उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ एवं राष्ट्रीय हिन्दी मासिक पत्रिका ‘वीणा’ श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति इन्दौर के संयुक्त तत्वावधान में 17 दिसम्बर 2022 को समिति के शिवाजी भवन सभागार में एक दिवसीय संगोष्ठी सार्थक संदेशों के साथ सम्पन्न हुयी।
प्रातः प्रथम उद्घाटन सत्र में आर.पी. सिंह वरिष्ठ भा.प्र. सेवा, निदेशक उ.प्र. हिन्दी संस्थान लखनऊ ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि यहाँ आकर मुझे आनन्द की अनुभूति हुयी, ऐसी संस्थाओं को साहित्यिक धरोहर के रुप में मजबूत किया जाना चाहिए। सिंह ने कहा कि भविष्य की क्रान्ति का समाधान पत्रकार और साहित्यकार ही निकालेंगे। वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने वीणा पत्रिका के संदर्भ में अमृतलाल नागर, माखनलाल चतुर्वेदी, श्री नारायण चतुर्वेदी भैया जी एवं मैथिलीशरण गुप्त को याद किया। डॉ. राजीव शर्मा ने हिन्दी पत्रकारिता के आरम्भ से अब तक के प्रसंगों का सारांश प्रस्तुत किया एवं दिनकर तथा नेहरु जी के प्रसंग को सुनाया।
आरम्भ में अपने स्वागत उद्बोधन में वीणा पत्रिका के संपादक राकेश शर्मा ने वीणा के पूर्व संपादकों एवं संस्था के संस्थापक मनीषियों को सादर स्मरण करते हुए इस गोष्ठी के आयोजन पर प्रकाश डाला। उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दुबे ने कहा कि इन दोनों संस्थाओं का उद्देश्य एक ही है, हिन्दी, भाषा, साहित्य का सर्वधर्म समाज व देश के निर्माण में साहित्यकार और उनका साहित्य महत्वपूर्ण होता है। कार्यक्रम का संचालन कर रहे हरेराम वाजपेयी ने समिति का संक्षिप्त इतिहास बताते हुए वीणा के संदर्भ में इसी वर्ष आयोजित 2 बड़े कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। अंत में समिति के प्रधानमंत्री प्रो. सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी ने आभार व्यक्त करते हुए अटलबिहारी वाजपेयी, इंदौर में गांधीजी व बच्चनजी के प्रसंग सुनाए। अतिथियों का स्वागत प्रधानमंत्री के अलावा प्रचारमंत्री अरविंद ओझा, डॉ. पद्मासिंह व अर्चना शर्मा ने किया।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र में, डॉ. दीप्ति गुप्ता ने स्वतंत्रता आंदोलन और हिन्दी साहित्यिक पत्रकारिता पर अपना सारगर्भित पत्र पढ़ा। इस अवसर पर फगवाड़ा से आए डॉ. अनिल पाण्डेय, म.प्र. साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर पत्रकारिता विभाग प्रमुख डॉ. सोनाली नरगुन्दे एवं सत्र की अध्यक्षकता कर रहे देवास के श्री प्रकाश कान्त ने उद्बोधन किया। सारांश रहा-साहित्यिक पत्रकारिता और पत्रकारिता में फर्क होते हुए भी आपसी प्रगाढ़ता और सामंजस्य होता है। सत्र का संचालन प्रभु त्रिवेदी ने किया।
संगोष्ठी के तीसरे सत्र में हिन्दी साहित्यिक पत्रकारिता को वीणा पत्रिका का योगदान विषय पर वैचारिक सत्र हुआ। डॉ. पुष्पेन्द्र दुबे, देवास के वरिष्ठ साहित्यकार जीवनसिंह ठाकुर ने पत्रकारिता व वीणा पर विचार रखे। अमरकंटक से आयी डॉ. मनीषा शर्मा से कहा कि वीणा पत्रिका मेरी गुरु समान रही है और इनके 4 संपादकों से मैंने बहुत लिखना-पढ़ना सीखा। सत्र की अध्यक्षता कर रहे विक्रम विश्वविद्यालय हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने उदण्ड मार्तण्ड से लेकर वर्तमान समय पर विचार व्यक्त किए और कहा कि वीणा हिन्दी साहित्य की धरोधर है, हमारी गौरव है, इसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती। वीणा ने संघर्ष किए, हिन्दी के उद्भट विद्वान दिए, साहित्य की धारा को विकट परिस्थितियों में भी प्रवाहमान रखा। 1927 से निकलने वाली ‘वीणा’ 4 वर्षों बाद शताब्दी मनाने वाली हिन्दी की पहली पत्रिका होगी। इस सत्र का सफल संचालन पद्मा राजेन्द्र ने किया।
इस एक दिवसीय साहित्यिक वैचारिक गोष्ठी में समिति परिवार, वामा साहित्य मंच, हिन्दी परिवार इंदौर, महाविद्यालयों के छात्र और छात्राओं ने सोल्लास सहभागिता की, उन्हें प्रमाण पत्र भी दिए गए। इस अवसर पर वीणा के संपादक श्री राकेश शर्मा का अभिनन्दन किया गया। अंत में लखनऊ की डॉ. अमिता दुबे एवं समिति की ओर से प्रदीप नवीन ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में संतोष मोहन्ती, सदाशिव कौतुक, अनिल भोजे, आलोक खरे, गिरेन्द्रसिंह भदौरिया, रामचन्द्र अवस्थी, अंजना चक्रपाणि मिश्र, वाणी जोशी, प्रतापसिंह सोढ़ी, ओम ठाकुर, घनश्याम यादव, त्रिपुरारीलाल शर्मा, मुकेश इन्दौरी, पुनीत चतुर्वेदी, छोटेलाल भारती, कमलेश पाण्डे, राजेश शर्मा, संदीप पालीवाल, जुगुलकिशोर बैरागी, हेमेन्द्र मोदी, सरला गलांडे, विजय चौहान, अनिल कटारे आदि ने सहभागिता की।
अरविंद ओझा