इंदौर। कॉविड के बाद से मनोरोग की बीमारियों में 25 प्रतिशत की बढ़त हुई है। आजकल बच्चों की पर्सनैलिटी ऑटिज्म हो गई है, बच्चों में सोशल एंग्जायटी के लक्षण देखने को मिल रहे हैं। आमतौर पर मस्तिष्क में सेरोटोनिन केमिकल की कमी से एंजायटी बढ़ जाती है। जिसमें बच्चें सोशल होने के बजाय अकेले रहना पसंद करते है। कॉविड के दौरान बच्चों ने ऑनलाइन पढ़ाई की है। इसमें ऐसे कई बच्चें हैं जो अब स्कूल जाना पसंद नहीं करते। वह इस कंफर्ट जोन से बाहर नहीं आना चाहते हैं, उन्हें लोगों से मिलने में घबराहट होती है। उन्हें दूसरो के दुख, सुख से कोई मतलब नहीं होता वह अपने आप में खोए रहते है।यह बात मनोरोग विशेषज्ञ डॉ पवन राठी ने कही।
वहीं शहरों में एकल परिवार से अर्बन बीमारी बढ़ रही है। इस वजह से हमारे ब्रेन के न्यूरॉन्स के नेटवर्क डीरेंज हो जाते हैं। उन्होंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई गवर्मेंट कॉलेज नागपुर से की है। उन्होंने मनोरोग चिकित्सा में मास्टर की पढ़ाई ग्रांट मेडिकल कॉलेज मुंबई से पूरी की है। उन्होंने शहर के अपोलो, मेदांता, शेलबी, और अन्य हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी है। वह शहर के प्रतिष्ठित हॉस्पिटल अरविंदो में मनोरोग चिकित्सक और अरविंदो मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सो गुना खुशी एक नशा करने वाले को तब होती है जब ब्राउन शुगर और अन्य नशेला पदार्थ ब्रेन में जाता है।
वह बिचौली मर्दाना पर नशामुक्ति केंद्र भी संचालित करते हैं। वह बताते हैं कि मुंबई में पहले ब्राउन शुगर बहुत कॉमन था, इंदौर में अब इसके केस काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। पीछले 8 सालों की अगर बात की जाए तो युवा वर्ग में 20 प्रतिशत की बढ़त हुई है। यह आंकड़े शराब, गांजा और अन्य नशीले पदार्थ से ज्यादा है। यह गांवो तक भी फैल चुका है। वहीं इन आंकड़ों में 2 प्रतिशत तक केस गर्ल्स के है। हम जब कुछ बेहतर करते हैं तो उसके रिवार्ड स्वरूप हमें खुशी की अनुभूति होती है, वहीं इससे सो गुना खुशी एक नशा करने वाले को तब होती है जब ब्राउन शुगर ब्रेन में जाता है।
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वह उसके मस्तिष्क में डोपोमाइन नामक केमिकल को बढ़ा देता है।आम इंसान को नौकरी, शादी, घर, पैसा परिवार से खुशी मिलती है। तो नशा करने वाले को इन सबसे मजा नहीं आता उसे इन सबसे ज्यादा खुशी नशा करने से मिलती है। सामान्य खुशी के मुकाबले यह शॉर्ट टाइम के लिए होती है, इसी लिए इसके आदि लोग दौबारा नशा करते हैं। अचानक नशा छोड़ने पर नींद नहीं आना, उल्टियां होना, मिर्गी के झटके आना, हाथ पांव कापना और अन्य समस्या सामने आती है। लेकिन इसे इलाज और काउंसलिंग के जरिए ठीक किया जा सकता है।
एकल परिवार या अकेले रहने पर डिप्रेशन, स्ट्रेस, बढ़ जाती है।
एक संयुक्त परिवार में दुख दर्द और समस्या शेयर करने से बंट जाती है। वहीं एकल परिवार या अकेले रहने पर डिप्रेशन, स्ट्रेस, एंग्जायटी बढ़ जाती है। जिससे बच्चें डिमांडिंग, चिड़चिड़े हो जाते हैं। इस तरह के माहौल में रहने से आगे चलकर बच्चें वर्ल्ड को फेस नहीं कर पाते हैं। मनोरोग की हर प्रकार की बीमारी का कारण जेनेटिक, सोशल और पर्सनल होता है। इस बीमारी को रिलैक्सेशन थेरेपी, काउंसलिंग और मेडिसिन के जरिए ठीक किया जा सकता है। वह सेक्स से जुड़ी समस्याओं में भी डील करते हैं। वह बताते है कि वयस्क लोगों में कॉवीड के बाद से ही हार्ट में ब्लॉकेज, ज्वाइंट ब्लॉकेज और सेक्सुअल प्रोब्लम काफी बढ़ गई है। जिससे सेक्स टाइमिंग का कम होना, इसके प्रति इच्छा नहीं होना शामिल है।