दूर मेरा गांव है
मन करता है
उड़ के चला जाऊं
माँ तेरे पास आऊ
मन करता है
मन करता है ।।
शहर के कोलाहल से
यहाँ के हलाहल से
कही खो न जाऊ
डर सा लगता है
अपनी मिट्टी को
चूमने का मन करता है
अपने गांव वापस जाने को
मन करता है ।।
वो गांव के घाट
नदी का चौड़ा पाट
पगडंडियों की भुलैया
अमराई की झुलैय्या
घर की छत से आता धुंआ
सौंधा सौंधा महकता हुआ
बार बार उकसाता है
गांव वापस जाने को
मन करता है ।।
स्वार्थियो की भीड़ में
चैन नही अपने ही निड में
बिखरी है हैवानियत
साफ नही किसी की नीयत
हर शख्स यहां पराया है
कोई किसी का नही साया है
अपने ही घर मे डर सा
लगता है
गांव वापस जाने को
मन करता है ।।
सब है गांव की मिट्टी में
लिखा है बाबा ने चिट्ठी में
माँ , छुटकी बुला रही है
दोस्तो की याद आ रही है
जिंदा है जिंदगी गांव में
अपनो की स्नेह भरी छाव में
लौट जाऊंगा यहाँ मन नही लगता है
गांव वापस जाने को
मन करता है
मन करता है ।।
धैर्यशील येवले, इंदौर