Mangalwar Upay : दुर्घटना, भय और ऋण से बचने के लिए मंगलवार को जरूर करें ये खास उपाय, हनुमान जी की बरसेगी विशेष कृपा, दूर कर देंगे सभी संकट

Simran Vaidya
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Mangalwar Upay: आज प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि, उसके मनुष्य जीवन में ऐसा कोई समय न आए जिसमें उसे ऋण लेना पड़े। या फिर जिंदगी भर कर्ज का भागी बनना पड़े। इसलिए आज प्रत्येक मनुष्य फाइनेंशियल दृष्टिकोण से काफी प्रभावशाली और स्ट्रॉन्ग रहने की रात दिन जद्दोजहद में लगा रहता हैं।

वही कभी-कभार ऐसी परिस्थिति जातक के सामने आ ही जाती है। जब ना चाहते हुए भी उसे ऋण लेना पड़ जाता है। वहीं उस समय बुरे हालातों में लोन लेकर उस कंडीशन से बाहर निकलना कदापि गलत नहीं है। वही ऋण को वक्त रहते यदि खत्म कर दिया जाए तो ऋण लेकर उस परेशानी का निवारण सही है। मगर यही ऋण यदि आप पर भार बनने लगे तो मनुष्य फाइनेंशियल और मेंटल दोनों तरह से तनाव में चला जाता है।

हिंदू पौराणिक मान्यता में ऋण से निजात के कई रेमेडीज के विषय में बताया गया है। इन्हीं में एक सिद्ध और मंगलकारी उपाय है ऋण मोचन मंगल स्त्रोत पाठ का। इस महा स्त्रोत के पठन अथवा श्रवण से महाबली हनुमानजी आपकी तमाम परेशानियों का निवारण मिनटों में कर देते हैं। वैसे तो आप रोजाना इस पाठ का पठन कर सकते हैं। मगर यदि आपको शीघ्र इसका फल चाहिए और आपके लिए नियमित पाठ करने में असुविधा हो रही हो तो केवल मंगलवार और शनिवार के दिन इसका पठन अवश्य करें।
साथ ही हनुमान जी का विशेष ध्यान करते हुए इस स्त्रोत का पाठ करने से ऋण का भार आहिस्ता आहिस्ता उतरने लगता है।

ऋण मोचन मंगल स्तोत्र (Rin Mochan Mangal Stotra)

मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरासनो महाकयः सर्वकर्मविरोधकः।।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः।
धरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनन्दनः।।
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
व्रुष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।
एतानि कुजनामनि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।
धरणीगर्भसम्भूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मङ्गलं प्रणमाम्यहम्।।
स्तोत्रमङ्गारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।
अङ्गारक महाभाग भगवन्भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।
ऋणरोगादिदारिद्रयं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेशमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।।
अतिवक्त्र दुरारार्ध्य भोगमुक्त जितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुश्टो हरसि तत्ख्शणात्।।
विरिंचिशक्रविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्रयदुःखेन शत्रूणां च भयात्ततः।।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतिं श्रियमाप्नोति ह्यपरो धनदो युवा।।
।। इति श्री ऋणमोचक मङ्गलस्तोत्रम् सम्पूर्णम्।।