आज है श्रीजी का परचारगी श्रृंगार, चन्द्रावलीजी की भावना से पहनाएं जाते है पीले रंग के वस्त्र

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अधिकांश बड़े उत्सवों के एक दिन उपरांत उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है. इसमें सभी वस्त्र एवं श्रृंगार लगभग सम्बंधित उत्सव की भांति ही होते हैं. इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं. परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज अगर यहाँ बिराज रहे होवे तो (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं. आज का श्रृंगार चन्द्रावलीजी की ओर से किया जाता है अतः कल के उलट वस्त्र पीले धराये जाते हैं और ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं.

राजभोग दर्शन –

कीर्तन – (राग : मल्हार)

चल सखी देखन नंद किशोर l
श्रीराधाजु संग लीये बिहरत रुचिर कुंज घन सोर ll 1 ll
उमगी घटा चहुँ दिशतें बरखत है घनघोर l
तैसी लहलहातसों दामन पवन नचत अति जोर ll 2 ll
पीत वसन वनमाल श्याम के सारी सुरंग तनगोर l
जुग जुग केलि करो ‘परमानंद’ नैन सिरावत मोर ll 3 ll

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साज – श्रीजी में आज पीले रंग की मलमल की रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है. गादी और तकिया के ऊपर सफेद बिछावट की जाती है. स्वर्ण की रत्नजड़ित चरणचौकी के ऊपर हरी मखमल मढ़ी हुई होती है.

वस्त्र – श्रीजी को आज पीले रंग की मलमल का रुपहरी लप्पा का पिछोड़ा धराया जाता है. ठाड़े वस्त्र लाल रंग के होते हैं. कल ललिताजी की भावना से लाल वस्त्र धराये थे और आज के वस्त्र चन्द्रावलीजी की भावना से पीले होते हैं.

श्रृंगार – प्रभु को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है. उत्सव के माणक के आभरण धराये जाते हैं. कस्तूरी, कली आदि सभी माला धरायी जाती हैं. श्रीकंठ में नीचे पदक, ऊपर हीरा, पन्ना, माणक, मोती के हार व दुलड़ा धराया जाता है. श्रीमस्तक पर पीले रंग की (आसमानी बाहर की खिडकी की) छज्जेदार पाग के ऊपर सिरपैंच, पन्ने की लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.

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श्रीकर्ण में हीरा के चार कर्णफूल धराये जाते हैं. श्वेत पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो मालाजी धरायी जाती हैं. श्रीहस्त में कमलछड़ी, सोने के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (एक माणक व एक हीरा के) धराये जाते हैं. पट उत्सव का, गोटी सोने की छोटी व आरसी सोने की डांडी की आती है. प्रातः श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की आती है.