क्यों उल्लेखनीय है, उनकी विजयश्री!

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निरुक्त भार्गव

उज्जैन बार एसोसिएशन को 28/9/2021 को नया अध्यक्ष मिल गया। इसमें कोई नई बात अथवा बड़ी बात नहीं है! महत्वपूर्ण ये है कि जिले की अभिभाषक बिरादरी को रवींद्र त्रिवेदी “दादा” के रूप में एक ऐसा नुमाइंदा मिल गया है कि वो सब भी खुद को गौरवान्वित होना महसूस कर सकते हैं, जिन्होंने उनको वोट नहीं दिया!

कोई 70 बरस के श्री त्रिवेदी और उनका खानदान विधिक क्षेत्र का स्थापित नाम है। वे पूर्व में भी अध्यक्ष पद पर कार्य कर चुके हैं। बार परिवार भी उज्जैन में ही 1600/1700 सदस्यों वाला बन चुका है, हालांकि मतदान की पात्रता लगभग 1300 वकीलों को है।

व्यापक समाज के बीच चर्चा है कि ऐसे अभिभाषक जिनके कार्य की कीर्ति कम से कम मध्यप्रदेश हाई कोर्ट तक तो फैली ही हुई है, वो आज के इस खतरनाक और निकृष्टतम दौर में आखिर क्यों चुनावी राजनीति के फेर में पड़ गए? ऐसे समय जब उनके पास ऑफिस में जूनियर्स की पर्याप्त तादाद है और वकालत भी जोरदार चल रही है, तो उन्होंने किस आधार पर इतना बड़ा जुआं खेला?

बार में कभी एक साल में तो कभी दो साल में नई बॉडी चुनकर आती रहती है और ये एक पुराना दस्तूर है। उज्जैन बार, जिसने तीन चार हाई कोर्ट जज दिए और लोअर ज्यूडिशियरी में भी अनेकों न्यायिक अधिकारी दिए, उसने हाल के वर्षों में वो मंज़र भी देखा है कि जो येन केन प्रकारेण अध्यक्ष/सचिव बन गए, वो तीन सालों बाद भी चुनाव कराने को राजी नहीं हुए और इसके लिए संवेदनशील सदस्यों को सड़कों पर उतरना पड़ा। इतना ही नहीं, कुछ काले कोटवाले तो रातों रात मालिक ही बन बैठे, मतदाताओं के!

इन सबके बीच एक वरिष्ठ और “प्रैक्टिसिंग” लॉयर का चुनाव समाज में शुभ मैसेज देता है! उज्जयिनी के न्याय की जो सुरभि महाराजा विक्रमादित्य के कालखंड से प्रस्थापित है, उसे शायद और गरिमा प्राप्त होगी! उज्जैन के न्यायिक परिसर में संभवत: एक नई बयार बहेगी…