इंदौर : वर्तमान समय में कॉविड के बाद से बच्चों की मानसिकता में काफी बदलाव देखने को मिल रहा है। जिस तरह से कॉविड के दौरान सेलफोन और लैपटॉप पर बच्चों का ज्यादा समय बिता है उससे इंटरनेट एडिक्शन काफी बढ़ गया है। इसके दुष्परिणाम यह निकलकर सामने आए है कि बच्चों में चिड़चिड़ापन, गुस्सा, घबराहट, बैचेनी, डिप्रेशन और अन्य प्रकार की बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ गई है। पहले मोबाइल का इस्तेमाल सीमित था जो कि आज के दौर में काफी बढ़ गया है। जिस तरह से मादक पदार्थ सेवन करने वाले को अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं और नहीं मिलने पर बैचेनी और घबराहट बढ़ जाती है उसी प्रकार इंटरनेट और गेम्स भी कार्य करते हैं।
ज्यादा इस्तेमाल के बाद यह नहीं मिलने से इसको लेकर बच्चों में बैचेनी घबराहट बढ़ जाती है।इसे इंटरनेट एडिक्शन डिसऑर्डर कहा जाता है। कॉविड के बाद से ही इसमें दोगुना इजाफा हुआ है। यह बात डॉक्टर श्रीमीत माहेश्वरी ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही। वह शहर के प्रतिष्ठित केयर सीएचएल अपोलो में कंसल्टेंट साइकाइट्रिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सवाल : क्या ज्यादा इंटरनेट के इस्तेमाल से बच्चों के मानसिक विकास के साथ अन्य चीजों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है?
जवाब : आजकल इंटरनेट एडिक्शन की वजह से 10 साल से लेकर 18 साल तक के बच्चों में इंटरनेट इस्तेमाल ज्यादा बढ़ गया है। जब उनके माता पिता उन्हें इसके ज्यादा इस्तेमाल से रोकते हैं तो उनके बच्चों से रिलेशन खराब हो रहे हैं। भागदौड़ भरी जिंदगी की वजह से माता पिता बच्चों को ज्यादा टाइम नहीं दे पा रहे हैं और उनकी इंटरनेट को लेकर रोकटोक की वजह से बच्चे माता पिता के खिलाफ भी जा रहे है। धीरे धीरे आगे चलकर हर चीज में बच्चों को अपने माता पिता गलत लगने लग जाते है। इस वजह से बच्चों की मानसिकता पर गलत प्रभाव पड़ता है और इसका असर उनकी पढ़ाई पर देखने को मिलता है।
सवाल : क्या इंटरनेट और गेम्स की वजह से बच्चों में आगे सोशल इंटरेक्शन और स्पोर्ट्स कम हुआ है, इसके क्या दुष्परिणाम है?
जवाब : पहले के ज़माने में जब मोबाइल नहीं हुआ करता था तब बच्चे स्पोर्ट्स, सोशल इंटरेक्शन और अन्य चीजों में ज्यादा इन्वॉल्व हुआ करते थे। लेकिन आज चार दिवारी में बंद होकर दिनभर मोबाइल का इस्तेमाल करते है। सोशल इंटरेक्शन कम होने की वजह से बच्चे अपनी समस्याएं शेयर नही कर पाते हैं और वह आगे चलकर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। वहीं स्पोर्ट्स और अन्य एक्टिविटी कम होने से इसका गलत असर उनके शारीरिक विकास पर भी पड़ता है और उनका बेहतर शारीरिक और उनका मानसिक विकास नही हो पाता है। कई देशों में ऐसी भी रिपोर्ट्स सामने आई है जिसमें कई बार बच्चे 24 घंटों तक गेम्स और इंटरनेट में लगे रहते हैं जिस वजह से उनको कई समस्याएं सामने आती है।
सवाल : यावाओं में किस तरह की समस्या बढ़ रही है, क्या लोगों में साइकाइट्रिस्ट से संबंधित समस्या को लेकर जागरूकता बढ़ी है?
जवाब : बात अगर युवा वर्ग की करी जाए तो इनमें सबसे ज्यादा समस्या नशे से संबंधित है। जो कि पहले के मुकाबले डेढ़ गुना तक बढ़ी है। जिसमे हर प्रकार के मादक पदार्थ शामिल है। हमारे समाज में हर बीमारी को लेकर जागरूकता बढ़ी है लेकिन कहीं न कहीं साइकाइट्रिस्ट से संबंधित समस्या को लोग आज भी एक्सेप्ट करने में कतराते हैं हमें इसको लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत है। जब कोई साइकाइट्रिस्ट के पास जाता है तो लोग उस व्यक्ती को पागल की नजर से देखने लगते हैं जो कि सही नही है। यह भी आम बीमारियों की तरह ही है। अगर किसी को नशे या अन्य चीजों का एडिक्शन है तो इसे मेडिसीन और काउंसलिंग के माध्यम से ठीक किया जा सकता है।
सवाल : सामान्य व्यक्तियों में किस प्रकार की समस्या देखी जाती है?
जवाब : बच्चों और युवाओं के अलावा अगर बात व्यस्क व्यक्ति की करी जाए तो यहां भी मोबाइल का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। इस वर्ग में सबसे ज्यादा केस डिप्रेशन और एंजाइटी के देखने को मिल रहे हैं। दिन में थोड़ा थोड़ा समय निकालकर 1 घंटे फोन का इस्तेमाल ठीक होता है लेकिन इससे कई गुना ज्यादा हमारे लिए बेहतर नही है। लोगों में कई समस्याओं के चलते डिप्रेशन की समस्या काफी बढ़ गई है। इसको लेकर वह ज्यादा परेशान रहते है और आगे चलकर नशे के शिकार हो जाते हैं जो कि सही नही है।
सवाल : आपने अपनी एमबीबीएस और मेडिकल फील्ड की शिक्षा कहा से पूरी की है?
जवाब : मेने अपनी एमबीबीएस और एमडी साइकाइट्रिस्ट मैसूर के जेएसएस मेडिकल कॉलेज से पूरा किया है। इसी के साथ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ बैंगलोर से चाइल्ड साइकाइट्रिस्ट में ट्रेनिंग कंप्लीट की। वही लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से जरिएट्रिक साइकाइट्रिस्ट में ट्रेनिंग पूरी की। मुझे शुरू से ही साइकाइट्री फील्ड में इंटरेस्ट था इसलिए मैने एमबीबीएस के बाद इसकी पढ़ाई पूरी की।