अर्जुन राठौर
बावड़ी को तो शापित कहना बहुत आसान है क्योंकि बावड़ी अपने शापित होने के आरोप का खंडन भी नहीं कर सकती वह तो जल का एक स्रोत थी जिसे सालों पहले इस नेक इरादे के साथ खुदवाया गया था कि इससे लोगों को प्राकृतिक जल मिल सकेगा और उनकी प्यास बुझ सकेगी ।
हमारे यहां वैसे भी प्राकृतिक जल के स्रोत पूजा के केंद्र भी माने गए हैं उनकी पूजा करने का चलन तो आज भी है अब सवाल इस बात का है कि बावड़ी को शापित कैसे कहा जा सकता है हत्यारे तो वह हाथ हैं जिन्होंने जानबूझकर या लापरवाही से बावड़ी के उस स्थान को आपराधिक तरीके से बंद करने की कोशिश की और इसका नतीजा यह निकला कि 36 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।
कल्पना कीजिए कि इसी बावड़ी को लोहे की जाली से बंद कर दिया जाता तो क्या इतनी बड़ी घटना घटित होती? इंदौर में अनेक स्थानों पर लोहे की जाली से कुओं तथा बावडीयों को ढका गया है और वहां पर लोग जाली देखने के बाद जाने की हिम्मत भी नहीं करते रीगल चौराहे पर वर्तमान में जहां आईजी ऑफिस है वहां पर एक बहुत बड़ा कुआ है इस पर जाली ढकी हुई है और आसपास दीवार बना दी गई है यहां पर कोई नहीं जाता यहां आज तक कोई घटना नहीं हुई यदि यही स्थिति पटेल नगर की बावड़ी के साथ भी होती तो किसी भी कीमत पर इतनी बड़ी घटना नहीं हो पाती । लेकिन सार्वजनिक बगीचों पर अवैध रूप से कब्जा करके वहां के प्राकृतिक जल स्रोतों को मनमाने तरीके से बंद करके उस जमीन का दुरुपयोग करने की जो कोशिशें हो रही है उसी का नतीजा इतनी बड़ी घटना है ।
यदि बावड़ी बयान देने में सक्षम होती तो वह यही कहती कि उन हत्यारे हाथों को ढूंढो जिन्होंने उसे आपराधिक लापरवाही के साथ बंद करने की साजिश रची वे हत्यारे हाथ आज भी बेखौफ घूम रहे हैं बावड़ी को शापित कहना बहुत आसान है लेकिन उन हत्यारों के खिलाफ बड़ी एक्शन लेना सबसे कठिन काम है । क्या बीओ और बी आई को सस्पेंड करना 36 लोगों की मौत के साथ न्याय कहा जाएगा? मंदिर के पदाधिकारियों के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मुकदमा जरूर दर्ज हुआ है लेकिन कथित हत्यारे अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है ।