ग्राउंड रिपोर्ट
सर इतनी सी बात सुन लीजिये, मेरा कुछ होगा तो नहीं सर, अरे सर कुछ हुआ तो आप लोग बचा लोगे ना, कहीं फोन फान तो कर दोगे ना मेरे लिये,,, पर ये तो बताओ हो क्या गया है तुमको,,, अरे सर वो अपने किसानों के लिये प्रदर्शन किया और वो अधिकारी फोन लगाने लगे कि आओ सिहोर आकर बात कर लो, अब आप बताइये अपन गये और उन्होंने थाने में बैठा लिया तो फिर कौन छुडाने आयेगा अपन को,,,अरे जब प्रशासन और पुलिस से इतना ही डरते हो तो प्रदर्शन क्यों करते हो,,,
क्या करें सर किसानों का दुख दर्द देखा नहीं जाता मेरे से, जिसका फोन आया चल देता हूं अपनी मोटर साइकिल में अपने खर्चे का पेट्रोल डलवाकर,, फिर उस गांव में किसानों का दुख दर्द देखता हूं तो सोचता हूं क्या करूं आप सब को फोन लगाता हूं मगर आप सब भी रिया ओर कंगना में व्यस्त रहते हैं तो फिर कुछ ना कुछ ऐसा कर देता हूं कि अखबार और चैनल में आ ही जाता है। अब इसमें मेरी क्या गलती सर आप बताइये ना,, मेरा काम तो इनकी आवाज प्रशासन तक पहुंचाना ही है जो आप करते हो वो कभी कभी मैं भी कर देता हूं,,,
टुकडों टुकडों में ये बातचीत चल रही थी भोपाल से तीस किलोमीटर दूर सिहोर जिले के चंदेरी गांव के एमएस मेवाडा से। जो आसपास के गाँवों के किसानों की समस्या को लेकर मीडिया की मदद से प्रशासन से पंजा लडाते रहते हैं।
दुबला पतला कद, पैतालीस से ज्यादा की उमर मगर झक्क सफेद बाल, पैंट शर्ट पर लाल बंडी और एक पुरानी सी मोटर साइकिल जिस पर आसपास के गांवों की खाक छानते फिरते मेवाडा जी। काम के बीच में मौका मिलते ही बीडी सुलगा लेते हैं और चाय सुडकने लगते हैं। सुबह शाम रात बिरात जब चाहे मेवाडा जी का फोन बज उठता है। उठाने पर वही जानी पहचानी आवाज, “ सर थोडी सी बात सुन लीजिये, हमारे गांवों के किसान बहुत परेशान है, ऐसा पानी गिरा है कि फसल सड गयी और सर कुछ किसानों ने तो कर्जा लेकर फसल लगायी थी तो आप एक बार घंटी बजा दीजिये तो उनका भला हो जायेगा। जैसा कि आपने पिछली बार किया था।” हमारा जबाव होता था कि हर बात के लिये घंटी नहीं बज सकती मेवाडा जी आप समझा करिये। नहीं सर आप चाहेंगे तो किसी की तरह घंटी बज जायेगी ओर इन गरीब किसानों की बात सरकार तक पहुंच जायेगी फिर ये सब आपको दुआ देंगे। हमारी तरफ से बहुत उत्साह जनक प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर बिना धीरज खोये मेवाडा फिर शुरू हो जाते “ तो सर ऐसे ही घूमने आ जाइये ये किसान आप सबको देखकर खुश हो जायेंगे समझेंगे कि इनके दुख दर्द में कोई तो खडा होता है। बहुत बुरे हाल में हैं किसान आप बस एक बार आकर देख जाइये।
वैसे ये बात नहीं है कि मेवाडा के फोन हमारे पास ही आते सिहोर जिले के तकरीबन सारे पत्रकार और भोपाल में टीवी के पत्रकार सारे मेवाडा के संपर्क में हैं और वो किसानों की समस्या को लेकर उन सबको खबर लायक ज्ञान और एंगल सब देते रहते हैं। किसानों की समस्या को हर दौर में उठाने वाले मेवाडा जी के सामने दिक्कत कोरोना काल में हुयी तो उसका भी तोड निकाल लिया। भरी गर्मी में पानी की किल्लत एक दो गांव में हुयी तो किसानों के साथ बैल गाडी के बैलों तक को मास्क पहना दिया और कर दिया प्रदर्शन। इस अजब गजब सा प्रदर्शन खबरों और मीडिया में जगह पा गया तो फिर मेवाडा की दिक्कत। सारे अधिकारी लगे फोन करने और मेवाडा जी हमसे पूछते हैं “ सर बताइये अपन ने क्या गलत किया, किसानों की आवाज आप सबकी मदद से प्रशासन तक तो पहुंचायी।” बाद में उस गांव में प्रशासन ने पानी पहुंचाया। अब जब पानी की किल्लत दूर हुयी और बरसात में फिर जोरदार पानी बरसा तो मेवाडा जी फिर परेशान “ सर एक बार गांवों में आकर देख तो लीजिये गरीब किसानों के घर कितने पानी में डूब गये पूरा गल्ला और अनाज खराब हो गया है।” सोयाबीन की फसल बिगडी तो किसानों को पेड पर चढा थालियां बजाकर प्रदर्शन करा दिया। यानिकी हर कुछ दिनों में किसानों की इन दिक्कतों को सुनते सुनते जब हमारा धीरज जबाव दे देता है तो बोल पडते हैं मेवाडा जी किसानों के जितने दुख दर्द हम मीडिया वालों को सुनाते हो उतने यदि आप अफसरों को सुनाओ तो उनका भला हो जाये हम मीडिया तो सिर्फ लिख और बता सकते हैं मगर अधिकारी उस समस्या का हल तलाश लेंगें। ऐसे में मेवाडा जी का अनुभव बोल पडता है कि “ सर उन अधिकारियों को फोन खटखटा कर जब थक जाते हैं तो आप सबको फिर परेशान करता हूं। कि आप सब कम से कम फोन तो उठा लेते हो और कभी कभार हमारे गांव तक आ भी जाते हो।
मेवाडा से परिचय हमारा अन्ना आंदोलन के दौरान हुआ था जब हम सब ये जानकर दंग रह गये थे कि सिहोर जिले के किसी गांव में अन्ना हजारे के चाहने वाले ने उनका मंदिर बनाकर पूजा पाठ शुरू कर दिया था। मंदिर बनाने वाले कोई और नहीं ये हमारे मेवाडा जी ही थे। जिन्होने पहले गावं की सार्वजनिक जमीन पर फिर प्रशासन की आपत्ति पर अपने पडोस की निजी जमीन पर ही अन्ना की प्रतिमा ये सोच कर लगा दी कि जो आदमी देश के लिये अनशन पर बैठा है उसकी तो पूजा होनी चाहिये। इस कहानी के बाद तो किसान की कहानी ओर मेवाडा हमारे कैरेक्टर हो गये थे। वो भी कहानियाँ बताते और हमारी कहानियों में मदद करते। गांव में बह रही तथाकथित “ विकास की बयार” को भोपाल के पास के गांवों में जांचने का जरिया आज भी एम एस मेवाडा बने हुये हैं।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी नेटवर्क, भोपाल