हिंसा… जाए तो अब कहां जाए!

Shivani Rathore
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‘हिंसा’ को पहले यह मुगालता था कि उसकी दुनिया भर में जगह है। खास तौर पर जो हथियार बनाने और खरीदने वाले देश हैं, वहां तो उसे लगता था कि एक मायका है तो दूसरा प्रेमी का मोहल्ला! उसे कभी यह एहसास नहीं हुआ कि उसे कभी यूं देश-निकाला दिया जाएगा। बताइए, जिस अमेरिका में छह साल का छात्र अगर टीचरजी को गोली मार सकता है तो वहां से उसे कौन हिला सकता है, हिंसा सोचने लगी। ट्रंप के कान को खरोंचती एक गोली क्या निकल गई, सभी ‘हिंसा’ के पीछे पड़ गए हैं।

ट्रंप को जी भर कर बुरा-बुरा कहने वाले बाइडेन ने भी कह दिया कि ‘अमेरिका में हिंसा की कोई जगह नहीं है।’ हिंसा को बुरा लग रहा है कि पूरी दुनिया में आधे देश तो अमेरिका से हथियार खरीदते हैं, तो कोई शांति-पाठ के लिए तो खरीदे नहीं होंगे। यह कैसे संभव है कि हिंसा के लिए तो हथियार बनाते और बेचते हैं, फिर यह भी कि ‘हिंसा के लिए अमेरिका में कोई जगह नहीं है।’

हिंसा परेशान है कि अब जाए तो जाए कहां। यूक्रेन-रूस का मसला निपट ही नहीं रहा है तो वहां के बारे में कोई नहीं बोलता कि यहां हिंसा की कोई जगह नहीं है। इजराइल-गजा का खून-खराबा रोज की बात है…! एक शख्स के कान को खुजलाते गोली निकली तो दुनिया से हिंसा की जगह ही खत्म कर दी… और जहां सैकड़ों मौत हिंसा में रोज हो रही हैं, वहां कोई मुंह नहीं खोल रहा है।

फ्रांस के राष्ट्रपति ने तो राजनीति और लोकतंत्र से हिंसा को बदर कर दिया है। राजनीति में अगर हिंसा को जगह नहीं दी गई तो हिंसा बेचारी जाएगी कहां! उसकी तो शरणगाह ही राजनीति है! हिंसा को लोकतंत्र पर बड़ा गुस्सा आ रहा है कि इसकी वजह से ही तो बैठने की जगह मिलती है और इसी की आड़ लेकर जगह नहीं दी जा रही है।

यह तो दोगलापना है ना! जापानी प्रधानमंत्री ने कहा है- लोकतंत्र को चुनौती देने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा के खिलाफ मजबूती से खड़ा होना चाहिए। हो सकता है, इस बयान का यह असर हो कि लोकतांत्रिक देश… और ज्यादा हथियार खरीदने लगें और शिक्षा, स्वास्थ्य का बजट कम कर दें। मजबूती से खड़े होने के लिए हथियार तो जरूरी हैं ना! मच्छर थोड़े ही है हिंसा… कि हाथ से मार दी। फिर मच्छर मारना भी तो हिंसा ही है!

पंचशील के अहिंसक देश भारत के प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि राजनीति और लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। यहां हिंसा को खुशी मिली है कि राजनीति और लोकतंत्र- के सिवा उसके लिए अक्खी जगह खुली पड़ी है। मॉब-लिंचिंग हो रही है… कपड़ों से पहचान कर हत्या कर रहे हैं, प्रवचन में भगदड़ है, थानों में कैदी जान दे रहे हैं, पुल गिर रहे हैं और… इन सबके खिलाफ चुप्पी भी तो हिंसा को रहने लायक जगह दे ही रही है, हिंसा खुश है, जहां चाहे अपना स्थान ग्रहण कर सकती है। देख ही रहे हैं कि हिंसा को कहीं भी जगह तलाशनी नहीं पड़ रही है, लोग खुद ही जगह दे रहे हैं।