नरेंद्र भाले
बाबा आदम के जमाने की कहावत है कि बुझे हुए हुक्के गुड़गुड़ाए नहीं जाते। इसे चरितार्थ किया चेन्नई सुपर किंग्स ने। गुड- गुड की आवाज तो नहीं आई केवल धुआं ही निकलता रहा। क्रिकेट में तो जुमला ही है कि पकड़ो कैच जीतो मैच लेकिन चेन्नई ने नई कहावत बना दी की छोड़ो कैच और हारो मैच।
एक ही बंदे के यदि 4 कैच छोड़ोगे तो वह भरतनाट्यम नहीं सिर पर तांडव ही करेगा। शिखर धवन ने किया। उनका पहला शतक यह दर्शा गया कि आपने मुझे मौका दिया तो फिर आप केवल पराजय के ही हकदार है।
आते ही युवा सैम करेन को कुछ भी करने का तुषार देशपांडे ने मौका ही नहीं दिया। वाटसन तथा डुप्लेसिस ने उम्दा साझेदारी करते हुए एनरिच , रबाडा , अश्विन और तुषार की अच्छी खबर ली। विशेष रूप से डुप्लेसिस (53) का अर्धशतक अपने चरम पर रहा। उन्हें धवन ने जीवनदान भी दिया। वाटसन ने 6 चौकों का सहारा लिया जबकि डु प्लेसिस ने 2 छक्के तथा छह चौके जमाए। धोनी मैदान पर केवल दिखाने आए कि मैं भी टीम मे हूं। इसके बाद रायडू 45 (4 छक्के 1 चौका) ने अपना पावर दिखाया जबकि जडेजा ने मात्र 13 गेंदों में 4 छक्के उड़ा कर सुपर स्ट्राइकर की भूमिका निभाते हुए स्कोर 179 तक पहुंचा दिया।
इस दौरान चेन्नई की तरफ से 10 छक्के और 13 चौके देखने को मिले। अक्षर पटेल ने भले ही विकेट नहीं लिया लेकिन सबसे कंजूस गेंदबाज साबित हुए । प्रारंभ में ही चाहर ने पृथ्वी (0)एवं अजिंक्य रहाणे (8) का दीपक बुझा दिया। इसके बाद तो शिखर धवन ,गेंदबाज, तथा क्षेत्ररक्षकों के बीच जुगलबंदी चल रही थी। धवन चौके मारते रहे, क्षेत्ररक्षक कैच छोड़ते रहे , जिनमें धोनी भी शामिल है। श्रेयस अय्यर (23) ने शांत और स्टोइनिस 24 (14 ) ने ताबड़तोड़ पारी खेली जबकि एलेक्स कैरी एक बार फिर टीम पर बोझ साबित हुए।
भले ही धवन ने शतक जमाया लेकिन धोनी के हलक से जीत का निवाला अक्षर पटेल ने निकाल लिया। इस पटेल ने मात्र 5 गेंदों में 21 रन ठोक कर दिल्ली की 5 विकेट की जीत को सुनहरे अक्षर में लिख दिया। अंतिम ओवर में अक्षर ने जडेजा को 3 छक्के उड़ा कर चेन्नई के ताबूत में कील ठोक दी। हार के बाद धोनी ने कारण गिनाए , सभी कप्तान ऐसा करते हैं। वास्तव में धोनी कप्तान , विकेटकीपर एवं बल्लेबाजी की विधा में पूर्ण रूप से विफल रहे। पाठकों को याद दिलाना आवश्यक है कि डगआउट में पूर्व पर्पल कैप धारी इमरान ताहिर अब तक बैठे हैं और पूछ रहे हैं कि मेरा नंबर कब आएगा।