विजय अड़ीचवाल
आज सोमवार, कार्तिक कृष्ण एकादशी/द्वादशी तिथि है।
आज पूर्वाफाल्गुनी/उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, “आनन्द” नाम संवत् 2078 है
( उक्त जानकारी उज्जैन के पञ्चाङ्गों के अनुसार है)
आज रमा एकादशी व्रत (केला) है।
व्रत, पर्व एवं उत्सव शुभ तिथि, शुभ वार और शुभ नक्षत्र में मनाने का विधान है।
जिन देशों और जिन जातियों में जितने अधिक उत्सव अथवा पर्व मनाए जाते हैं, वे देश तथा जातियां उतनी ही उन्नत समझी जाती है।
पांच दिवसीय दीपोत्सव का आरम्भ धनतेरस से होता है।
धनतेरस आयुर्वेद प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि की जयन्ती दिवस के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस के दिन यमुना स्नान, धन्वन्तरि पूजन और यमदीप दान करने का अत्यधिक महत्त्व है।
घर के मुख्य द्वार के बाहर प्रदोष काल में चार बत्तियों वाला दीपदान करते समय इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए-
मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।
(पद्मपुराण)
यमदीप दान करने से मनुष्य को कभी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ता है।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि का पूजन – दर्शन करना चाहिए। धन्वन्तरि जी से रोगमुक्त स्वस्थ्य जीवन की प्रार्थना की जाती है।
भगवान वामन ने धनतेरस से अमावस्या तक तीन दिनों में दैत्यराज बलि से सम्पूर्ण लोक लेकर उसे सुतल लोक जाने पर विवश किया था।
धनतेरस से भाई दूज – इन पांच दिन तक पृथ्वी पर जो प्राणी यमराज के उद्देश्य से विधिवत दीपदान करता है, उसे यम यातना भोगना नहीं पड़ती है और उसका घर कभी लक्ष्मी से विहीन नहीं होता है।