आनंद शर्मा: देश और प्रदेश की कठिन से कठिन परीक्षा पास करके विभिन्न पदों में भर्ती होने वाला नवजवान पढ़ाई लिखाई में चाहे कितना भी अव्वल क्यूँ न हो , पर सरकारी नौकरी के धतकरम उसे एक भी नहीं आते। पाँच सौ और हज़ार शब्दों में निबंध लिखने वाले अभ्यर्थी नौकरी की शुरूआत में ज्वाइनिंग लेटर लिखने में भी दिक़्क़त महसूस करते हैं। कालेज से निकल कर शासकीय सेवा में आया उत्साही बंदा टी.ए. बिल और मेडिकल बिल कैसे बनाते हैं , ये सोचने पर भी घबरा जाता है। हम सब भी परिवीक्षा अवधि में इन सब मुसीबतों से गुजरे थे। हम सभी साथियों को परिवीक्षाधीन डिप्टी कलेक्टर के रूप में भेजा तो आर.सी.व्ही.पी. नरोन्हा प्रशासनिक अकादमी भोपाल गया था पर , हमारी ट्रेनिंग के साथ ही जिले भी आबंटित कर दिए गए थे। अकादमी में बाक़ी बातों के अलावा सरकारी नौकरी में सर्विस बुक , प्रॉविडेंट फंड , और टी.ए. बिल यानी यात्रा भत्ते आदि की बारिकियाँ भी पढ़ाई गयीं पर अधिकांश लोगों के ये सब सर के ऊपर से ही गुज़र गयीं ।
ट्रेनिंग पूरी करने के बाद जब हम अपने अपने जिलों के लिए रवाना होने को हुए , तो गुरु ज्ञान के बतौर हमें पढ़ा रहे एक अफसर ने कहा कि जिले में तीन लोगों से हमेशा सम्बन्ध अच्छे रखना । एक तो कलेक्टर का स्टेनो ( क्योंकि वो हमेशा कलेक्टर के नजदीक रहता है ) दूसरा ऑफिस का अधीक्षक ( कलेक्ट्रेट में सारी फाइलें ओ.एस. के माध्यम से ही कलेक्टर तक जाती हैं और वो आखिरी आदमी होता है जो उसमे मीन मेख निकाल सकता है ) और तीसरा ट्रेजरी आफिसर ( जो की हमारे सारे वेतन भत्ते खजाने से निकाल कर हमें देता था ) । यूँ भी उन दिनों कम्पूटर का युग नहीं आया था तो परिलब्धियों पर उसकी तिरछी नज़रें परेशानी का सबब बन सकती थी । ये गिरिधर की कुंडलियों की तरह की सीख थी ..सांई जे न विरुद्धिये गुरु ,पंडित , कवि , यार टाइप की |
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लिहाज़ा इस मिले ज्ञान का मैंने पूरा पालन किया और राजनांदगांव जिले में जाते ही तीनो से सबसे पहले सौजन्य भेंट की । इन तीनों में सबसे आखिर में मैं तब के ट्रेजरी आफिसर श्री ठाकुर से मिला तो वे बड़े प्रसन्न हुए । नौकरी में वे पदोन्नति से लेखा अधिकारी हुए थे और किसी नए उपजिलाधीश का इस तरह उन्हें वजन देना उन्हें बड़ा ही भाया | उन्होंने प्रेम पूर्वक मुझे बिठाया , चाय पिलाई और कहा कभी भी कोई काम हो तो जरूर बताना । नौकरी नई थी और जैसा कि मैंने पहले ही बताया टी.ए. बिल किस तरह का बनाया जाये , ये अभी आता भी नहीं था , तो मैंने उनसे अपनी परेशानी बताई कि मुझे टी ए बिल बनाना नहीं आता और भोपाल से ट्रेनिंग के दौरान हुए विभिन्न भ्रमण के भत्ते और राजनांदगाँव की यात्रा का भत्ता कैसे क्लेम करूँ ये मुझे समझ नहीं आ रहा है। उन्होंने सहजता से कहा कि इसमें क्या परेशानी है ? लाओ मैं आपका टी.ए. बिल बना भी देता हूँ और आपको बनाना सिखा भी देता हूँ । अंधे को क्या चाहिए दो आँख , मैंने तुरंत सारे विवरण उन्हें दिए और बैठे बैठे उन्होंने मेरा बिल तैयार कर दिया , बस मैंने निर्धारित जगह पर दस्तखत किये और उचित माध्यम से बिल प्रस्तुत कर दिया । इसके बाद मुझे ट्रेनिंग हेतु बोड़ला विकास खंड में बी.डी.ओ. बना कर भेज दिया गया ।
महीने भर बाद जब किसी मीटिंग के सिलसिले में मेरा जिला मुख्यालय पर जाना हुआ , तो मैंने अपने टी.ए. बिल के बारे में जिला नाजिर से दरयाफ्त की , तो उसने बताया की उसमें तो ट्रेजरी से आपत्ति लग गयी है । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ , क्योंकि मैंने तो बिल ही ट्रेजरी आफिसर से बनवाया था । मैंने आपत्ति लगा हुआ अपना बिल नाज़िर से लिया और सीधा ट्रेजरी आफिसर ठाकुर साहब के पास पहुंचा । मैने ठाकुर साहब से शिकायती लहजे में कहा कि सर ये बिल तो आपने ही बनाया था और अब इसमें फलां फलां कमी है , करके आपके यहाँ से आपत्ति लग गयी है । उन्होंने बिल पकड़ के देखा और ज़ोर से हँसते हुए बोले क्या करें यार आदत पड़ गयी है और आपत्ति को काट कर दस्तखत करते हुए बोले अब लो , जाओ जमा कर दो , कल बिल निकल जाएगा । मैं उनसे भी अधिक जोरों से हंसा और अगले दिन टी.ए. बिल की रक़म लेकर अपने गन्तव्य को रवाना हो गया ।