफलतापूर्वक पूरा किया। इससे मेरे अंदर एक आत्मविश्वास पैदा हुआ। इससे मुझे प्रकृति और पहाड़ों से प्रेम तो हुआ साथ में मेरा वजन भी कम हुआ। वजन कम होने से मैं अपने को बहुत एनरजेटिक फील करने लगा।

1995 में मैने इंदौर एडवेंचर क्लब की स्थापना की जो हर साल हिमालय पर एक ट्रैक आयोजित करता है। अभी तक इस क्लब ने हिमालय पर 19 ट्रैक आयोजित किये हैं और हर ट्रैक में मैं संयोजक रहा हूँ । इस साल मैंने 67 वर्ष की उम्र में हिमालय का कठिनतम ट्रैक अन्नपूर्णा सर्किट पूरा किया है। पहाड़ों पर चढ़ने के लिए मैं साल भर अपने को फिट रखने के लिए 2 घण्टे प्रतिदिन एक्सरसाइज करता हूँ। हेल्दी खाना खाता हूं और इंटरमिटेंट फास्टिंग भी करता हूँ। इन सबके कारण मैं बहुत सकारात्मक रहता हूँ। पहाड़ों पर चढ़ने के कारण जिंदगी की कोई बड़ी कठिनाई से अब डर नही लगता। डॉ अरुण अग्रवाल ने “मेरा पीक” ट्रैक के ऊपर एक पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी दिया।

अल्ट्रा मैराथन रनर विजय सोहनी ने चर्चा के दौरान बतलाया कि मैंने 51 साल की उम्र में फिटनेस के लिए दौड़ना इसलिए शुरू किया था क्योंकि मुझे सीवियर एसिडिटी रहा करती थी ब्लड प्रेशर भी था। उसी समय मैंने विश्वप्रसिद्ध मैराथन रनर फौजा सिंह के बारे में सुना था जिन्होंने 85 वर्ष की उम्र में दौड़ना शुरू किया था और 87 वर्ष की उम्र मे उन्होंने पहली मैराथन (42.195 km) पूरी की थी। फौजा सिंह आज की तारीख में 109 साल के एक मात्र जिंदा मैराथन रनर हैं। फौजा सिंह मेरे रोल मॉडल हैं। मैंने अपनी पहली फुल मैराथन उन्हीं को आदर्श मानकर 2014 में 52 वर्ष की उम्र में हैदराबाद में पूर्ण की। इससे मेरे अंदर बहुत आत्मविश्वास बड़ा।

उसी समय इंदौर के प्रसिद्ध डॉक्टर डॉ प्रवर पासी के कहने पर मैंने भारत के प्रसिद्ध अल्ट्रा मैराथन रनर  अमित सेठ की किताब “डेयर टू रन” पड़ी जो कि दक्षिण अफ्रीका में होने वाली विश्व की प्राचीनतम और कठिनतम अल्ट्रा मैराथन कॉमरेड मैराथन पर आधारित थी। इस रन में 90 km का कठिन रास्ता 12 घण्टे में पूर्ण करना रहता है। किताब को पढ़ने के बाद कॉमरेड मैराथन मेरी ड्रीम रन बन गई। वह मैराथन मेरी जिंदगी का लक्ष्य बन गई। जिसे 2019 में 57 वर्ष की उम्र में मैंने सफलतापूर्वक पूर्ण कर लिया। अभी 57 वर्ष की उम्र में कामरेड मैराथन पूर्ण करने वाला मैं मध्यप्रदेश का एकमात्र रनर हूँ। मैराथन रनिंग से मेरी फिटनेस तो बहुत अच्छी हुई। जिन बीमारियों से मैं पीड़ित था उनसे छुटकारा मिल गया।

साथ ही साथ मेरा व्यक्तित्व बहुत सकारात्मक हो गया। अब मुझे किसी भी कठिन कार्य से डर नही लगता है। मेरा समय-प्रबन्धन बहुत अच्छा हो गया। मेरी जिंदगी स्वानुशासन पर आधारित हो गई।साइकिलिस्ट नीरज याग्निक ने बतलाया कि मुझे 2006 से फिटनेस को लेकर शौक था। एक्सरसाइज करने के दौरान निकलने वाले पसीने से मुझे मोहब्बत है। साइकिलिंग के पहले मैं रनिंग करता था पर 2018 में मेरी गर्दन की हड्डी की बहुत बड़ी सर्जरी हुई। डॉक्टर ने गर्दन हिलाने से भी मना कर दिया था। ठीक होने के बाद 2019 में मैंने साईकल से कश्मीर से कन्याकुमारी तक सफर करना तय किया। यह सफर न होकर एक मिशन में बदल गया। इस मिशन के तीन लक्ष्य थे।

पहला कश्मीर की अशांत परिस्थितियों में बुलंद इरादों के साथ ‘लाल चौक’ पर तिरंगा फहराना, दूसरा स्वयं पर विजय पाना और तीसरा लोगों को फिटनेस की और लाना था। मैं सभी युवाओं को बतलाना चाहता था कि मैं 53 वर्ष में प्रतिदिन 190 km सायकिल चला सकता हूँ तो वे क्यों नही चला सकते है।  याग्निक ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपने अंदर की शक्ति को पहचाना है, उसे झकझोर कर जगाना है। याग्निक ने बतलाया कि इस यात्रा में हर दिन एक चुनौती रहता था। धूप, तेज बारिश, कड़कड़ाती ठंड सबका मैंने सामना किया। शुरुआत के दो दिन बाद ही मेरा एक्सीडेंट हो गया था। सायकिल टूट गई थी। घुटने में चोट आईं थीं। फिर भी मैंने हिम्मत नही हारी। दूसरी सायकिल से एक पाँव से सायकिल चला कर यात्रा जारी रखी। इस यात्रा की कन्याकुमारी पर समाप्ति के जब मैं सोच रहा था कि इस यात्रा से क्या हासिल हुआ। तब अनायास ये शब्द मेरे मुँह से निकल पड़े:-
हौसलों के साथ जीना सीखा
जिंदगी में रंग भरना सीखा
पत्थर से नगीना बनना सीखा
इस यात्रा के बाद मैंने द्वारका से डिब्रूगढ़, इंदौर से अयोध्या एवम नर्मदा परिक्रमा भी सायकिल से पूरी की और अब महाकाल से अन्य ज्योतिर्लिंगों की साइकिल यात्राएं कर रहा हूं। सत्र के अंत में प्रतिभागियों को पैनलिस्टों/सोईकर्स से प्रश्न पूछने का भी मौका मिला। IMA सत्र को प्रतिभागियों द्वारा खूब सराहा गया।