(महिला सशक्तीकरण पर्व)
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पग तल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में..।”
महिलाओं के सम्मान और उनके अतुलनीय योगदान के लिए विश्व में 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में चिन्हित किया गया है। यह कैसी विडंबना है। संपूर्ण सृष्टि के सृजन कर्ता, पालनकर्ता, मातृरूपी नारी शक्ति के त्याग व बलिदान के स्वरूप हम मात्र एक दिन महिला दिवस के रूप में मना कर अपने कर्तव्य की इतिश्री करें। भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।
मनुस्मृति के अनुसार -“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता”। अर्थात् जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, देवता भी वही निवास करते हैं ।अंधानुकरण की प्रवृत्ति के कारण शायद हम अपने संस्कारों को विस्मित कर रहे हैं ।हमारी संस्कृति में सर्वदा नारी का सर्वोच्च स्थान रहा है। ईश्वर की आराधना में भी सीता राम, राधे श्याम, गौरी शंकर के नाम उच्चारण में भी मातृशक्ति को प्रथम स्थान दिया गया है।
सनातन संस्कृति में धन की देवी लक्ष्मी, विद्या की देवी सरस्वती,शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा,अन्न की देवी अन्नपूर्णा हैं। स्त्री माता, भगिनी,पत्नी, पुत्री सभी रूपों में सर्वदा परिवार, समाज देश को समृद्धशाली बनाने के लिए सदैव तत्पर रही है। महाकवि कालिदास और तुलसीदास जी के जीवन की प्रेरणा स्रोत भी नारी शक्ति ही थी।
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प्राचीन समय से स्त्री के कितने रूप, कितनी भूमिकाएं समाज ने तय की हैं, जिन्हें वह बिना शिकायत सिर झुकाए निभाती चली आ रही है लेकिन आज के परिदृश्य में स्त्री सिर उठाकर हर क्षेत्र में अपने अधिकार की बात करती है ।दरवाजे के अंदर जब सवालों से लिपटी लपटे उठती हैं,तो उन की तपिश की दस्तक से बंद दरवाजे खुद-ब-खुद खुलने लगे हैं ।
शिक्षा महिलाओं को सशक्त बनाने का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। कहा जाता है यदि एक स्त्री शिक्षित होती है तो एक परिवार शिक्षित हो जाता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर हमने भी समाज में नवीन आशा व नई सोच का संचार करने हेतु शिक्षा के क्षेत्र में कार्य कर, नारी शिक्षा के लिए पुरजोर प्रयासरत हैं। महिला सशक्तिकरण के पक्षधर हैं।
हर क्षेत्र में महिलाएँ सम्मानजनक कार्य कर रही हैं। नारी ही प्रकृति का स्वरूप है जो संपूर्ण ब्रह्मांड को संचालित करती है। हमें अपने लिए सिर्फ इतनी सी बात समझनी है कि अपनी प्रतिभा ,दक्षता, क्षमता ,अभिरुचि और रुझान को पहचानना है; ईश्वर प्रदत अद्भुत शक्तियों को पहचान कर और निखारना है। आज हम अपने आप से कहें – कि “मैं कर सकती हूँ,मैं करूँगी और कुछ बनकर ही रहूँगी। हमें यही प्रण लेना है।”
डॉ. सविता राय
निर्देशिका
एडवांस एकेडमी, इंदौर