लो ! देश के साथ ही हमारे प्रदेश में भी कोरोना की तीसरी लहर आ गई है…! पाबंदिया इसलिए शुरू कर दी गई है ताकि कोरोना के बढ़ते कदम को रोका जा सके। लेकिन यहां लिखने में कतई गुरेज नहीं है कि हम अपनी ही लापरवाही के कारण तीसरी लहर के जाल में फंस गए है…! हमने एक नहीं बल्कि दो-दो बार कोरोना का रौद्र रूप देखा है…लाॅकडाउन का भी दंश झेला है.. और इस कारण अर्थ व्यवस्था की कमर तक टूट गई…बावजूद इसके
सावधानी रखना हम नागरिकों ने लाजमी नहीं समझा।
चाहे चाट पकौड़ी की दुकानें हो या फिर शादी ब्याह के अवसर हो….बाप रे बाप ! इतनी भीड़ कि महसूस ही नहीं होता था कि कोरोना के दिन भी हमने देखे थे। कितने ही लोगों को कोरोना ने अपने गाल में समा लिया था…कई बच्चे अनाथ तक हो गए.. कोरोना ने अपनों को छीन लिया… समय ही ऐसा रहा था कि जिस घर में यदि किसी की मौत हुई थी तो उस घर के ही सभी सदस्य संबंधित परिजन के अंतिम संस्कार में शामिल तक नहीं हो सके थे…! तब हर किसी की जुबां पर यही शब्द होता था कि बापरे…हे भगवान…ये कैसे दिन आ गए है.. कोरोना से हमें मुक्ति दिलाओं..!
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मंदिर, मस्जिद…गिरिजाघर सब बंद….घर से बाहर झांकना तक प्रतिबंधित था…! लेकिन महसूस होता है कि जैसे ही समय ने करवट ली अर्थात कोरोना का प्रभाव कम हुआ….पाबंदियों को धीरे धीरे हटाया गया…हम आजाद हो गए..! अर्थात कहने का अभिप्राय यह है कि ऐसी आजादी मिलने की अनुभूति हुई कि पिछला सब कुछ भूला दिया गया। बाजारों में बगैर मास्क पहने निकलने लगे….मास्क को घर के किसी कोने कुचाले में पटक दिया…सैनेटाइजर तो जैसे बीते समय की बात हो गया…! छूट मिली तो मांगलिक कार्यक्रमों को आयोजित करने वाले बेपरवाह हो गए…जिस समय लाॅकडाउन या पाबंदियों के कारण महज बीस-तीस लोगों की अनुमति लेने के लिए भी माथे पर पसीना आ जाता था वहीं बाद में ऐसे फ्री हो गए कि सभी रिश्तेदारों के साथ भी उन्हें तक भी न्यौत दिया जिससे नमस्कार तक का ही संबंध रहा हो..!
खैर लब्बोलुआब अब जिस तरह से कोरोना या कोरोना का नया वैरियंट ओमिक्रान का फैलाव हो रहा है वह निश्चित ही चिंतनीय है और यही कारण है कि बढ़ते मरीजों को देखते हुए सरकारें अपने हिसाब से पाबंदियां लगाने की शुरूआत कर चुकी है। बावजूद इसके कतिपय मानने के लिए तैयार नहीं दिखाई देते..! मास्क लगाना अनिवार्य किया गया है परंतु जेब में रखकर बाहर ले जाते है…ताकि कोई पुलिसकर्मी दिखे या रोक-टोक लगाते हुए दिखाई दे तो मास्क लगा लें…! सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अभी भी पूरी तरह से होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। बाजारों में अनावश्यक भीड़ हो रही है…खान-पान की दुकानों पर
लोगों का हुजुम है….। हालांकि यह बात सोचनीय जरूर है कि जिस तरह से पूर्व के लाॅकडाउनों में गरीबों के साथ ही मध्यमवर्गीय लोगों के सामने आर्थिक मुसीबतें खड़ी हुई थी वह शंका एक बार फिर लोगों के मन में घर कर रही है कि कहीं पहले जैसी स्थिति का सामना न करना पड़े…! फिर भी हम यही उम्मीद करते है कि कोरोना के कदम यहीं पर थम जाए…! पाबंदियां और अधिक न बढ़े…! हम सावधानी रखें….खुद भी समझे और अन्यों को भी समझाएं कि यह वहीं कोरेाना है….जिसने हमें घरों में कैद कर रख दिया था…अन्यथा दिन भर टीवी देखांे और आर्थिक व्यवस्था की चिंता पालों…!