चुनाव में किसकी होगी जीत, खिलेगा कमल या कांग्रेस पड़ेगी भारी

Shraddha Pancholi
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संजय त्रिपाठी। इंदौर के राजनीतिक हवा को समझने वाले जानते हैं कि चुनावी राजनीति में कमल का फूल चुनाव चिन्ह लेकर आ जाना ही जीत की एक बड़ी गारंटी होती है। भारतीय जनता पार्टी से मुख्य रूप से दावेदारों का विश्लेषण। रमेश मेंदोला, जमीनी पकड़ दमदार नेटवर्क, परंतु क्षेत्र क्रमांक 2 से विधायक भी हैं, बहुत अधिक मजबूत होने के कारण कई बड़े नेता और अधिक मजबूत नहीं होने देना चाहते यह माना जाता है कि उनकी प्राथमिकता कैबिनेट मंत्री बनने की रही है, गुटबाजी में महारत होने के कारण स्थानीय राजनीति, मै उनका दावा कमजोर होता है।

उमेश शर्मा-  कुशल वक्ता लंबे समय तक संगठन का काम किया है, सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं, परंतु इंदौर के अधिकांश बड़े नेता अंतिम समय में उनका साथ देंगे इसकी संभावना बहुत कम है। अगर संगठन ही उन्हें टिकट दे तो टिकट मिलेगा बाकी सभी बड़े नेताओं के अपने-अपने दावेदार हैं।
गोपीकृष्ण नेमा- पिछले विधानसभा चुनाव में अंतिम समय में उनका टिकट काटकर आकाश विजयवर्गीय को दे दिया गया था, नगर अध्यक्ष रहते हुए उनकी नजदीकियां, राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े नेताओं और सीएम से बढ़ गई है, लगातार संगठन के विभिन्न अभियानों के प्रभारी रहे हैं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष से भी अच्छे संबंध, बेबाक स्टाइल होने के कारण स्थानीय इंदौर की राजनीति में उनके मित्र और बड़े नेताओं में शत्रु भी कम नहीं।

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जीतू जिराती- युवामोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष रहे, पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट न देकर मधु वर्मा को दिया गया, नैसर्गिक रूप से महापौर पद के दावेदार हैं, ऊपर सभी गुटों से समन्वय कर कर चलते हैं, इस युवा नेता के पास यह अच्छा अवसर है, कमजोरी यह है कि कहीं पार्टी यह निर्णय ना कर दे कि सामान्य से सामान्य ही लड़ेगा।
सुदर्शन गुप्ता- संगठन व सभी प्रमुख नेताओं से मजबूत संबंध, लगातार सक्रिय गंभीर दावेदारों में नाम आता है,, सक्रियता के साथ लगातार काम करते रहते हैं, संजय शुक्ला के कांग्रेसी प्रत्याशी बनने की स्थिति में कैलाश विजयवर्गीय गुट का समर्थन हासिल करने की चुनौती सामने हैं।

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मधु वर्मा- मजबूत पकड़ सभी गुटों से संबंध है, परंतु पिछली विधानसभा चुनाव का टिकट मिलने के बाद समीकरण कमजोर हुए हैं, संभावना है कि उन्हें आने वाली विधानसभा चुनाव में फिर भाजपा प्रत्याशी बनाया जा सकता है, ऐसी स्थिति में दावा कुछ कमजोर होता है।
गौरव रणदिवे- जिन नेताओं के नाम चल रहे हैं उनमें अगर आपसी विवाद होता है, तो विकल्प के रूप में युवा और नया नाम माना जा रहा है, विशेष रूप से सुहास भगत, जयपाल सिंह चावड़ा, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के समर्थक माने जाते हैं।

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गोविंद मालू- भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी रहे, सबसे अच्छे संबंध है, किसी विवाद में नहीं पड़ते सामंजस्य के नाम पर अच्छा नाम माना जा रहा है।
गोलू शुक्ला- युवा मोर्चा के पूर्व नगर अध्यक्ष रहे, युवाओं में अच्छी लोकप्रियता है, परंतु कांग्रेस से उनके भाई संजय शुक्ला का महापौर पद पर टिकट फाइनल होने के कारण उनका नाम विचारणीय नहीं हो पाएगा।

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इसके अतिरिक्त अजय सिंह नरूका- ताई की ओर से और कैलाश शर्मा  विजयवर्गीय गुट से अंतिम समय में चर्चाओं में आ सकते हैं।
सांसद शंकर लालवानी भी महापौर पद पर अपना आदमी बैठाने का पूरा प्रयास करेंगे, लालवानी अंतिम समय में ताई अथवा भाई गुट से सामंजस्य बिठाकर, अथवा स्थापित नेताओं को दरकिनार करते हुए अंतिम दौर मैं संघ के समर्थन से जयंत भीसे अथवा डॉक्टर निशांत खरे जैसा चौंकाने वाला नाम दे सकते हैं। इसके अतिरिक्त टीनू जैन, मोहित वर्मा, कमल बघेला, सुमित मिश्रा, एकलव्य सिंह गौड़, राजेश उदावत, खुद ही अपना नाम चला रहे हैं।